पहलगाम में हिंदुओं के नरसंहार के बाद पूरी दुनिया सांस रोके इस बात का इंतजार कर रही है कि भारत का जवाब क्या होगा! अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद शेष राष्ट्र से एकीकरण, शांतिपूर्ण चुनाव और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ सामान्य स्थिति की ओर लौटते कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के कई कारण और कई मायने हैं। इसके नतीजे दूरगामी होंगे। हां, एक बात तय है कि धर्म और नाम पूछकर किए गए इस नरसंहार का जवाब बहुत कड़ा और करारा होगा। सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया गया है, कुछ कूटनीितक लगामें कसी गई हैं लेकिन इस रक्तपात की सजा बस इतनी ही नहीं रहने वाली, इसे तय समझिए।

वरिष्ठ पत्रकार
पहलगाम नरसंहार को जानने के लिए हमें यह समझना होगा कि पाकिस्तान की नीति, नीयत और मंशा क्या है? मंशा वही है, जो आजादी से पूर्व के भारत में ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के समय थी। वही मानसिकता, जो पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने दोहराई। हमले से कुछ दिन पहले प्रवासी पाकिस्तानियों के एक सम्मेलन में पाकिस्तानी जनरल ने द्विराष्ट्र सिद्धांत को दोहराते हुए कहा था, ‘‘हमारे बुजुर्गों ने पाकिस्तान का निर्माण यह सोचकर किया था कि हम हिंदुओं से पूरी तरह से अलग हैं। हमारी परंपराएं, हमारा मजहब, हमारे रीति-रिवाज, हमारी सोच, सब कुछ हिंदुओं से पूरी तरह अलग है। कश्मीर हमारे गले की नस है और हम अपने कश्मीरी भाइयों और बहनों को अकेले नहीं रहने देंगे।’’
पाकिस्तानी सेना का सबसे बड़ा जनरल यह बयान दे और उसके बाद नाम और धर्म पूछ-पूछ कर हिंदुओं का नरसंहार हो जाए, तो कड़ी तो जुड़ती है। मुहम्मद अली जिन्ना, लियाकत खान, अयूब खान, जिया उल हक से लेकर परवेज मुशर्ऱफ तक, पाकिस्तान के तख्त पर जो भी बैठा, वह कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का सपना लेकर दुनिया से चला गया। आसिम मुनीर भी यह ख्वाब बुनते दुनिया से जाएंगे। खुद उन्हें और पाकिस्तान के हर अक्लमंद व्यक्ति को अच्छे से पता है कि कश्मीर भारत का हिस्सा है और रहेगा। इसके लिए भारत ने पाकिस्तान की तरफ से होने वाली हर शरारत, हर युद्ध और सीमा पार आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब दिया है। आगे भी देगा। इसे जानते-बूझते कश्मीर के राग को अलापना आखिर पाकिस्तानी नेतृत्व की मजबूरी क्यों है?
आतंक का तरीका हमास जैसा

कश्मीर के पहलगाम में जो आतंकी हमला हुआ, उसका तरीका हमास के आतंकी हमले जैसा है। हमास के आतंकियों ने इसी तरह 7 अक्तूबर, 2023 को इस्राएल पर हमला कर 1,300 इस्राएली नागरिकों की हत्या कर दी थी। पहलगाम में भी आतंकियों ने पहचान के आधार पर हिंदुओं को निशाना बनाया। इस हमले से दो दिन पहले पाकिस्तान के बहावलपुर में हमास और जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष आतंकियों की बैठक हुई थी।
भारत के खिलाफ आतंकी संगठनों को एकजुट करने में पाकिस्तान की बड़ी भूमिका है। उसकी सरपरस्ती में ही आतंकी हमले की योजना बनी थी। पहलगाम में हमले से ठीक पहले हमास के शीर्ष आतंकी पीओजेके में बहावलपुर स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय आए थे। कश्मीर में आतंकी हमले के संकेत इस साल फरवरी से मिल रहे थे, क्योंकि पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में 2 फरवरी को लश्कर-ए-तैयबा के कमांडरों की दो बैठकें हुई थीं।
इनमें से एक बैठक को पहलगाम नरसंहार के मास्टरमाइंड सैफुल्लाह खालिद कसूरी ने संबोधित किया था। उसने साफ कहा था,‘हम कश्मीर में अपनी गतिविधयां तेज करेंगे और अगले एक साल में कश्मीर के हालात बदल देंगे।’ इसके बाद 5 फरवरी को पीओजेके के रावलकोट में हमास, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और कुछ अन्य आतंकी संगठनों के शीर्ष आतंकी एक साथ दिखे थे। हमास के आतंकी जैश और लश्कर के बुलावे पर आए थे और उन्होंने कश्मीर सॉलिडेटरी डे (कश्मीर एकजुटता दिवस) के दिन अल अक्सा फ्लड डे (7 अक्तूबर को इस्राएल के खिलाफ संगठित आतंकी हमला दिवस) मनाया था।
पाकिस्तानी फौज को पहलगाम में इस आतंकी हमले की योजना की जानकारी थी, यह पाकिस्तानी फौज के प्रमुख आसिम मुनीर के बयान से स्पष्ट है। हिंदुओं के इस नरसंहार की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है। आतंकियों ने इस घटना की वीडियोग्राफी भी की। गत मार्च महीने में भी भारत की गुप्तचर एजेंसियों को यह जानकारी मिली थी कि आतंकी जम्मू-कश्मीर में हमले की ताक में हैं। चूंकि अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने वाली है, इसलिए सुरक्षा एजेंसियों को लगा कि आतंकी उस समय हमला करेंगे। हालांकि सुरक्षा एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में कुछ संवेदनशील इलाकों को चिह्नित कर सुरक्षा के इंतजाम भी किए थे, लेकिन इनमें पहलगाम की बैसरन घाटी का नाम नहीं था। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में लगभग 60 विदेशी आतंकी सक्रिय हैं, इनमें लश्कर के 35, जैश के 21 और हिज्बुल मुजाहिदीन के 4 आतंकी हैं। इसके अलावा, लगभग 20 स्थानीय आतंकी भी सक्रिय बताए जाते हैं।
विद्रोह की बढ़ती आग
द्विराष्ट्र सिद्धांत का ढोल असल में उसी दिन फट गया था, जब बांग्लादेश बना। यदि इस्लाम ही उम्मा को बांधे रखने वाला धागा था, तो क्यों पूर्वी पाकिस्तान ने खुद को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग कर लिया। यानी यह तो साफ है कि सिर्फ इस्लाम के नाम पर बनाया गया एक देश महज कृत्रिम इंतजाम से ज्यादा कुछ नहीं है। 1971 की जंग से न सिर्फ बांग्लादेश बना, बल्कि यह भी साफ हो गया कि आमने-सामने की जंग में पाकिस्तान कभी भारत को हरा नहीं सकेगा। यहीं से सीमा पार आतंकवाद की शुरुआत हुई।
एक डरपोक और हारा हुआ मुल्क भाड़े के लड़ाकों के जरिये अशांति फैलाने की नीति पर चल निकला। लेकिन बांग्लादेश जिस तरीके से बना, उसने पाकिस्तान में अलग-अलग क्षेत्रों की स्वतंत्रता की भावना को जन्म दे दिया। अब बलूचिस्तान से लेकर बाल्टिस्तान तक आजादी की आग लगी हुई है। बलूच लड़ाकों ने पाकिस्तानी सेना की नाक में दम कर रखा है। उन्होंने हाल में एक पूरी ट्रेन को ही अगवा कर लिया था, जिसमें पाकिस्तानी सैनिक सवार थे।
कश्मीर को हासिल करने के सपने देखने वाली पाकिस्तानी सरकार और फौज का पसीना छूट गया, लेकिन वह इस ट्रेन और अपने बंधक सैनिकों को नहीं छुड़ा पाई। बलूच लड़ाकों ने 11 मार्च को ट्रेन को अगवा किया था और 13 मार्च को सरकार ने ट्रेन और बंधकों को छुड़ाने का दावा किया था, लेकिन बलूच लड़ाकों के साथ फाैज की झड़प 17 मार्च तक चली थी। 48 घंटे की समयसीमा बीतने के बाद अंतत: बलूच लड़ाकों ने सभी 214 पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर बाकायदा उनकी सूची जारी की थी।
बलूचिस्तान में चीन ने भारी निवेश किया हुआ है। बलूच लड़ाके चीनी इंजीनियरों और कामगारों को भी निशाना बना रहे हैं। उधर, तहरीक-ए-तालिबान (पाकिस्तान) पूर्व संघीय जनजातीय प्रशासनिक क्षेत्र (फाटा) और खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जंग लड़ रहा है। अफगानिस्तान की ओर से तालिबान ने पश्तोभाषी इलाकों पर दावा जताते हुए दबाव बना रखा है और दोनों ओर से मुठभेड़ बात हो गई है। अभी हाल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार काबुल जाकर तालिबान के सामने गिड़गिड़ाए कि टीपीपी के आतंकवादियों पर सख्ती की जाए, लेकिन तालिबान ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया।
न इज्जत रही, न खाैफ
पाकिस्तान के अंदर अब न तो फौज की इज्जत है और न ही खौफ है। सेना ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रिय सरकार को जिस तरीके से गिराया और जिस तरह तहरीक-ए-इंसाफ के नेताओं को जेल भेजा गया, उससे पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अवाम के एक बड़े वर्ग में नाराजगी है। खुद पाकिस्तानी सेना के अंदर असंतोष है। एक बहुत बड़ा वर्ग मौजूदा जनरल मुनीर के खिलाफ जाकर इमरान खान से सहयोग कर रहा है। जनरल मुनीर ने ब्रिगेडियर शोएब के नेतृत्व में इसकी जांच कराई। सौ से अधिक अधिकारियों के खिलाफ इमरान खान से सहानुभूति रखने के आरोप में कार्रवाई की गई है।
आर्थिक रूप से बदहाल
भारत के साथ संबंध बिगाड़ कर पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है। द्विराष्ट्र सिद्धांत की नींव पर बना पाकिस्तान आज बदतर परिस्थितियों से गुजर रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह हिचकोले खा रही है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, उसके 74 प्रतिशत नागरिक अपनी दैनिक जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे। प्रति व्यक्ति कर्ज 1200 डॉलर तक पहुंच गया है। स्थिति यह है कि पाकिस्तान कर्ज भी नहीं चुका पा रहा और किसी तरह नए कर्ज लेकर पुराने कर्ज चुका रहा है। लेकिन अंदरूनी और आर्थिक चुनौतियों से निबटने की बजाए पाकिस्तान सरकार और फाैज की एक ही रट है—कश्मीर।
यही राग अलापते हुए फाैज और सरकार पाकिस्तान को एकजुट रखने और सारी समस्याओं से अपने लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश करती है। पाकिस्तान में जब भी हालात बेकाबू हुए हैं, हर फाैजी जनरल और नेता ने इसका इस्तेमाल किया है। जनरल मुनीर ने यह बात बिल्कुल ठीक कही कि कश्मीर उनकी गर्दन की नस है और अभी भारत ने उस नस को दबा रखा है। उसी बौखलाहट में पहलगाम जैसे नरसंहार को अंजाम दिया गया है। अब पाकिस्तान भारत के जवाब के इंतजार में है। यदि यह जवाब युद्ध में बदला, तो पाकिस्तान का क्या अंजाम होगा, यह सोचा भी नहीं जा सकता।
नहीं समझे दुनिया के हालात
पहलगाम नरसंहार के साथ ही भारत और पाकिस्तान में तनाव चरम पर है। लेकिन अब इस वैश्वीकरण के दौर में कोई भी तनाव सिर्फ सैन्य नहीं होता बल्कि राजनयिक, कूटनीतिक भी होता है। भारत का पलड़ा इस मायने में भारी है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जो ट्रेड वॉर चल रही है, उसमें पाकिस्तान का सबसे बड़ा हितैषी चीन बुरी तरह फंसा हुआ है। आर्डर डंपिंग (यानी माल का उत्पादन होना, लेकिन आपूर्ति न होना) की स्थिति बनी हुई है। कारखाने बंद हो रहे हैं।
ऐसे हालात में चीन को पाकिस्तान से ज्यादा जरूरत भारत की है। अमेरिकी टैरिफ से जो नुकसान होने वाला है, उसकी भरपाई वह सिर्फ भारत जैसे बड़े बाजार से कर सकता है। इसके अलावा, इकलौती सुपर पावर अमेरिका में भी सत्ता रिपब्लिकन्स के हाथ में है। ट्रंप और उनका प्रशासन इस्लामिक आतंकवाद का कट्टर विरोधी है। यूरोप अपनी उलझनों में जकड़ा है। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर के साथ भारत के रिश्ते ऐसे हैं कि वे सीधे तौर पर भारत के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते। कुल मिलाकर पाकिस्तान इस समय बिल्कुल अकेला है। उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वह तीन युद्ध भी नहीं झेल सकता। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की 24 सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आरक्षित हैं। इस बार कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाला हिस्सा ही गंवा बैठे।
क्या हैं विकल्प?
भारत के पास जवाबी कार्रवाई के कुछ विकल्प इस प्रकार हैं-
- पाकिस्तान के साथ संबंध पूरी तरह समाप्त कर दिए जाएं। उच्चायोग को भी बंद कर दिया जाए।
- सिंधु जल समझौता तो निलंबित हो ही गया है, बाकी द्विपक्षीय संधियां भी रद्द कर दी जाएं।
- पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब किया जाए, कूटनीतिक घेराबंदी की जाए।
- सैन्य कार्रवाई की जाए और पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर का एकीकरण किया जाए।
- संपूर्ण सैन्य कार्रवाई की जाए ताकि पाकिस्तान कई हिस्सों में बंट जाए।
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