महाकुंभ 2025 के दौरान आप हमारे साथ जुड़े रहे, लेकिन इस ऐतिहासिक आयोजन के समापन के बाद उसकी संपूर्णता को समझने के लिए पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर ने महाकुंभ की समग्रता को समर्पित ‘मंथन: महाकुंभ और आगे’ नाम से इस विशेष समागम का आयोजन लखनऊ में गत 12 मार्च
को किया।

महाकुंभ 2025 न केवल विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारत की सनातन परंपरा, सांस्कृतिक एकता और सभ्यता की अनवरत धारा का प्रतीक भी है। प्रयागराज की पवित्र भूमि पर संपन्न इस दिव्य आयोजन ने आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने के साथ-साथ सांस्कृतिक, आर्थिक, प्रशासनिक और वैश्विक स्तर पर नए मील के पत्थर स्थापित किए हैं।
महाकुंभ मेला सनातन संस्कृति की अद्वितीय जीवंतता का महापर्व है। यह हमें समन्वय, अद्वैत और आत्मबोध की शिक्षा देता है। साधु-संतों, श्रद्धालुओं और विभिन्न संप्रदायों का इस संगम में मिलन ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत को साकार करता है। महाकुंभ 2025 ने सिद्ध किया कि भारत न केवल एक आध्यात्मिक जाग्रत राष्ट्र है, बल्कि यह आध्यात्मिकता की खोज और तीर्थाटन का वैश्विक केंद्र बनने की दिशा की ओर तेजी से अग्रसर है।
इस महाकुंभ में महत्वपूर्ण पहलू स्थायित्व, पर्यावरण संरक्षण, समाजिक समरसता और सेवा भी रहे। इस बार प्रशासन ने गंगा की स्वच्छता, प्लास्टिक-मुक्त आयोजन और कुशल जल प्रबंधन जैसे कई अभिनव प्रयास किए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ‘पर्यावरण संरक्षण गतिविधि’ के अंतर्गत ‘एक थाली, एक थैला’ अभियान के तहत 14 लाख 17 हजार स्टील की थालियां और 13 लाख 50 हजार कपड़े के थैले वितरित किए गए।
इस पहल से अपशिष्ट में 29,000 टन की कमी आई। यह पहल भविष्य के सभी आयोजनों के लिए एक आदर्श बन सकती है। इसके अलावा रा.स्व. संघ की प्रेरणा से सामाजिक संस्था ‘सक्षम’ के नेतृत्व में नेत्र कुंभ का आयोजन भी किया गया। इसमें 2,37,964 लोगों की आंखों की जांच की गई और 1,63,652 नेत्र रोगियों को नि:शुल्क चश्मा और दवाइयां दी गईं।
महाकुंभ अर्थव्यवस्था को भी एक नई गति देने वाला आयोजन सिद्ध हुआ। कुंभ मेले ने स्थानीय व्यापार, पर्यटन, कारीगरों और होटल उद्योग को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। इस आयोजन से अपार राजस्व उत्पन्न हुआ।
इस विशाल आयोजन की सुरक्षा और प्रबंधन में भी नवीनतम तकनीकों का उपयोग किया गया, जैसे डिजिटल निगरानी, एआई आधारित सुरक्षा प्रणाली, ड्रोन निगरानी, और स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट। यह साबित करता है कि आधुनिक तकनीक और प्रशासनिक दक्षता के साथ इतने बड़े जनसमूह के लिए कुशल प्रबंधन करना संभव है।
महाकुंभ 2025 सफलतापूर्वक संपन्न हो चुका है, लेकिन हमें इसे केवल एक उत्सव के रूप में न देखकर एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखने की आवश्यकता है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इस आध्यात्मिक ऊर्जा को समाज के समग्र विकास का आधार बनाया जाए। इस मंथन का उद्देश्य यह है कि
कुंभ का संदेश केवल संगम तट तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे विश्व तक पहुंचे।
‘हर-हर गंगे! जय-जय भारत!’
X@hiteshshankar
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