जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए मजहबी आतंकवादी हमले ने न सिर्फ 26 मासूम जिंदगियां छीन लीं, बल्कि पूरे भारत को आक्रोश से भर दिया है। इस दर्दनाक हमले में महाराष्ट्र के पुणे के दो नागरिक – संतोष जगदाले और उनके दोस्त कौस्तुभ गणबोटे को मजहबी आतंकियों ने हिन्दू होने के चलते मार दिया। वे दोनों अपने परिवार के साथ घाटी में छुट्टियां मनाने गए हुए थे। इस हमले में असावरी और उनकी मां किसी तरह बच तो गईं, लेकिन उनका जीवन अब वैसा नहीं रहेगा।
वहीं जब मृतकों का अंतिम संस्कार हुआ तो उस समय के दृश्य ने वहां मौजूद लोगों को झंकझोर कर रख दिया। दरअसल संतोष जगदाले की बेटी जो पेशे से एचआर हैं। उन्होंने ने खून से सने वही कपड़े पहनकर गुरुवार को अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया जो उन्होंने हमले के समय पहन रखे थे।
यह दृश्य जब पुणे की सड़कों पर उतरा, तो हजारों आंखें नम हो गईं। वहां मौजूद लोगों के अन्दर मजहबी आतंक के खिलाफ आक्रोश उमड़ पड़ा। दृश्य ऐसा लग रहा था मानो यह सिर्फ अंतिम संस्कार नहीं, बल्कि आतंक के खिलाफ जनक्रांति का आह्वान था।”
पुणे के वैकुंठ विद्युत शवदाह गृह में जब संतोष और कौस्तुभ के अंतिम संस्कार के समय हर दिशा में सिर्फ एक ही गूंज थी- “पाकिस्तान मुर्दाबाद!”
बता दें कि संतोष जगदाले पेशे से इंटीरियर डिज़ाइनर थे और गणबोटे का स्नैक्स का कारोबार था। लेकिन वे क्या करते थे, ये अब मायने नहीं रखता, मायने रखता है कि हिन्दू होने के कारण मजहबी आतंकियों ने उनका हश्र क्या किया। क्या हिन्दू होना पर मजहबी जान ले लेंगे..? क्या कलमा ना पढने पर इस्लामिक आतंक का शिकार बनना पड़ेगा..? यही सवाल हर देशवासी के मन में गूंज रहा है।
पहलगाम नरसंहार कोई मात्र घटना नहीं थी बल्कि ये मजहबी कट्टरता का सुनियोजित नरसंहार था, जिसमें एक बेटी को खून से सने कपड़ों में दुनिया को बताना पड़ा कि “ना हम भूलेंगे, ना हम माफ़ करेंगे”
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