आज जब वैश्विक मंच पर शांति, कूटनीति और आपसी सहयोग की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है, तुर्किये जैसे एक ऐतिहासिक इस्लामी देश द्वारा पाकिस्तान को युद्धकाल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहायता देना न केवल भारत जैसे शांतिप्रिय देश के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह इस्लाम के मूल मानवीय सिद्धांतों, ऐतिहासिक परंपराओं और भौगोलिक संतुलन के विरुद्ध भी है।
1. तुर्किये-पाकिस्तान संबंधों की पृष्ठभूमि
तुर्किये और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध लंबे समय से चले आ रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में तुर्क सरकार, विशेषकर एर्दोआन शासनकाल में, इस्लामी एकता की आड़ में उन देशों के साथ खड़े हो रही है जो भारत के खिलाफ मुखर हैं- जैसे पाकिस्तान और अज़रबैजान। यह रुख़ केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामरिक भी है।
तुर्किये ने संयुक्त राष्ट्र, OIC और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-विरोधी बयान दिए हैं, और यह न केवल भारत की संप्रभुता के विरुद्ध है बल्कि दक्षिण एशिया में स्थायित्व के लिए भी एक खतरा बन चुका है।
2. भारत की ऐतिहासिक मित्रता और समर्थन : तुर्किये से लेकर मुस्लिम जगत तक
भारत, जिसने कभी भी तुर्क जनता के साथ दुश्मनी नहीं रखी — प्रथम विश्व युद्ध के दौरान खिलाफत आंदोलन के माध्यम से तुर्की में उस्मानी खलीफा के लिए भारतीय मुसलमानों ने बड़े स्तर पर समर्थन किया था। आज भी भारत में तुर्की के प्रति एक ऐतिहासिक सद्भावना रही है।
भारत ने कभी भी किसी मुस्लिम देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया, और न ही इस्लामी मसलों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का औज़ार बनाया। भारत का रवैया सदैव एक समन्वयकारी, बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष रहा है।
3. तुर्किये का पाकिस्तान को समर्थन: भारत के हितों के विरुद्ध
तुर्किये यदि युद्ध या आतंकवाद से ग्रस्त किसी क्षेत्र में पाकिस्तान का समर्थन करता है — चाहे वो कश्मीर के मुद्दे पर हो, या सामरिक उपकरणों की आपूर्ति के रूप में — तो यह भारत की सुरक्षा, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सीधा खतरा बन जाता है।
भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है जो आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकवादी संगठनों द्वारा भारत में किए गए हमलों की विश्वसनीय रिपोर्ट्स और सबूत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किए जा चुके हैं।
ऐसे में तुर्किये का पाकिस्तान का समर्थन करना केवल भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति व्यवस्था के लिए भी गलत संदेश देता है।
4. मानवीय मूल्यों और इस्लामी उसूलों का उल्लंघन
इस्लाम का मूल सन्देश शांति (सलाम), न्याय (अदल) और पड़ोसी देशों के साथ सद्भाव (हुस्ने सुलूक) पर आधारित है। क़ुरआन और हदीस बार-बार यह कहते हैं कि:
• “और यदि दो मुस्लिम गुटों में लड़ाई हो जाए, तो उनके बीच सुलह करा दो।” (क़ुरआन, सूरह अल-हुजुरात 49:9)
• “किसी निर्दोष की हत्या समस्त मानवता की हत्या के समान है।” (सूरह अल-मायदा 5:32)
क्या पाकिस्तान जैसे देश का समर्थन, जिसने बार-बार आतंकवादियों को संरक्षण दिया है, इस्लाम के इन उसूलों के अनुकूल कहा जा सकता है?
एर्दोआन सरकार का रुख़ अगर वाक़ई इस्लामी एकता और मानवता पर आधारित होता, तो वह भारत जैसे एक शांतिप्रिय देश के विरुद्ध खड़े होने के बजाय सुलह की भूमिका निभाता।
5. भारत में मुसलमानों की स्थिति: तुर्किये की आलोचना अनुचित
तुर्किये द्वारा भारत में मुसलमानों की स्थिति को लेकर की गई टिप्पणियाँ न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत हैं, बल्कि भारत के लाखों मुसलमानों की देशभक्ति और भूमिका को भी अपमानित करती हैं।
भारत में मुस्लिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, फ़िल्मकार, खिलाड़ी, शिक्षक और धर्मगुरु हर क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। क्या तुर्की या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की यही स्थिति है?
तुर्किये का पाकिस्तान को युद्धकाल में समर्थन देना केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे मुस्लिम जगत, मानवता और इस्लामी विचारधारा के लिए भी चिंतन का विषय है। इस्लाम, राजनीति और शक्ति के खेल का हथियार नहीं बल्कि अमन, इंसाफ और बराबरी का संदेश देता है।
भारत को चाहिए कि वह इस स्थिति में नैतिक उच्चता बनाए रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तथ्य प्रस्तुत करे और तुर्किये जैसे देशों को शांति एवं सच्चे इस्लामी मूल्यों की ओर प्रेरित करे। साथ ही भारत के मुसलमानों को भी आगे आकर यह सन्देश देना चाहिए कि हम भारत के साथ हैं — क्योंकि भारत ही हमारा वतन, और अमन ही हमारा रास्ता है। जय हिन्द
संदर्भ
1. क़ुरआन शरीफ़ – सूरह अल-हुजुरात, अल-मायदा
2. भारत का विदेश नीति दस्तावेज़ – MEA.gov.in
3. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद रिपोर्ट्स – आतंकवाद पर भारत के वक्तव्य
4. खिलाफ़त आंदोलन का इतिहास – मौलाना मोहम्मद अली, शौकत अली के लेखन
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