‘ऑपरेशन सिंदूर’ युद्ध नहीं, भारत की आत्मा का प्रतिकार है : जब राष्ट्र की अस्मिता ही अस्त्र बन जाए!
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‘ऑपरेशन सिंदूर’ युद्ध नहीं, भारत की आत्मा का प्रतिकार है : जब राष्ट्र की अस्मिता ही अस्त्र बन जाए!

सिंदूर केवल नाम नहीं, भारत की अस्मिता का प्रतीक बन गया। यह अभियान प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बदली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का जीवंत प्रमाण है।

by अक्षत पुष्पम्
May 9, 2025, 03:52 pm IST
in भारत, मत अभिमत
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले के 14 दिन बाद 7 मई 2025 को भारत ने एक निर्णायक प्रतिकार करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में आतंक के विरुद्ध सशक्त अभियान चलाया। यह ऑपरेशन मात्र एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, बल्कि भारतीय राज्य की संप्रभुता, उसकी सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्र की आत्मा की रक्षा का प्रतीक बन गया। इसका नाम ‘सिंदूर’ भारतीय परंपरा, नारी गरिमा और सांस्कृतिक मूल्यों से गहराई से जुड़ा हुआ है। सिंदूर भारतीय नारी के दांपत्य प्रेम, समर्पण, आत्मबल और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है। यह केवल एक सौंदर्य चिह्न नहीं, बल्कि अस्तित्व और अस्मिता की निशानी है।

जब भारत सरकार और सेना ने इस सैन्य प्रतिकार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया, तो यह एक गूढ़ सांस्कृतिक और भावनात्मक संदेश था जो युद्ध केवल सीमा या आतंकियों के विरुद्ध नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का भी था जो भारत की आत्मा में रची-बसी है।

भारत सरकार ने इस हमले के बाद जिस तीव्रता, स्पष्टता और दृढ़ता से प्रतिक्रिया दी, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विकसित हो रहे राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण का प्रमाण है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि अब भारत रक्षात्मक नहीं, बल्कि निर्णायक और निवारक रणनीति को अपनाएगा। गृहमंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, खुफिया एजेंसियों और भारतीय सेना के बीच जिस प्रकार की समन्वित योजना बनी, वह केवल तकनीकी या कूटनीतिक नहीं थी, बल्कि उसमें एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश की आंतरिक एवं सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा की आकांक्षा भी सम्मिलित थी। यह सरकार की उस बदली हुई सोच को दर्शाता है, जिसमें हर आतंकी कृत्य का उत्तर केवल ‘निंदा’ नहीं, बल्कि ‘निर्णय’ है।

भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को जिस प्रकार अंजाम दिया, वह उसकी उच्च रणनीतिक क्षमता, जमीनी खुफिया नेटवर्क और नैतिक कर्तव्यबोध का परिचायक है। सटीक सर्जिकल कार्रवाई, सीमाओं पर आतंकियों के ठिकानों की ध्वस्तीकरण, स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा का पूर्ण ध्यान और आतंकियों की सप्लाई चेन को तोड़ने की योजना, सब इस बात के प्रमाण हैं कि भारतीय सेना अब न केवल रक्षा करती है, बल्कि सशक्त निवारक क्षमता भी विकसित कर चुकी है। सेना ने यह संदेश स्पष्ट किया कि भारतीय गणराज्य की गरिमा के विरुद्ध उठे प्रत्येक हाथ को निर्णायक रूप से जवाब मिलेगा।

इस सैन्य कार्रवाई का नाम ‘सिंदूर’ रखना, इस पूरे अभियान को एक गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आयाम देता है। भारतीय इतिहास में यह पहला अवसर है जब किसी सैन्य ऑपरेशन को इतने भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रतीक के साथ जोड़ा गया। सिंदूर नारी की प्रतिष्ठा का प्रतीक है, और जब राष्ट्र उसे अपने सैन्य अभियान के शीर्ष पर रखता है, तो यह उसकी मूल चेतना की घोषणा बन जाती है। हम अपने देश की अस्मिता की उसी तरह रक्षा करेंगे, जैसे एक स्त्री अपने सिंदूर की रक्षा करती है। यह नाम भारत की परंपरा और आधुनिक रणनीतिक सोच के अद्वितीय संगम को दर्शाता है।

भारत का इतिहास केवल साम्राज्यों और युद्धों का इतिहास नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवंत सभ्यता का इतिहास है जो सहिष्णुता, नैतिकता और न्याय की नींव पर टिकी रही है। सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर मौर्य, गुप्त, चोल और विजयनगर जैसे राजवंशों ने यह बार-बार सिद्ध किया है कि वह शांति चाहता है, परंतु यदि उसकी अस्मिता, संस्कृति या नागरिकों पर आक्रमण हुआ, तो वह प्रतिकार करने में संकोच नहीं करता। सम्राट अशोक से लेकर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई और नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक, भारत की परंपरा में प्रतिरोध नैतिकता से जुड़ा हुआ रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से किया गया प्रतिकार और दूसरी ओर नेताजी की आज़ाद हिंद फौज का सशस्त्र आंदोलन, दोनों ही इस बात के प्रतीक हैं कि भारत का संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि गहरे सांस्कृतिक और नैतिक आयामों वाला रहा है।

हमारी राज्य” की भारतीय अवधारणा महज एक प्रशासनिक ढांचा नहीं है, बल्कि यह उस जीवंत भावना का रूप है जो भाषाई, धार्मिक, जातीय, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधताओं के बीच समरसता और समन्वय को जन्म देती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित “एकता और अखण्डता” का भाव इस विचार को मूर्त करता है कि राष्ट्र की पहचान केवल उसकी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसमें बसने वाले प्रत्येक नागरिक के अधिकार, सम्मान और सहभागिता से जुड़ी है। यही कारण है कि भारत ने बार-बार आतंरिक और बाह्य संकटों के बावजूद अपनी राज्य-संरचना की अक्षुण्णता को बनाए रखा है। चाहे वह 1947 के विभाजन के बाद रियासतों का एकीकरण हो, चाहे 1965 का भारत-पाक युद्ध हो, 1971 की मुक्ति संग्राम की लड़ाई, या 1999 का कारगिल युद्ध, भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर असाधारण वीरता और नैतिक बल का प्रदर्शन किया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसी परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति है, जहाँ सैन्य साहस, सांस्कृतिक चेतना और राजनीतिक संकल्प एकजुट होकर राष्ट्र की आत्मा की रक्षा करते हैं।

इस अभियान की सफलता ने आतंकी संगठनों के मनोबल को गंभीर रूप से झटका दिया है। उनके नेटवर्क, रणनीति और संसाधनों को सीमित किया गया, और स्थानीय नागरिकों में विश्वास और सुरक्षा की भावना को पुनर्स्थापित किया गया। भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के विरुद्ध उसकी नीति अब केवल आत्म-रक्षा तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि प्रतिरोध और प्री-एम्पटिव स्ट्राइक की रणनीति को अपनाया जाएगा। यह एक नई सुरक्षा नीति का संकेत है जिसमें ‘कृपा’ नहीं, बल्कि ‘कर्तव्य’ का मार्ग चुना गया है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को केवल सैन्य पराक्रम के चश्मे से देखना अपर्याप्त होगा। यह अभियान एक वैचारिक घोषणा थी कि अब भारत सुरक्षा और कूटनीति के पुराने प्रतिमानों को पुनर्परिभाषित कर रहा है। वैश्विक राजनीति में जहां कई राष्ट्र आतंकवाद के मुद्दे पर अस्पष्ट रुख अपनाते हैं, वहीं भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी धरती पर हिंसा के किसी भी स्वरूप को सहन नहीं करेगा। यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को और अधिक मज़बूत करता है, विशेषकर तब जब वह संयुक्त राष्ट्र, G-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर आतंकवाद के विरुद्ध ठोस नीतियों की मांग करता आया है।

यह अभियान उस बदलते भारत का भी प्रतीक है जो तकनीक, रणनीति और भावनात्मक शक्ति का सम्मिलन कर रहा है। आधुनिक ड्रोन तकनीक, सटीक खुफिया सूचना, और स्थानीय सहयोग से मिली सफलता यह दर्शाती है कि भारत अब युद्ध के पुराने औज़ारों पर निर्भर नहीं, बल्कि नवाचार और त्वरित निर्णय क्षमता पर केंद्रित है। साथ ही, भारत के सुरक्षा बलों द्वारा स्थानीय नागरिकों के हितों का विशेष ध्यान रखना यह संकेत देता है कि देश की सुरक्षा नीति केवल ‘दमन’ नहीं, बल्कि ‘संवेदनशीलता’ और ‘सहभागिता’ का भी मूल्य रखती है।

इस ऑपरेशन के माध्यम से भारत ने अपने नागरिकों को यह विश्वास दिलाया है कि राज्य उनके लिए केवल शासन करने वाला ढांचा नहीं, बल्कि रक्षक और संरक्षक भी है। यह विश्वास लोकतंत्र की आत्मा को और अधिक पुष्ट करता है। वास्तव में, यह केवल एक सैन्य सफलता नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्र-राज्य की संवेदनशील, शक्तिशाली और सांस्कृतिक आत्मा का जीवंत उदाहरण है। यह उस भारत की घोषणा है जो अब चुप नहीं रहेगा, जो अब केवल सुनकर नहीं सहता, बल्कि उठकर पूरी सम्मान और गरिमा के साथ उत्तर देता है । और जब उस उत्तर को भारत के ‘सिंदूर’ जैसे प्रतीक से जोड़ा जाता है, तब वह उत्तर केवल गोला-बारूद का नहीं होता, बल्कि एक पूरे राष्ट्र की चेतना का घोष होता है । यह एक ऐसा घोष जो आने वाले समय में आतंकवाद के विरुद्ध भारत के रुख को परिभाषित करता रहेगा।

लेखक – सहायक आचार्य, भारती महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय भारत

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