गंगा दशहरा और गायत्री जयंती : दो दिव्य देवशक्तियों के अवतरण का अद्भुत संगम
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गंगा दशहरा और गायत्री जयंती : दो दिव्य देवशक्तियों के अवतरण का अद्भुत संगम

गंगा दशहरा और गायत्री जयंती एक ही दिन—गंगा व गायत्री का अवतरण, सनातन धर्म के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक वैभव का दिव्य संगम।

by पूनम नेगी
Jun 5, 2025, 03:56 pm IST
in मत अभिमत, धर्म-संस्कृति
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ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का पावन पर्व दो कारणों से सनातन हिन्दू धर्म विशिष्ट महत्ता रखता है। हमारी सनातन संस्कृति की मूलाधार दो प्रमुख दैवीय शक्तियां ‘गंगा’ और ‘गायत्री’ इसी शुभ दिन धराधाम पर अवतरित हुई थीं। जहां एक ओर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के वंशज राजा भगीरथ ने अपने पुरखों की शाप मुक्ति के लिए अपने प्रचंड पुरुषार्थ के बल पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को देवनदी गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारा था; वहीं दूसरी ओर महर्षि विश्वामित्र अपनी प्रचंड तप साधना से इसी पुण्य दिवस पर देवमाता गायत्री को देवलोक से धराधाम पर लाये थे। एक ही पर्व तिथि पर गंगावतरण और गायत्री जयंती का यह अनुपम संयोग भारतीय संस्कृति की विलक्षणता का द्योतक है।

शिवमहापुराण के कथानक के अनुसार सूर्यवंशी राजा भगीरथ का कठोर तप सार्थक हुआ और दस दुर्लभ ज्योतिषीय योगों (ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार दिनांक, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात, गर करण, आनंद योग, कन्या का चंद्रमा और वृषभ का सूर्य) में देवनदी गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से  प्रवाहित होती हुई ब्रह्मा द्वारा निर्मित हिमालय के बिंदुसर सरोवर से होती हुई राजा भगीरथ का अनुसरण कर गंगोत्री से होती हुई हरिद्वार के आगे धरती के मैदानी क्षेत्रों में प्रवाहित हुईं। चूँकि इस सरोवर की आकृति गाय के मुख के समान थी, इस कारण इस जलस्रोत का नाम “गोमुख” पड़ गया। भारतीय समाज में माँ ‘गंगा ‘ के प्रति जन आस्था कितनी गहरी है; इसे कोरे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। पतित पावनी, पापनाशनी, पुण्यसलिला माँ गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन दस योगों में इस धराधाम पर अवतरित हुई थीं; इसलिए इस पर्व को ‘गंगा दशहरा’ कहा जाता है। गंगा का तत्वदर्शन जीवन में उतारने से चोरी, झूठ, अनैतिक हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, चुगली, परनिंदा, परस्त्री गमनऔर नास्तिक बुद्धि; यह दस महापातक सहज ही छूट जाते हैं।

शास्त्रज्ञ कहते हैं कि जिस तरह संस्कृत भाषा को “देववाणी” की मान्यता प्राप्त है, उसी प्रकार गंगा को “देवनदी” की। पावन गंगा के तटों पर ही हमारी महान वैदिक सभ्यता व संस्कृति पुष्पित पल्लवित हुई है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, रामायण, महाभारत तथा पुराण ग्रंथों में पुण्यसलिला, पापनाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी गंगा मइया का विस्तृत यशोगान मिलता है। यही नहीं, वैज्ञानिक शोधों में गंगाजल की शुद्धता प्रमाणित हो चुकी है। माँ गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। लाखों धरती पुत्रों का पेट भरती हैं। आर्य-अनार्य, वैष्णव-शैव, साहित्यकार-वैज्ञानिक सभी एक स्वर में इसके महत्व को स्वीकार करते हैं। सनातनी हिन्दुओं की आस्था माँ गंगा बेहद गहराई से जुड़ी है। हम हर प्रमुख पर्व-त्यौहार पर गंगा में डुबकी लगाते हैं और जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक मानते हैं। अभी हाल ही में प्रयागराज में हुए महाकुम्भ के आयोजन में जिस तरह देश दुनिया का विशाल जन सैलाब गंगा मैया में डुबकी लगाने को उमड़ा, वह गंगा के प्रति जन आस्था को दर्शाने के लिए पर्याप्त है।

बताते चलें कि पतितपावनी गंगा मैया में डुबकी के अतिरिक्त जिस चीज को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है, वह है गंगा आरती। हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी व इलाहाबाद आदि पौराणिक तीर्थों पर गंगा आरती की दिव्यता का आनंद उठाने  के लिए देशभर से ही नहीं; विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग इन तीर्थों पर जुटते हैं। हर्ष का विषय है कि गंगा निर्मलीकरण अभियान के तहत उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ सरकार द्वारा बिजनौर से लेकर बलिया तक गंगा के पांच किलोमीटर के दायरे में दोनों किनारों पर बसे 1038 गांवों को चिह्नित कर हरिद्वार व काशी की तर्ज पर जन सहभागिता से माँ गंगा की नियमित संध्या आरती की योजना बनायी है। इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय और पर्यटन विभाग के सहयोग से चिह्नित गंगा घाटों पर आरती के लिए चबूतरों का निर्माण किया जा रहा है। गंगा आरती के इस आयोजन के जरिए योगी सरकार की मूल मंशा आम जनता में नदियों के प्रति स्वच्छता का मानस विकसित करने के स्थानीय स्तर पर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की है।

 ज्ञान गंगा माँ गायत्री को भूलोक पर लाये थे महर्षि विश्वामित्र

क्षत्रिय से ब्राह्मणत्व ग्रहण करने वाले महामुनि विश्वामित्र अपनी दुर्धर्ष तपश्चर्या के बल पर ज्ञान गंगा की अधिष्ठात्री वेदमाता गायत्री को धरतीवासियों के कल्याण के लिए जिस दिन देवलोक से भूलोक पर लाये थे, वह शुभ तिथि भी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी की ही थी। इसी कारण सनातन धर्मी इस तिथि को ‘गायत्री जयंती’ के रूप में भाव श्रद्धा से मनाते हैं। सनातन हिन्दू धर्म में माँ गायत्री को सद्ज्ञान व आत्मबल की अधिष्ठात्री माना जाता है। शास्त्र कहते हैं कि गायत्री जयंती के दिन ही गायत्री महामंत्र का भी प्रादुर्भाव हुआ था। ॐ भूर्भुव: स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (भावार्थ – उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी, पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे)। गायत्री महामंत्र के इस भावार्थ में चारो वेदों का सारतत्व निहित है। श्रीमद्भागवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण का यह कथन कि मन्त्रों में मैं ‘गायत्री’ हूं; इस महामंत्र की महत्ता को स्वयं प्रमाणित करता है। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में लिखा है कि भगवान् श्रीकृष्ण भी स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करते थे। उपनिषदों के ऋषि कहते हैं कि भारतीय धर्म के ज्ञान विज्ञान का मूल स्रोत होने के कारण गायत्री सर्वोत्तम गुरुमंत्र भी है। इसीलिए गायत्री को “ज्ञान गंगा” कहा जाता है। मान्यता है कि चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियों की जन्मदात्री माँ गायत्री ही हैं। वेदों की जन्मदात्री होने के कारण इनको वेदमाता भी कहा जाता है और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराध्य देवी भी इनको माना जाता है; इसलिए देवी गायत्री वेदमाता होने के साथ देवमाता भी हैं।

बीसवीं सदी में जन्मे गायत्री महाविद्या के सिद्ध साधक और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य गायत्री महाशक्ति की तात्विक विवेचना करते हुए लिखते हैं,’’ परब्रह्म मूलतः निराकार, अव्यक्त है पर अपनी जिस अलौकिक शक्ति के माध्यम से वह स्वयं को विराट रूप में व्यक्त करता है, वह गायत्री ही है। हिंदू धर्म में वेदमाता गायत्री को पंचमुखी माना गया है। उनके यह पांच मुख प्रकृति के उन पंचतत्वों  (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) के प्रतीक हैं जिनसे यह समूचा विश्व ब्रह्माण्ड और सभी जड़-चेतन जीवों की उत्पति हुई है। संस्कृत में प्राण को  ‘’गय ” कहते हैं और प्राण का त्राण करने वाली शक्ति गायत्री कहलाती है। इस तरह इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है।‘’

बताते चलें कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी की यह पावन तिथि माँ गायत्री के इस वरद पुत्र के जीवन से भी अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। अपनी लोकलीला का संवरण करने के लिए इस महामनीषी ने गायत्री जयंती की शुभ तिथि का चयन किया था। ‘युग के विश्वामित्र’ की उपाधि से विभूषित पंडित श्रीराम शर्मा के अनुसार गायत्री महामन्त्र भारतीय तत्त्वज्ञान एवं अध्यात्म विद्या का मूलाधार है। जिस तरह वट वृक्ष की समस्त विशालता उसके नन्हे से बीज में सन्निहित रहती है, ठीक वैसे ही वेदों में जिस विशद ज्ञान-विज्ञान का वर्णन किया गया है, वह सब कुछ बीज रूप में गायत्री मन्त्र में समाहित है। आदिकाल में देवता, ऋषि, मनीषी व तपस्वियों सभी ने इसी आधार पर महान सिद्धियां एवं विभूतियां हासिल की थीं।

सादगी की प्रतिमूर्ति व स्नेह से परिपूर्ण अन्त:करण वाले आचार्यश्री की हर श्वास गायत्रीमय थी। समिधा की तरह उन्होंने अपने पूरे जीवन को संस्कृति यज्ञ में होम कर दिया  था। बीती सदी में अंधविश्वास और रूढ़ियों की मजबूत दीवारों को तोड़कर धर्म व अध्यात्म के वैज्ञानिक स्वरूप को भारतीय जनजीवन में लोकप्रिय बनाने का जो महापुरुषार्थ आचार्य श्री ने किया, उसके लिए समूची मानव जाति इस अप्रतिम राष्ट्र संत की सदैव ऋणी रहेगी। समय की मांग के अनुरूप जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अभिनव, प्रेरणा व संवेदना जगाती 3200 पुस्तकों का सृजन उनकी अद्वितीय लेखकीय क्षमता का द्योतक है। मानवी चेतना में सुसंस्कारिता संवर्धन, अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय, पर्यावरण व लौकिक जीवन का शायद कोई ऐसा पक्ष हो जो इस युगव्यास की लेखनी से अछूता रहा हो। आचार्यश्री ने अपने 80 वर्ष के जीवनकाल में खुद के बलबूते सुगढ़ मानवों को गढ़ने की टकसाल के रूप में जिस गायत्री तीर्थ शांतिकुंज की आधारशिला रखी थी; आज वह करोड़ों की सदस्य संख्या वाले अखिल विश्व गायत्री परिवार बनकर भारत के सांस्कृतिक पुनरोत्थान में जुटा हुआ है।

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