भारतीय सिनेमा में त्योहारों का विशेष महत्व रहा है, और जब बात होली की हो तो यह त्योहार केवल रंगों का ही नहीं बल्कि उमंग, प्रेम और मस्ती का प्रतीक भी बन जाता है। भारतीय सिनेमा में होली के गीतों का विशेष स्थान रहा है। हिंदी फिल्मों में होली पर आधारित गीतों ने इस त्योहार को और भी जीवंत बना दिया है। रंगों से सराबोर जब यह उत्सव बड़े पर्दे पर उतरता है तो फिल्में जीवंत हो उठती हैं।
होली गीतों के माध्यम से भारतीय सिनेमा ने प्रेम, मस्ती, शरारत, रोमांस, और यहां तक कि विद्रोह के स्वर भी भरे हैं। सिनेमा के पर्दे पर होली के रंगों में डूबी सजीव झलकियां दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं, जिन्हें देखकर होली का उत्साह कई गुना बढ़ जाता है। फिल्मों में होली गीत केवल त्योहार की खुशियों को ही नहीं दर्शाते बल्कि इनके माध्यम से कहानी में नाटकीयता, रोमांस और सामाजिक संदेश भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
सिनेमा में होली गीतों की परंपरा
वैसे तो संगीत भारतीय फिल्मोद्योग की शुरुआत से ही फिल्मों का अहम हिस्सा रहा है लेकिन जब बात होली की आती है तो सिनेमा ने इसे केवल एक पर्व के रूप में नहीं बल्कि कहानी को आगे बढ़ाने और चरित्रों के संबंधों को दर्शाने के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में अपनाया है। होली का त्यौहार केवल रंगों का नहीं बल्कि प्रेम और आकर्षण का भी पर्व होता है और इसी कारण फिल्मों में इसे रोमांस को उभारने के लिए उपयोग किया गया। यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ (1981) का ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ गीत इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। अमिताभ बच्चन और रेखा पर फिल्माए गए उस गीत में प्रेम, शरारत और वासना का एक अनूठा संगम देखने को मिलता है। यह गीत अमिताभ बच्चन की आवाज और हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में एक अमर गीत बन चुका है। फिल्म में इस गाने को जिस अंदाज में फिल्माया गया, वह आज भी हर होली पर सुनाई देता है। 1930 और 1940 के दशक में फिल्मों में होली के दृश्य और गीत सीमित थे लेकिन 1950 और 1960 के दशक में इनका प्रभाव बढ़ा। के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आजम’ (1960) में ‘मोहे पनघट पे नंदलाल’ जैसा गीत आया, जो भले ही होली पर केंद्रित नहीं था लेकिन इसके भावों में होली की उमंग झलकती थी।
होली गीतों का बदलता स्वरूप
भारतीय सिनेमा में होली गीतों का सिलसिला दशकों से चला आ रहा है लेकिन समय के साथ होली गीतों ने कई बदलाव देखे हैं। 1950 और 1960 के दशक में जब भारतीय सिनेमा रंगीन नहीं हुआ था, तब भी उन गीतों में रंगों की बौछार देखने को मिलती थी। शुरुआती दौर में होली गीत पारंपरिक संगीत पर आधारित होते थे और उनमें शास्त्रीय रागों का समावेश किया जाता था। धीरे-धीरे समय के साथ इन गीतों में आधुनिकता का समावेश हुआ और इनमें फिल्मी कहानी के अनुरूप विविधता भी आई। 1950-60 के दशक में ये गीत शास्त्रीयता और लोक संगीत से प्रेरित हुआ करते थे जबकि 1970-80 के दशक में इनमें बॉलीवुड का ग्लैमर और नृत्य जुड़ने लगा। 1990 के बाद से ये गीत और अधिक ऊर्जा से भरपूर होते गए, जिनमें आधुनिक बीट्स, पॉप म्यूजिक और भव्य फिल्मांकन का समावेश हुआ। राज कपूर की ‘आवारा’ (1951) और ‘श्री 420’ (1955) जैसी फिल्मों में होली पर आधारित दृश्य तो थे लेकिन 1958 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ के ‘होली आई रे कन्हाई’ गीत ने होली के गीतों की पहचान को और मजबूत किया। राजकुमार, नरगिस और सुनील दत्त अभिनीत इस फिल्म में यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था। शमशाद बेगम की आवाज में गाया गया यह गीत होली की पारंपरिक खुशियों और उत्साह को दर्शाता है। उस दौर में होली गीत पारिवारिक और सामाजिक संदर्भ में अधिक दिखाए जाते थे।
1970 का दशक भारतीय सिनेमा में बदलाव का दौर था और उसी दौरान होली गीतों में भी विविधता आई। अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘शोले’ (1975) का ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ गीत उसी बदलाव का एक सशक्त उदाहरण है। उस गीत में मस्ती, प्रेम और एक ग्रामीण पृष्ठभूमि में होली का आनंद दिखाया गया था। धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, अमिताभ बच्चन और जया बच्चन अभिनीत उस गीत ने होली के त्योहार को और भी यादगार बना दिया। फिल्म में वह गाना नायक और नायिका के बीच छेड़छाड़ और मस्ती को खूबसूरती से प्रस्तुत करता है। रोमांटिक होली गीतों की श्रेणी में एक महत्वपूर्ण गीत है ‘बागबान’ (2003) का ‘होली खेले रघुवीरा’ जिसमें अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की जोड़ी होली के रंगों में डूबी हुई नजर आई थी। कुछ होली गीत ऐसे भी हैं जो शुद्ध मस्ती और शरारत से भरपूर हैं। ‘डर’ (1993) का ‘अंग से अंग लगाना’ और ‘वक्त’ (2005) का ‘लेट्स प्ले होली’ इसी श्रेणी में आते हैं। इन गीतों में प्रेम से ज्यादा मस्ती और धमाल देखने को मिलता है। नई पीढ़ी के सिनेमा में होली के गीतों का स्वरूप बदला है। अब ये गीत ज्यादा ग्लैमरस और हाई-एनर्जी होते जा रहे हैं। ‘ये जवानी है दीवानी’ (2013) का ‘बलम पिचकारी’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। उस गीत में युवा वर्ग की मस्ती और होली की धमाल को एक आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत किया गया था। इसी प्रकार ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ (2017) का ‘बद्री की दुल्हनिया’ गीत भी एक नया होली एंथम बन गया, जिसमें पारंपरिक रंगों के साथ बॉलीवुड के आधुनिक डांस स्टाइल को शामिल किया गया।
होली गीतों का सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव
होली गीतों ने फिल्मों में केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि सामाजिक संदेश भी दिए हैं। कुछ फिल्मों में होली गीतों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को भी उठाया जाता है, जैसे जात-पात की बाधाओं को तोड़ना या समाज में समानता का संदेश देना। कई फिल्मों में होली के गीतों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों को दर्शाया गया। ‘मदर इंडिया’ (1958) का ‘होली आई रे कन्हाई’ और ‘मेला’ (1948) का ‘आज होली खेलूंगी’ ऐसे गीत थे, जो ग्रामीण भारत की झलक दिखाते थे। आज के डिजिटल युग में भी होली के गीतों की लोकप्रियता कम नहीं हुई है। हर साल भले ही कितने ही नए गाने आते हैं लेकिन पुराने गाने हर होली पर दोबारा बजने लगते हैं। अमिताभ बच्चन का ‘रंग बरसे’ आज भी हर होली पार्टी का अहम हिस्सा होता है और ‘बलम पिचकारी’ जैसे नए गाने भी तेजी से लोकप्रिय हो जाते हैं। कुल मिलाकर, फिल्मों में होली गीत केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं हैं बल्कि ये भारतीय संस्कृति, रंगों की बहार, प्रेम, मस्ती और सामाजिक संदेशों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हर दशक में इन गीतों ने अपना स्वरूप बदला है लेकिन इनका महत्व कभी कम नहीं हुआ। होली और सिनेमा का यह रिश्ता आगे भी इसी जोश और जुनून के साथ बना रहेगा।
टिप्पणियाँ