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Dr. Jayant Narlikar का निधन, पीएम मोदी और राष्ट्रपति ने जताया दुःख

प्रसिद्ध खगोलशास्त्री, लेखक और विज्ञान संचारक डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का 86 वर्ष की उम्र में मंगलवार तड़के पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया।

by WEB DESK
May 20, 2025, 04:48 pm IST
in भारत, महाराष्ट्र
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मुंबई (हि.स.) । प्रसिद्ध खगोलशास्त्री, लेखक और विज्ञान संचारक डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का 86 वर्ष की उम्र में मंगलवार तड़के पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उनके निधन से भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में शोक की लहर है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने आज कैबिनेट की बैठक में डॉ. जयंत नार्लीकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है, साथ ही राजकीय सम्मान से उनका अंतिम संस्कार किए जाने का आदेश दिया है।

डॉ. जयंत नार्लीकर परिवार के सदस्यों के अनुसार, उनका जन्म 19 जुलाई 1938 को कोल्हापुर में हुआ था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. करने वाले नार्लीकर ने ब्रह्माण्ड विज्ञान और सापेक्षता पर महत्वपूर्ण शोध किया था। उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर ‘हॉयल-नार्लीकर सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) और इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी (आईयूसीएए) में बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने विज्ञान के प्रसार के लिए मराठी में कई किताबें भी लिखीं।

विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित

डॉ. जयंत नार्लीकर को पद्म भूषण, पद्म विभूषण और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनके कार्य से भारतीय खगोल विज्ञान को वैश्विक सम्मान मिला। उन्होंने विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए ‘वायरस’, ‘यक्ष का उपहार’, ‘अरस्तू का संदेश’ और ‘ब्रह्मांड के सात आश्चर्य’ जैसी मराठी-अंग्रेजी पुस्तकें लिखीं। उनके लेखन ने खगोल विज्ञान को जनसाधारण तक पहुंचाया और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संचार किया।

राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने शोक व्यक्त किया

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को खगोल भौतिकी के क्षेत्र के दिग्गज डॉ. जयंत नार्लीकर के निधन पर शोक व्यक्त किया।

राष्ट्रपति ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि खगोल वैज्ञानिक डॉ. जयंत नार्लीकर के निधन की खबर बेहद दुखद है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित वैज्ञानिक डॉ. नार्लीकर ने अपने काम के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी है जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके जुनून ने बड़ी संख्या में लोगों, खासकर युवाओं को शिक्षित करने में मदद की। मैं उनके परिवार के सदस्यों, दोस्तों और प्रशंसकों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।

Deeply saddened by the passing of Dr. MR Srinivasan whose contribution to India’s nuclear energy development program has been extraordinary. His contribution to India’s energy security and scientific development will always be remembered. His legacy will continue to inspire…

— President of India (@rashtrapatibhvn) May 20, 2025


प्रधानमंत्री ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि डॉ. जयंत नार्लीकर का निधन वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ी क्षति है। वह विशेष रूप से खगोल भौतिकी के क्षेत्र में एक महान शख्सियत थे। उनके अग्रणी कार्यों, खासकर प्रमुख सैद्धांतिक रूपरेखाओं को शोधकर्ताओं की पीढ़ियों द्वारा महत्व दिया जाता रहेगा। उन्होंने एक संस्थान निर्माता के रूप में अपनी पहचान बनाई, युवाओं के लिए सीखने और नवाचार के केंद्रों को तैयार किया। उनके लेखन ने विज्ञान को आम नागरिकों तक पहुंचाने में भी बहुत मदद की है। इस दुख की घड़ी में उनके परिवार और दोस्तों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं।

The passing of Dr. Jayant Narlikar is a monumental loss to the scientific community. He was a luminary, especially in the field of astrophysics. His pioneering works, especially key theoretical frameworks will be valued by generations of researchers. He made a mark as an…

— Narendra Modi (@narendramodi) May 20, 2025


सीएम फडणवीस ने परिवार से की बात

वहीं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डॉ. नार्लीकर की बेटी से फोन पर बातचीत कर उन्हें सांत्वना दी। मुख्यमंत्री ने संबंधित एजेंसियों को डॉ. नार्लीकर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार का निर्देश दिया। इस बीच आज राज्य कैबिनेट की बैठक में डॉ. जयंत नार्लीकर के निधन पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

अपने शोक संदेश में मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा, ‘डॉ. भारतीय खगोल विज्ञान के लिए एक ठोस आधार तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नार्लीकर ने अमूल्य योगदान दिया। अपने गणितज्ञ पिता से विरासत लेते हुए डॉ. नार्लीकर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खगोलीय अनुसंधान में बहुमूल्य योगदान दिया। उनके शोध कार्य को दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों द्वारा मान्यता दी गई है। भारत लौटने पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी केंद्र की स्थापना की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने इसका प्रबंधन भी अच्छी तरह से किया। उन्होंने इस संस्थान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा और अनुसंधान के उत्कृष्टता केंद्र के रूप में भी स्थापित किया। ‘बिग बैंग थ्योरी’ पर काम करते हुए, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ के ब्रह्मांड विज्ञान आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

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