हाल ही में मलेशिया में 130 साल पुराने देवी श्री पथराकालीअम्मन मंदिर को ध्वस्त कर वहां एक मस्जिद की नींव रखी गई। राजधानी कुआलालंपुर में मंदिर विस्थापन की यह घटना काफी सुर्खियों में रही थी। इस बीच मलेशियाई अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें दो बच्चों के इस्लाम मत में धर्म परिवर्तन को वैध मानने की मांग की गई थी। जबकि यह धर्मांतरण बच्चों की हिंदू मां की सहमति के बिना किया गया था।
फेडेरल कोर्ट ने 9 अप्रैल को फैसला सुनाते हुए कहा कि पर्लिस स्टेट गवर्नमेंटी की रिव्यू पिटीशन में “कोई दम नहीं है”। कोर्ट ने इस दौरान तस्दीक की कि माता-पिता दोनों की सहमति के बगैर धर्मांतरण अनकॉन्स्टिनट्यूशल है।
दरअसल, यह 8 साल पुराना मामला एक हिंदू मां लोह सिउ हांग का है। हांग ने अपने तीन बच्चों की कस्टडी के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। बाद में, उन्होंने अदालत में उनके इस्लाम धर्म अपनाने को भी चुनौती दी। तीनों बच्चों का धर्मांतरण उसकी जानकारी के बिना हुआ था। इस दौरान फेडेरल कोर्ट ने इस मामले में अपना पहला निर्णय सुनाया। उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि माता-पिता दोनों की सहमति के बिना बच्चे का धर्म बदलना असंवैधानिक है।
हालांकि, हांग 2022 में राज्य उच्च न्यायालय में केस हार गईं, जिसके बाद उन्होंने अदालत में नई याचिका दायर की, जिस पर अदालत ने धर्मांतरण को अमान्य करार देते हुए अपना फैसला सुनाया है। हालांकि, पर्लिस राज्य ने अपील की और संघीय न्यायालय ने 14 मई, 2024 को उस निर्णय को बरकरार रखा। अंतिम प्रयास में, राज्य ने अक्टूबर 2024 में एक समीक्षा याचिका दायर की। इस पर न्यायालय ने यह अंतिम फैसला सुनाया।
इस मामले में हांग ने नियम 137 के तहत समीक्षा याचिका दायर की थी। दिलचस्प बात यह है कि मलेशियाई कानून में एक ऐसा प्रावधान है जिसका इस्तेमाल बहुत कम होता है। इससे पहले के एक फैसले में फेडेरल कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि पर्लिस राज्य के तर्कों को स्वीकार करने से ‘एकतरफा धार्मिक रूपांतरण की असंवैधानिक प्रथा’ को जारी रखने को प्रभावी रूप से प्रोत्साहन मिलेगा।
मलेशिया में रहते हैं करीब 20 लाख हिंदू
रिपोर्ट के मुताबिक, मलेशिया में करीब 20 लाख हिंदू आबादी है. वहीं, बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम यानी इस्लाम मजहब को मानने वाले हैं।
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