यूरोप इस वक्त मुस्लिम शरणार्थियों से भरता जा रहा है। इसका असर ये हुआ है कि अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। यूरोपीय देश जर्मनी ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन अब शरणार्थी समस्या से वो जूझ रहा है। जर्मनी ने अपनी कथित उदार रणनीतियों के कारण विश्वभर से लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दी। उसी का सबसे बुरा हाल भी है। इसका असर ये हुआ कि वहां जनसंख्या असंतुलन काफी अधिक बढ़ गया है। इसके खिलाफ जर्मनी में भी अब दहशत है। लेकिन सरकारें अभी भी खुद को उदार दिखाने के चक्कर में इस समस्या से नजरें मोड़ी हुई हैं। डोनाल्ड ट्रंप, एलन मस्क के बाद अब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने भी चेताया है कि जर्मनी अपनी सीमाओं पर नियंत्रण नहीं रखता है तो वह आत्महत्या कर लेगा।
फॉक्स न्यूज के द इंग्राहम एंगल पर होस्ट लॉरा इंग्राहम को दिए एक इंटरव्यू में जेडी वांस ने ये बातें कही। उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे देश हैं, जो कि अपनी सीमाओं को कंट्रोल करने में या तो असमर्थ हैं या फिर अनिच्छुक हैं। इसके साथ ही वांस उन यूरोपीय अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हैं, जो कि अपने ही नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। खासकर तब जब लोग अवैध आव्रजन संबंधी मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं।
वांस कहते हैं कि अगर आपके पास जर्मनी जैसा देश है और अरबों प्रवासी दूसरे देशों से आपके पास आते हैं तो यह जर्मनी के लिए सांस्कृतिक रूप से पूरी तरह से असंगत है। मैं जर्मनी को पसंद करता हूं और चाहता हूं कि ये फले-फूले । लेकिन, यूरोप की सभ्यता को आत्महत्या का खतरा है।
कितना अहम वांस का बयान
जेडी वांस जर्मनी को लेकर बयान यूं ही नहीं है। आज हालात ये हैं कि जर्मनी में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अब जर्मन नागरिकों को तो छोड़िए पुलिस तक को जाने की इजाजत नहीं है। पिछले साल दिसंबर 2024 की बात है, जब सीरिया में बशर अल असद की सरकार गिरने के बाद जर्मनी में 8 दिसंबर को कई शहरों में सीरियाई शरणार्थी शहर में बाहर निकलकर आए और उन्होंने जमकर जश्न मनाया। लेकिन, एक सवाल फिर उठ खड़ा हुआ कि अब ये यहां क्यों हैं, अगर असद सरकार गिर गई है तो अब इन शरणार्थियों को वापस चले जाना चाहिए। लेकिन, इसके ठीक उल्टा हो रहा है। अब ये शरणार्थी जर्मनी के लिए सबसे बड़े सिरदर्द बन गए हैं।
बदल रही जर्मनी की डेमोग्राफी
जर्मनी की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है। मुस्लिम शरणार्थियों के कारण जर्मनी में तेजी से अपराध बढ़े हैं। इसके लिए अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए तो पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल को। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पूरी तरह से वो ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। क्योंकि जर्मनी में मुस्लिम समुदाय की नींव 1960 के दशक में तुर्की से आए श्रमिकों ने रखी थी। लेकिन, 2015 के शरणार्थी संकट ने इसे तेज कर दिया। जर्मन सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2009 तक जर्मनी में मुस्लिम आबादी लगभग 30 लाख थी, जो कुल जनसंख्या का 4% थी।
2015 के बाद यह संख्या बढ़कर 50 लाख से अधिक हो गई, जो अब कुल आबादी का लगभग 6-7% है। इसमें से अधिकांश शरणार्थी सीरिया (7 लाख से अधिक), अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों से आए हैं। यह बदलाव खासकर शहरी क्षेत्रों जैसे बर्लिन, हैम्बर्ग, कोलोन और म्यूनिख में स्पष्ट दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, बर्लिन के कुछ स्कूलों में मुस्लिम छात्रों की संख्या 80% से अधिक हो गई है। यह जनसांख्यिकीय बदलाव जर्मन समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक संरचना को प्रभावित कर रहा है।
बीबीसी के अनुसार 2021 और 2023 के बीच 143,000 सीरियाई लोगों को जर्मन नागरिकता प्राप्त हुई है, जो किसी भी और अन्य देश की तुलना में बहुत अधिक है, मगर अभी भी 7 लाख से अधिक सीरियाई नागरिक शरणार्थी हैं। शरण लेने के बाद जिस प्रकार से यूरोपीय देशों की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, ये केवल उनके लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए ‘वेक अप’ सिग्नल है कि अभी भी नहीं चेते तो फिर बहुत देर हो जाएगी। इस जनसंख्या असंतुलन से देश के कई हिस्से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
जर्मनी में मुस्लिमों की जनसंख्या में तेजी से हुई इस बढ़ोत्तरी के कारण वहां की डेमोग्राफी बदल रही है। इस बदलाव का असर ये हो रहा है कि कभी शांत और मुक्त वातावरण में रहने वाला जर्मनी सिसक रहा है। आम जर्मन नागरिक अपने ही देश में इस भय के साथ जीता है कि कहीं कोई अश्वेत उन पर हमला न कर दे। ये डर इन मुस्लिम शरणार्थियों की हिंसा से उपजा है। उदाहरण के तौर पर 2016 के कोलोन गैंगरेप की घटना को ही ले लीजिए, जिसने पूरे जर्मनी को हिलाकर रख दिया था। उस दौरान उत्तरी अफ्रीकी मूल के शरणार्थियों की इस बर्बरता का दुनियाभर में विरोध हुआ था।
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