पाकिस्तान में बच्चों के निकाह को लेकर एक कानून पारित हुआ है। मगर यह केवल और केवल इस्लामाबाद के लिए ही लागू हुआ है। इस कानून में बच्चों के निकाह पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस कानून को एक बहुत ही आवश्यक कानून बताया गया है। संसद के दोनों ही सदनों में इस पर बहस हुई और इस पर सर्वसम्मति से सहमत होते हुए इसे पारित कर दिया गया और अब उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। पाकिस्तान में बच्चों का निकाह बहुत आम बात है और इस विषय को लेकर कार्यकर्ता कई प्रकार की आवाजें भी उठाते रहते हैं। अब पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के लिए इसे लागू किया जाना है।
इस विधेयक पर चर्चा करते हुए पूर्व जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान ने कहा कि यह विधेयक बहुत ही शक्तिशाली संदेश भेजेगा। यह देश के लिए, हमारे विकास के साथियों के लिए और महिलाओं के लिए, जिनके अधिकारों की रक्षा की गई है, एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।
जहाँ, वहाँ की संसद में बच्चों के निकाह को प्रतिबंधित करने पर जोर दिया जा रहा है तो वहीं इस्लामी मुल्क में इस्लाम की बात करने वाले लोगों को इस कानून से समस्या है। पाकिस्तान के कई मौलवियों ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से यह अनुरोध किया है कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर न करें। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरी चाइल्ड मेरिज रीस्ट्रैन्ट बिल 2025 को राष्ट्रपति जरदारी के पास दोनों सदनों से पारित होने के बाद भेज गया है।
मगर काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियॉलॉजी ने अनुरोध किया है कि 18 वर्ष से पहले निकाह न किये जाने के विधेयक पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर न करें, क्योंकि यह इस्लामी कानून के खिलाफ है। इस विधेयक को पश्चिमी षड्यन्त्र बताते हुए इस संस्था ने कहा है कि इस विधेयक को बिना इस संस्था की सलाह और परामर्श के पारित किया गया है।
काउंसिल को पाकिस्तान में संवैधानिक संस्था का दर्जा प्राप्त है। इसकी स्थापना 1962 में जनरल अयूब खान के शासन के दौरान की गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य है पाकिस्तान में सरकार और संसद को इस्लामिक मामलों को लेकर कानूनी दिशा प्रदान करना।
अब काउंसिल का कहना है कि आखिर कैसे उसकी सलाह के बिना इस विधेयक पर संसद में चर्चा हुई। इस विधेयक का विरोध करते हुए काउंसिल के सदस्य और जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ) के प्रतिनिधि ने तर्क दिया कि यह विधेयक हमारे समाज और तहजीब के खिलाफ है।
इसे उन्होनें परिवार तोड़ने के लिए पश्चिमी साजिश बताया। मौलाना जलालुद्दीन ने यह कहा कि कोई भी विधेयक कुरआन और सुन्नाह की जगह नहीं ले सकता है। firstpost ने डॉन के हवाले से इस विधेयक के विषय में लिखा है कि आज के समय में यह साबित होता है कि बच्चों के निकाह से दोनों ही लिंगों के बच्चों को नुकसान होता है और खासतौर पर लड़कियों को, जो मासिक की उम्र में पहुंचते ही बच्चे पैदा करने में सक्षम हो जाती हैं। यह बच्चों के मानवाधिकार का उल्लंघन है। अब इस्लामाबाद में लड़का हो या लड़की किसी की भी शादी 18 वर्ष से पहले नहीं हो सकती है।
मगर इसे लेकर जिस तरह मौलवी मुखर हुए हैं, और इसे इस्लाम के खिलाफ बता रहे हैं, उससे यह आशंका तो उठती ही है कि क्या यह विधेयक कानून बन पाएगा? आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में लगभग 18% लड़कियों का निकाह 18 वर्ष से पहले कर दिया जाता है और इसे लेकर बात-बार चिंता भी जताई गई है। यह दर एशिया में सबसे ज्यादा है।
https://Twitter.com/UNICEF_Pakistan/status/1927990880679477700
मगर अब जिस प्रकार से मौलवी इसका विरोध कर रहे हैं, उसे लेकर सोशल मीडिया पर भी लोग कह रहे हैं कि आखिर बच्चों के निकाह को रोकना इस्लाम विरोधी कैसे हो सकता है?
https://Twitter.com/LeoKearse/status/1927878970139189402?
इस पर बाहर के देशों के यूजर्स कह रहे हैं कि पाकिस्तान में इसे प्रतिबंधित किया जाएगा तो वहाँ से ऐसे लोग यहाँ आ जाएंगे, जैसा वे दशकों से यहाँ करते हुए आ रहे हैं, जहाँ पर कज़िन्स में शादी करना या फिर ब्रिटिश लड़कियों के साथ बलात्कार करना उनके कानून के अनुसार गलत नहीं है। ब्रिटेन के लोग इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि कैसे वहाँ से लोग आकर ब्रिटेन में उन कुरीतियों को फैला रहे हैं, जो ब्रिटेन का हिस्सा नहीं हैं।
यह भी देखना होगा कि क्या पाकिस्तान में इस्लामाबाद में यह विधेयक लागू होकर कानून बन पाता है या फिर कट्टरपंथियों के दबाव में इसे वापस किया जाता है?
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