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डॉ. भीमराव अंबेडकर के इस्लाम पर विचार

भारत में मुस्लिम आक्रांता हिंदुओं के प्रति घृणा के साथ आए थे। उन्होंने नफरत फैलाई और कई हिंदू मंदिर भी जलाए।

by WEB DESK
Apr 14, 2025, 10:49 am IST
in भारत
डॉ. भीमराव अंबेडकर

डॉ. भीमराव अंबेडकर

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इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मुस्लिम आक्रांता हिंदुओं के खिलाफ घृणा का राग गाते हुए आए थे। उन्होंने न केवल घृणा ही फैलाई बल्कि वापस जाते हुए हिंदू मंदिर भी जलाए। उनकी नजर में यह एक नेक काम था और उनके लिए तो इसका परिणाम भी नकारात्मक नहीं था। उन्होंने एक सकारात्मक कार्य किया जिसे उन्होंने इस्लाम के बीज बोने का नाम दिया। इस पौधे का विकास बखूबी हुआ, यह केवल रोपा गया पौधा नहीं था बल्कि यह एक बड़ा ओक का पेड़ बन गया।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, राइटिंग्स एंड स्पीचेज, वॉल्यूम 8, पृष्ठ 64-65

अजमेर में चढ़ाई के दौरान मोहम्मद गौरी ने मंदिरों के स्तंभ और नींव तोड़कर वहां मस्जिदें बना दीं, वहां इस्लाम के कायदे कानून वाले कॉलेज और प्रतीक खड़े कर दिए। कहा जाता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1000 से अधिक मंदिर तोड़े और उसके बाद उनकी नींव पर ही मस्जिदें खड़ी कर दी। वहीं लेखक बताते हैं कि उसने दिल्ली में जामा मस्जिद बनाई और इसमें वह पत्थर और सोना लगाया जो मंदिर तुड़वाकर प्राप्त किया था। फिर उन पर कुरान की आयतें लिपिबद्ध करवा दी। इस भयावह कारनामे की चर्चा और प्रमाणों जो अभिलेखों लिपि का मिलान बताता है कि दिल्ली की मस्जिद के निर्माण में 27 मंदिरों की सामग्री होने का प्रमाण हैं।

शाहजहां की सल्तनत में भी हमें हिंदू मंदिरों के विनाश का वर्णन मिलता है। ‘बादशाहनामा’ में हिंदुओं के द्वारा मंदिरों के पुनर्निर्माण करने का उल्लेख है। “जहांपनाह ने आदेश दिया है कि बनारस और इसके आसपास के क्षेत्रों में प्रत्येक जगह जिन मंदिरों के निर्माण का कार्य चल रहा है उसका ब्यौरा रखा जाए। , पृष्ठ 59-60

इलाहाबाद रियासत से रिपोर्ट दी गई कि बनारस जिले में 76 मंदिर नष्ट करवाए गए थे।

इस्लाम: लोकतंत्र विरोधी

मुस्लिम राजनीति कितनी विकृत है यह भारतीय राज्यों में हुए कुल राजनीतिक सुधारों और मुस्लिम नेताओं के तौर तरीकों से ही देखा जा सकता है। मुसलमानों की महत्वपूर्ण चिंता लोकतंत्र नहीं है। महत्वपूर्ण चिंता यह है कि बहुमत शासन वाला लोकतंत्र हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों के संघर्ष को किस प्रकार प्रभावित करता है ? क्या यह उनको शक्तिशाली बनाएगा या कमजोर? यदि लोकतंत्र उन्हें कमजोर करेगा तो उनके पास लोकतंत्र नहीं रहेगा। मुस्लिम राज्य सड़ी गली व्यवस्था ज्यादा पसंद करेंगे।

बनिस्पत एक अच्छे तंत्र की क्योंकि वे भी हिंदुओं के मुद्दों में ही ज्यादा रुचि रखते हैं। मुस्लिम समुदाय में जो राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता आई है उसका एक और एकमात्र कारण है मुसलमान सोचते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों को एक समान संघर्ष करना चाहिए। हिंदू मुसलमानों के ऊपर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं और मुसलमान फिर से राज करने वाले समुदाय की अपनी ऐतिहासिक स्थिति को देखना चाहते हैं। तब इस संघर्ष में मजबूत ही जीतेगा, और अपनी शक्ति बढाएगा। वे ऐसी किसी भी चीज के बारे में नहीं सोचेंगे जो उनकी पद प्रतिष्ठा में कोई कमी लाने वाला हो।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, राइटिंग्स एंड स्पीचेज, वॉल्यूम 8, पृष्ठ 59-60

कुरान और संविधान में संघर्ष की स्थिति में कानून बेमानी

इन अध्यायों में डॉ. अंबेडकर ने उन कारणों की चर्चा की है जिनके कारण मुसलमानों का उग्र व्यवहार और राजनैतिक आक्रामकता को बढ़ावा मिलता है। “मुसलमानों का दिमाग किस तरह काम करता है और किन कारणों से यह प्रभावित होता है यह तब स्पष्ट होगा जब हम इस्लाम के उन बुनियादी सिद्धांतों को जो मुस्लिम राजनीति पर हावी हैं और मुसलमानों द्वारा भारतीय राजनीति में पैदा किए गए
मसलों को भी ध्यानपूर्वक देखेंगे। अन्य सभी सिद्धांतों और उसूलों के साथ इस्लाम का यह सबसे बड़ा उसूल है कि यदि कोई देश मुस्लिम शासन के अधीन नहीं है, जहां कहीं भी यदि चाहे मुस्लिम कानून और उस सरजमीं के कानून के बीच संघर्ष हो तो मुसलमानों को जमीन या देश के कानून की खिलाफत कर अपने मजहब अर्थात मुस्लिम कानून का पालन करना चाहिए।

पृष्ठ 236-237

भारतीय राष्ट्रवाद के लिए संभावित खतरा

डॉ अंबेडकर ने यह सन्दर्भ भी दिया है कि यदि एकीकृत भारत में मुसलमान पुराने ढर्रे पर ही चलते रहे, तो यह भारतीय राष्ट्रवाद के लिए बड़ा संभावित खतरा बन जाएगा।

इस्लाम एक क्लोज कॉर्पोरेशन है और इसकी विशेषता ही यह है कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच वास्तविक भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिंदू को अपना आत्मीय बंधु।​

मुसलमानों में एक और उन्माद का दुर्गुण है जो जिहाद के नाम से प्रचलित है। एक मुसलमान शासक के लिए जरूरी है कि जब तक पूरी दुनिया में इस्लाम की सत्ता न फैल जाए तब तक चैन से न बैठे। इस तरह पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी है दर- उल-इस्लाम (इस्लाम के अधीन) और दर-उल-हर्ब (युद्ध के मुहाने पर)। चाहे तो सारे देश एक श्रेणी के अधीन आयें अथवा अन्य श्रेणी में। तकनीकी तौर पर यह मुस्लिम शासकों का कर्तव्य है कि कौन ऐसा करने में सक्षम है। जो दर-उल- हर्ब को दर उल इस्लाम में परिवर्तित कर दे। भारत में मुसलमान हिजरत में रुचि लेते हैं तो वे जिहाद का हिस्सा बनने से भी हिचकेंगे नहीं।​

पृष्ठ 236-237

इस्लाम में महिलाएँ

तलाक के मामले में पतियों को जो मनमानी करने की छूट दी गई है, वह उस सुरक्षा के मायने को ध्वस्त कर देती है जो एक महिला के लिए पूर्ण स्वतंत्र और खुशहाल जीवन की बुनियादी जरूरत है। जीवन के लिए ऐसी असुरक्षा जिसे कई बार मुस्लिम महिलाएं बयां कर चुकी हैं। पतियों को जिस प्रकार की मनमानी का अधिकार मुस्लिम कानून देते हैं, वह अव्याहरिक और अमानवीय ही कहा जाएगा​।

लेकिन यह भी भुला दिया जाता है कि चार वैध पत्नियों के अतिरिक्त मुस्लिम कानून किसी मुसलमान को उसकी महिला गुलाम के साथ रहने की भी अनुमति देता है। महिला गुलाम की संख्या के विषय में कुछ नहीं कहा गया है। वे उनको बांट दी जाती हैं बिना किसी रोक के, और विवाह करने के आश्वासन के भी। सबसे बड़ी और कई बीमारियों की जड़ बहुविवाह और बिना ब्याह साथ रहने की बुराई पर एक भी शब्द व्यक्त नहीं किया गया है, जो कि मुस्लिम महिला के कष्ट का सबसे बड़ा कारण है। यह भी सच है कि क्योंकि बहुविवाह और बिन ब्याह साथ रहने का प्रचलन है जिस कारण इसे मुसलमानों ने आम व्यवहार में चलाया। महिलाओं के लिए यह किसी नर्क से कम नहीं था और पुरुषों ने इसे अपना विशेष अधिकार मानते हुए अपनी पत्नियों को गाली गलौज करने, प्रताड़ित और दुखी करने का बहाना पा लिया।​

पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ़ इण्डिया, पृष्ठ 217

गुलामी के इस मामले में कुरान मानवता की दुश्मन है और हमेशा की तरह महिलाएं इसकी सबसे बड़ी भुक्तभोगी हैं।

महिलाओं से ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती कि वे अपने कमरों से बाहर आँगन या बगीचे में घूमने जाएं। उनके कमरे घर के पिछवाड़े की तरफ रखे जाते हैं। उन सभी को चाहे वो जवान हों या वृद्धा एक ही कमरे में ठूंस दिया जाता है। उनकी उपस्थिति में पुरुष नौकर से भी काम नहीं लिया जाता।

एक महिला को केवल अपने बेटे, भाई, पिता चाचा और पति अथवा अन्य नजदीकी रिश्तेदार जिस पर भरोसा किया जा सके, को ही देखने का अधिकार है। वह प्रार्थना के लिए मस्जिद में भी नहीं जा सकती और यदि उसे जाना भी पड़े तो बुर्का पहनकर जाना पड़ेगा।

पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ़ इण्डिया, पृष्ठ 217

पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ़ इण्डिया, पृष्ठ 218

Topics: मुस्लिम महिलाओं की स्थितिAmbedkar Jayanti 2025डॉ. भीमराव अंबेडकरडॉ. अंबेडकर के इस्लाम पर विचारभारत में मुस्लिम आक्रामकतामुगल काल में मंदिर विध्वंस
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