पाञ्चजन्य गुरुकुलम : प्रतापानंद ने बताए गुरुकुल से डिजिटल युग तक के रहस्य
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Panchjanya Gurukulam 2025: गुरुकुल से डिजिटल युग तक, प्रतापानंद झा ने खोले अनोखे रहस्य! परंपरा और तकनीकी का अद्भुत संगम

पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित 'गुरुकुलम' कार्यक्रम में प्रतापानंद झा ने डिजिटल युग में भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण, वैदिक हेरिटेज पोर्टल और ISO सर्टिफाइड डिजिटल रिपॉजिटरी की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। परंपरा और आधुनिकता के संगम पर हुई गंभीर चर्चा।

by SHIVAM DIXIT
Apr 6, 2025, 04:21 pm IST
in भारत, गुजरात
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ध्रांगध्रा, सुरेंद्रनगर (गुजरात) । राष्ट्रीय पत्रिका पाञ्चजन्य द्वारा श्री स्वामीनारायण संस्कारधाम गुरुकुल, ध्रांगध्रा, सुरेंद्रनगर में आज 6 अप्रैल 2025 को “भारतीय ज्ञान परंपरा का विस्तार एवं आधार: गुरुकुल” विषय पर एक दिवसीय गुरुकुल केंद्रित कार्यक्रम “गुरुकुलम” का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कला केंद्र (IGNCA) के प्रतापानंद झा ने “Convergence of Tradition and Modernity in Digital Media” विषय पर अपनी बात रखी।

प्रतापानंद झा ने अपने संबोधन में कहा, “अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष जीवन के मुख्य लक्ष्य हैं। इन्हें पाने के लिए दो तरह के मार्ग हैं- प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग। मोक्ष निवृत्ति मार्ग का सूचक है, जबकि काम और अर्थ प्रवृत्ति मार्ग के सूचक हैं। धर्म इन सबके बीच सामंजस्य स्थापित करता है। इनके कार्यान्वयन के लिए हमारे यहां चतुर्दश और अष्टादश विद्याओं की एक विस्तृत योजना बनाई गई। यह रूपरेखा मुंडकोपनिषद में स्पष्ट कर दी गई थी। मुंडकोपनिषद में परा और अपरा विद्याओं का विस्तृत विवरण मिलता है। परा विद्या अक्षर विद्या है, जबकि अपरा विद्या में चारों वेद और वेदांगों का वर्णन मिलता है। जब हम वेदों की बात करते हैं, तो वेदों में केवल संहिता की बात नहीं होती। वेदों में संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद – इन सब का समग्र रूप शामिल है। इसीलिए जब हमने वैदिक हेरिटेज पोर्टल बनाया था, तो इसे इस व्यापक दृष्टिकोण के साथ तैयार किया गया।”

उन्होंने आगे कहा, “मुंडकोपनिषद से आगे बढ़ते हैं, तो इसमें दस विद्याओं को चतुर्दश विद्या बताया गया। फिर यही चतुर्दश विद्या आगे बढ़कर जब विष्णु पुराण और भविष्य पुराण की बात आती है, तो इसमें चार उपवेदों का भी समावेश किया गया – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्वशास्त्र और अर्थशास्त्र। अब अगर हम भारतीय कलाओं की बात करें, तो विष्णु धर्मोत्तर पुराण में, जो चौथी शताब्दी के आसपास का है, कला के पांच रूपों के बारे में बताया गया है। ये हैं – वाङ्मय, प्रासाद लक्षण, प्रतिमा लक्षण, चित्रसूत्र और नृत्य सूत्र। जब हम वाङ्मय की बात करते हैं, तो हम जानते हैं कि यह हमारे मौखिक परंपरा से आगे आई है। गुरु-शिष्य परंपरा से यह परंपरा विकसित हुई है। इसका सबसे बड़ा संग्रह संस्कृत में है। पूरी दुनिया में जितने भारत के पास मैन्यूस्क्रिप्ट हैं, उतने कहीं नहीं हैं। इन मैन्यूस्क्रिप्ट में 60% केवल संस्कृत में हैं। लेकिन संस्कृत केवल देवनागरी या किसी एक विशेष लिपि में नहीं लिखी गई है। संस्कृत लगभग 22 लिपियों में लिखी गई है – गुजराती, बांग्ला, तमिल, तेलुगु आदि। जब भी मैं संस्कृत के बारे में सोचता हूं, तो मुझे लगता है कि संस्कृत एक बहुत बड़ा अभिलेखागार है। इसे डिकोड करने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। लेकिन केवल संस्कृत से काम नहीं चलेगा। हमें यह भी देखना होगा कि हमारे यहां शास्त्रीय परंपरा और लोक परंपरा साथ-साथ चली हैं। इसीलिए संस्कृत के ग्रंथों का जो अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में आगमन हुआ, उसे बनाया गया, उसका अनुवाद हुआ। कई ग्रंथों पर काम हुआ और इन क्षेत्रीय ग्रंथों के आधार पर भी कई बार संस्कृत ग्रंथों में संशोधन किया गया।”

उन्होंने परंपरा और कला के एकीकरण पर जोर देते हुए कहा, “जब हम प्रासादलक्षण की बात करते हैं, तो आर्किटेक्चर की बात करते हैं। आइकनोग्राफी की बात करते हैं, तो इसके ऊपर भी काफी एकीकरण की बात आती है। अब इन सबको समावेश कैसे करें, एकीकरण कैसे करें? इसके लिए हमने गीत गोविंद पर काम किया। गीत गोविंद 12वीं शताब्दी में लिखी गई थी। इसके पदों का गायन आज भी केरल के गुरुवायुर मंदिर में हो रहा है। यह 800 साल की लंबी परंपरा का हिस्सा है। इसमें जितने भी हमारे संगीत स्कूल, नृत्य स्कूल और चित्रकला स्कूल हैं, इन सभी में इन अष्टपदियों का प्रतिनिधित्व हुआ है। इसी को एकीकृत करने के लिए हमने गीत गोविंद में काम किया, जिसे आप मल्टीमीडिया के जरिए देख सकते हैं। यह हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है।”

डिजिटल माध्यम की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “आज की तारीख में अगर हम डिजिटल माध्यम की बात करें, तो जो डेटा हम बना रहे हैं, वह अधिकतम डिजिटल माध्यम से ही बना रहे हैं। चाहे हम टेक्स्ट बना रहे हों, मैसेज बना रहे हों, किताबें बना रहे हों या फोटोग्राफी कर रहे हों, वह सब डिजिटल फॉर्मेट में हो रहा है। इस डिजिटल डेटा को लेकर भविष्य में क्या योजना है, इसे समझाना बहुत जरूरी है। इसके स्वरूप को समझना बहुत जरूरी है। आज की तारीख में अधिकतम आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से के पास इसकी उपलब्धता है। हम इस पहुंच का उपयोग कैसे कर सकते हैं? अनुमान है कि 2025 में दुनिया भर में हर दिन 463 एक्साबाइट डेटा प्रतिदिन बनेगा। अगर इतना डेटा बन रहा है, तो इसके लिए हमारी आगे की क्या योजना है? कई संगठन जो डिजिटल डेटा के दस्तावेजीकरण और संरक्षण पर काम कर रहे हैं, उनके लिए यह एक चुनौती भी है। इसके बारे में थोड़ी बात करेंगे। इससे हमें क्या लाभ है? यह जानने के लिए हमें यह देखना होगा कि डेटा के माध्यम से हम तत्काल सूचना का प्रसार कर सकते हैं और सही सूचना को खोज सकते हैं। आज की तारीख में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे ग्रोक काफी प्रसिद्ध हो रहा है। इससे पहले चैट GPT था। भविष्य में और भी कई आएंगे। क्योंकि आज के समय में डेटा डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध है। टूल्स के माध्यम से हम डेटा को अत्यधिक खोज सकते हैं, उसका विश्लेषण कर सकते हैं। लेकिन इसमें डर एक ही बात का है कि अगर पब्लिक डोमेन में जो डेटा है, उसकी प्रामाणिकता कितनी है? अगर वह डेटा प्रामाणिक नहीं होगा, तो कोई भी आर्टिफिशियल टूल सही परिणाम नहीं दे पाएगा। क्योंकि उसके पास विवेक नहीं है। विवेक केवल मनुष्यों में है। यह हमें समझना होगा।”

उन्होंने डिजिटल डेटा के लाभ और चुनौतियों पर कहा, “जो भी डिजिटल डेटा हम बना रहे हैं, उसमें संशोधन की बहुत सुविधा है। आज जितने भी मैन्यूस्क्रिप्ट हम बनाते हैं, उसे आसानी से एडिट करके पब्लिश करते हैं। सोशल मीडिया में अधिकतम लोग इसका उपयोग कर ही रहे हैं। अलग-अलग मीडिया के बीच एकीकरण का लाभ यह है कि हम ऑडियो को विजुअल के साथ, विजुअल को ऑडियो के साथ, टेक्स्ट के साथ एकीकृत कर सकते हैं। यह इस माध्यम में संभव है। जब भी हम इसकी कॉपी करते हैं, यह लॉसलेस कॉपी होती है। डेटा में तो कुछ न कुछ जेनरेशन लॉस होता है, लेकिन यह एकमात्र ऐसी मीडिया है, जिसमें जेनरेशन लॉस नहीं होता। तो ये इसके लाभ हैं। लेकिन इसकी कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन्हें हमें समझने की जरूरत है। क्योंकि जब भी हम डेटा को सुरक्षित रखते हैं, तो उसे किसी न किसी फॉर्मेट में रखते हैं। कई बार यह फॉर्मेट किसी निजी कंपनी की संपत्ति होता है। इसलिए वह डेटा कितने दिन तक सुरक्षित रहेगा, यह उस कंपनी के समर्थन पर निर्भर करता है। दूसरा, डिजिटल मीडिया का जो माध्यम है, जिसमें हम स्टोर करते हैं, वह भी सीमित है। हमें याद है कि 15-20 साल पहले फ्लॉपी डिस्क होती थीं, फिर डीवीडी आईं। ये सारी मीडिया खत्म होती गईं। अब खत्म होती जा रही हैं। इस संबंध में हमें डेटा को नए-नए प्लेटफॉर्म पर कॉपी करना एक सतत प्रक्रिया है। तीसरी जो आवश्यकता है, वह सॉफ्टवेयर की है। इसका प्रचलन हो रहा है। यह चैलेंज केवल हमारे लिए नहीं, पूरे विश्व के लिए है। इसीलिए विश्व भर के वैज्ञानिक इसके ऊपर काम कर रहे हैं।”

उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “हमें भारत सरकार के लिए ऑडियो-विजुअल आर्काइव पर काम करने का मौका मिला। इस ऑडियो-विजुअल आर्काइव के लिए हमने यह कोशिश की कि इस डेटा को जो स्टैंडर्ड 2012 में बने थे – ISO 16363, जो ट्रस्टेड डिजिटल रिपॉजिटरी को परिभाषित करते हैं – उसके आधार पर संरक्षित करें। यह मानक भविष्य में आने वाले खतरों का अनुमान लगाता है और उन्हें बचाने के तरीके सुझाता है। इस तरह के प्रयास के बावजूद, हमने इस प्रोजेक्ट में कोशिश की कि जो ऑडियो-विजुअल डेटा आप सबके घरों में है – पुराने टेप में, पुराने वीडियो में, पुराने कैसेट में – जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है, उसे बचाया जाए। हमें यह खुशी है कि यह दुनिया की पहली सर्टिफाइड ट्रस्टेड डिजिटल रिपॉजिटरी बनी। अभी भी दुनिया में यह एकमात्र रिपॉजिटरी है, जो ISO सर्टिफाइड है। इसकी बहुत जरूरत है कि जितनी भी रिपॉजिटरी हम बनाएं, उसके साथ अपने डेटा को सुरक्षित करें, ताकि हम अगली पीढ़ी तक इसे पहुंचा सकें। हमारे पास जो है, वह 1500 साल पुराना है, 2000 साल पुराना है। जो ऑडियो-विजुअल है, वह 100 साल पुराना है। लेकिन जो डिजिटल डेटा हम आज बना रहे हैं, क्या 10 साल बाद भी हम उसे एक्सेस कर पाएंगे? यह सवाल है। हम किस तरह से अपने डिजिटल डेटा को ऐसी रिपॉजिटरी में रख सकें, जिससे अगली पीढ़ी को यह दे सकें?”

और अंत के निष्कर्ष में उन्होंने कहा- “भारतीय ज्ञान परंपराएं गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से आज भी संरक्षित हैं। यह जीवन को संपूर्णता में समझाने का एकमात्र विधान है। आधुनिकता समसामयिक तकनीक और ज्ञान के माध्यम से जीवन जीने की पद्धति है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, न कि परस्पर विरोधी। समय-समय पर नई तकनीक आती है, जो हमारी कार्यप्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन कर देती है। आवश्यकता है कि हम तकनीक के गुणों को समझें और उसे अपनी कार्यप्रणाली का हिस्सा बनाएं। तभी हम एक विकसित राष्ट्र की परिकल्पना कर सकते हैं।”

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