बलूचिस्तान विद्रोहियों द्वारा यह साफ करने के बाद, कि ट्रेन हाइजैक की उसकी कार्रवाई में 214 पाकिस्तानी फौजी हलाक हुए हैं, जिन्ना के झूठे इस्लामी देश का रमजान के दौरान एक झूठ और पकड़ा गया है। पाकिस्तान ने परसों दावा किया था कि ट्रेन पर बीएलए के हमले और उसे हाइजैक करने की कार्रवाई में सिर्फ 4 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। लेकिन अब उसके अपने आधिकारिक बयान में 31 के मारे जाने की पुष्टि की है। हालांकि बीएलए के दावे से यह संख्या अब भी कोसों दूर है। लेकिन जिन्ना का देश अभी अलूच विद्रोही गुटों के विरुद्ध एक नया फौजी दस्ता खड़ा करने के बयान दे ही रहा था कि एक और मोर्चे से उसके लिए नया खतरा पैदा हो गया है। इस्लामी आतंकवादी गुट टीटीपी ने खुलेआम पाकिस्तान के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया है।
जिन्ना के देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठे ‘नाकाबिल’ बताए जा रहे प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कल घोषणा की कि बलूचिस्तान विद्रोही गुटों के विरुद्ध वे एक विशेष बल का गठन करके उसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस करेंगे जिससे ‘बलूचिस्तान पर काबू पाया जा सके’।

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित बलूचिस्तान सूबा लंबे समय से आंतरिक संघर्षों और विद्रोह का गवाह रहा है। यहां के लोग, विशेष रूप से बलूच समुदाय, अपने अधिकारों, स्वायत्तता और विकास की मांग करते आ रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ द्वारा बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों के खिलाफ विशेष फोर्स के गठन की घोषणा एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील कदम है। शाहबाज शरीफ के इस फैसले के असर और पाकिस्तान में सुरक्षा से जुड़ी अन्य चुनौतियों पर दुनिया के इस हिस्से के रक्षा विशेषज्ञों में गहन चर्चा शुरू हुई है।
पाकिस्तान का सबसे बड़ा सूबा, बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद, हमेशा से विकास और समृद्धि की कमी महसूस करता आया है। यहां की बहुसंख्यक बलूच आबादी लंबे समय से पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रही है, उसका इस्लामाबाद पर सबसे बड़ा आरोप है कि उन्हें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से हाशिए पर रखा गया है। इसके अलावा, बलूचिस्तान के विद्रोही समूह, जैसे कि बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) आजादी की मांग लेकर पिछले अनेक वर्ष से पाकिस्तान के खिलाफ हिंसक गतिविधियां करते आ रहे हैं।
बलूचिस्तान में ऐसे जबरदस्त असंतोष का मुख्य कारण है सरकार की नीति और बलूचों के अधिकारों की अनदेखी। इसके अलावा, यहां के लोग यह भी महसूस करते हैं कि उनकी प्राकृतिक संपत्तियों, जैसे गैस, तेल और खनिजों के बड़े पैमाने पर किए जा रहे दोहन से जिन्ना का देश और उसका आका चीन लाभ उठा रहे हैं, जबकि स्थानीय लोगों को उसका रत्तीभर फायदा नहीं मिलता। बताते हैं, इसी बात पर असंतोष ने जन्म लिया और बलूचों के विभिन्न विद्रोही गुट उभरे। ये सभी अधिकांशत: समन्वय के साथ पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्षरत हैं।
शाहबाज शरीफ द्वारा बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों के खिलाफ एक विशेष फोर्स के गठन का ऐलान एक बड़ा निर्णय है। कहने को तो यह कदम पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति को सुधारने और बलूचिस्तान में शांति लाने के उद्देश्य से लिया गया है, लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रैन हाइजैक की घटना से फिलहाल ध्यान हटाने के लिए शरीफ ने यह बयान दिया है, लेकिन वे भी जानते हैं कि उनकी पहले की सभी कोशिशें नाकाम रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि बलूचिस्तान की आम जनता भी इस्लामाबाद की निमर्मता से नाराज हैं और धरने—प्रदर्शनों में बढ़—चढ़कर भाग लेती रही है।
शरीफ सरकार का यह बल गठित करने का फैसला धरातल पर कब कार्यान्वित हो पाएगा, इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया है। बलूचिस्तान में विद्रोही गतिविधियां चरम पर हैं और सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री के बयान के अनुसार, इस विशेष बल का मुख्य उद्देश्य बलूच विद्रोहियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करना, इलाके में शांति स्थापित करना और पाकिस्तान के संघीय अधिकारों को बनाए रखना है।
बताया गया है कि यह बल पाकिस्तान के अन्य सुरक्षाबलों, विशेष रूप से पाकिस्तान सेना और अर्धसैनिक बलों के साथ मिलकर काम करेगा। शरीफ सरकार को उम्मीद है कि इस रास्ते बलूचिस्तान में विद्रोही गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकेगा और इस क्षेत्र में शांति कायम की जा सकेगी। हालांकि, इस फैसले पर सवाल भी उठे हैं, क्योंकि बलूचिस्तान में सुरक्षाबलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप पहले से ही लगते आए हैं। ऐसे में इस फोर्स के गठन से स्थिति और भी संवेदनशील हो सकती है।

टीटीपी का जंग का ऐलान
इसके साथ ही, जिन्ना के देश के लिए एक और बड़ी चुनौती तालिबान से जुड़ी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का ऐलान है। टीटीपी, जो पाकिस्तान के अंदर एक कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन है, ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग की शुरुआत का ऐलान कर दिया है। इसका सीधा असर पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ना तय है। टीटीपी पहले भी पाकिस्तान में बड़े हमलों को अंजाम दे चुका है और सुरक्षा बलों पर लगातार हमले कर रहा है।
टीटीपी का यह ऐलान पाकिस्तान के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती है। पाकिस्तान सरकार के लिए अब सवाल यह भी है कि कैसे वह एक तरफ बलूच विद्रोही गुटों से निपटे और दूसरी तरफ टीटीपी के बढ़ते प्रभाव से अपनी सीमाओं की सुरक्षा करे। टीटीपी के हमलों ने पहले ही कई बार पाकिस्तान के बड़े शहरों और सैनिक चौकियों, अड्डों, कैंपों को निशाना बनाया है, जिससे सरकार के लिए स्थिति और भी जटिल हो गई है।
जिन्ना के देश के सामने यह दोतरफा मुसीबत एक बड़े खतरे के रूप में उभरी है। एक ओर बलूच विद्रोही गुट हैं, जो पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर टीटीपी जैसे आतंकवादी संगठन हैं, जो पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। इन दोनों चुनौतियों के बीच पाकिस्तान के लिए आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना एक बड़ा सवाल बन चुका है। पाकिस्तान का मानना है कि टीटीपी को अफगानिस्तान के तालिबान लड़ाकों से मदद मिल रही है।
जैसा पहले बताया, शाहबाज शरीफ का बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों के खिलाफ विशेष बल के गठन का निर्णय लागू करने में उतना आसान नहीं होगा। यह कदम पाकिस्तान की सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में एक ओर नई पहल है, लेकिन इसके साथ ही जरूरी यह भी है कि बलूचों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों पर ध्यान दिया जाए, ताकि इलाके में स्थायी शांति संभव हो सके।
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