दिल्ली विश्वविद्यालय के कमरा नं 22, कला संकाय में आज लेखक विमलोक तिवारी द्वारा रचित एवं गरूड़ प्रकाशन से प्रकाशित यायावर अधूरे एहसास पुस्तक लोकार्पण एवं पुस्तक परिचर्चा कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभ आरंभ दीप प्रज्वलन से हुआ, तत्पचात भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार माँ सरस्वती की वंदना हुई। लेखक द्वारा मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि के सम्मान के साथ कार्यक्रम आगे बढ़ा।
प्रथम वक्ता के रूप में डॉ. सोनाली चितलकर (असोसिएट प्रोफेसर, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने पुस्तक पर विचार रखते हुए लेखक के व्यक्तित्व का विश्लेषण किया और बताया कि उनमें कितनी अधिक संभवनानाएं है। लेखक के भीतर-भीतर की शालीनता पर वे गौरव का अनुभव करती है तथा एक छोटे से बच्चे के रूप में उनका सबसे पहला परिचय और आज पुस्तक के एक लेखक के रूप में विमलोक जी को देखकर वह भावुक हो उठी। उन्होंने कहा कि विमलोक की कविताओं और व्यक्तित्व में अत्यधिक समानता है।
दूसरे वक्ता के रूप में कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो.सत्यकेतु सांकृत (प्रोक्टर एवं डीन एकेडमिक अफेयर डॉ.बी. आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली) रहे। उन्होंने पुस्तक की रेशे-रेशे खोलकर व्याख्या की पुस्तक के भीतर की रचनाधर्मिता को श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कविता में एक बड़े लेखक के सभी गुण समाहित हैं और यह बात मैं पुस्तक को पढ़ने के बाद कह रहा हूं। सत्यकेतु ने यह कहा कि लेखक होना आम घटना नहीं है, बल्कि यह एक विशेष गुण है, जिसकी एक वृत्ति होती है। हर व्यक्ति साहित्यकार नहीं हो सकता है। जिसमें भी वह वृत्ति होती वह सामान्य मनुष्य से अलग होता है।कविता मनुष्य बनाने का कार्य करती है।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मौनिका अरोड़ा (वरिष्ठ अधिवक्ता ,सर्वोच्च न्यायलय एवं समाज सेविका ) ने अध्यक्षीय वक्तव्य दिया। उन्होंने कविता के बहाने जीवन में प्रेम संबंधो की जटिलता पर प्रकाश डालते हुए कविता के उदाहरण देकर संबंध के जुड़ाव व अलगाव का विश्लेषण किया। काव्य संग्रह ‘यायावर’ अधुरा एहसास के शीर्षक यायावर कविता का उदाहरण देते हुए लेखक के व्यक्तित्व प्रकाश डाला। कविताओं में टूटे मन की वेदना को देखकर उन्होंने कहा कि लेखक को प्रेम मिलता है और फिर प्रेम छूट जाता है यह आरोह-अवरोह जीवन में चलता रहता है। लेकिन, लेखक प्रत्येक क्षण अपने को संतुलित रखता है। पतझड़ के मौसम को व्याख्यायित करते हुए उन्होंने कहा कि पतझड़ के बाद ही वसंत का आनंद है।
धन्यवाद करने के लिए लेखक ने स्वयं अपनी पुस्तक की पृष्ठभूमि के बारे में बताया तथा अपनी कविताओं को अपने जीवन और आस पास के समाज से प्रेरित बताया। लेखक के धन्यवाद ज्ञापन से साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में कई महाविद्यालयों के सहायक आचार्य तथा शोधार्थी समेत दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रहे अनगिनत विद्यार्थियों की उपस्थिति रहे और कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम का संचालन सूर्यप्रकाश ने किया।
टिप्पणियाँ