उत्तर प्रदेश के लखनऊ में महाकुंभ पर आयोजित पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के ‘मंथन’ कार्यक्रम में ‘विरासत का कॉरिडोर’विषय पर राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपय राय ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन से मेरा जुड़ाव रहा है। 1987 से मैं अयोध्या में हूं। अयोध्या में तीन मेले प्रमुखत: आयोजित होते हैं। एक चैत्र मास में भगवान का जन्म होता है, तो चार दिन का मेला होता है। रामनवमी पर सरयू का स्नान और दोपहर का भोजन करके लोग अपने घरों को जाने लगते हैं।
एक दिन में अयोध्या खाली हो जाती है। हां दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों से कुछ लोग आते होंगे। इसके बाद अय़ोध्या में दूसरा मेला तब होता है, जब राम जी चार माह के हो जाते हैं। वो माह होता है श्रावण, उस दौरान अयोध्या के 3000 छोटे बड़े मंदिर अपनी स्थिति के अनुसार भगवान को पालने में झुलाते हैं और करीब 8 दिन चलने के बाद ये मेला भी समाप्त हो जाता है। इसके बाद तीसरा मेला कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष को चार कोसी परिक्रमा होती है, इसके बाद देवोत्थान एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा भी होती है। बाकी हनुमानगढ़ी में लोग आते हैं।
लेकिन, 2020 में जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया तो अयोध्या में श्रद्धालुओं की संख्या में सहज रूप से वृद्धि हो गई। पहले तो ये संख्या 7,000 तक बढ़ी। बाद में ध्यान में आया कि अब आगंतुकों की संख्या 25,000 तक हो गई है। लेकिन, 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर पर भगवान रामलला के 5 वर्ष के बालक की मूर्ति स्थापित हुई तो संख्या में एक झटके में वृद्धि आ गई। और प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो अयोध्या में हर दिन करीब 75,000 श्रद्धालु आने लगे। शनिवार और मंगलवार को ये संख्या एक लाख पहुंच जाती है।
पिछले एक साल में करीब 4 से साढे चार करोड़ लोगों ने अयोध्या के दर्शन किए। 2011 की जनगणना के आंकड़े की अगर बात करें तो शायद ये 60,000 के आसपास है। 2011 तक अयोध्या नगर निगम नहीं था, लेकिन आज ये नगर निगम है। अयोध्या एक छोटा सा टेंपल टाउन है और मैं वहीं तक सीमित हूं। लेकिन कार्पोरेशन बनने से अयोध्या प्रभावित नहीं हुई। इस छोटी सी अयोध्या के लिए बातों को सही रूप में शासन में समझा गया। वहां सुधार होने शुरू हुए वो है सफाई। पहले एक मेले के बाद लोग चले जाते थे और गंदगी वहीं कि वहीं। लेकिन अब ये बदल गया है। दूसरी बात सरयू के बगल से एक छोटी सी नहर निकाली गई और पंपिंग के द्वारा उसमें सरयू का जल डाला जाता है। पहले ये ऐसे ही पड़ा रहता था, लेकिन अब उसमें भी सुधार हो गया।
तीसरा मैंने अयोध्या के प्राकृतिक ढलान के बारे में पूछा, तो पता चला कि पूर्व दिशा की तरफ है। इस पर मैंने सवाल किया कि सीवर क्लीनिंग पंप कहां बन रहा है, तो पता चला कि वो तो पश्चिम में बन रहा है। धीरे-धीरे इसे फॉलो करते करते ये भी ठीक हो गया। कुंभ मेले से मैं 1989 से जुड़ा हुआ हूं। 1989 से 2025 तक कोई भी कुंभ मेला आज तक नहीं छूटा। कुंभ मेले का एक स्वभाव देखा है कि सामान्यतया बसंत पंचमी के बाद इसमें एकाएक इसमें गिरावट आती है और माघ पूर्णिमा के बाद भी ग्राफ ऊपर जाता गया।
28 फरवरी को ऐसा लगा कि ये पूर्णता की ओर जा रहा है, क्योंकि अयोध्या में एक मार्च को संख्या एकदम से कमी आ गई। 2 मार्च को और कमी आई। इस बार के कुंभ में एक बात जो सामने आई कि सुव्यवस्था और समाज तक उसकी जानकारी पहुंचाई गई और इसका परिणाम ये निकला। मैंने अयोध्या में किसी से पूछा था कि बड़े-बड़े शक्तिमान देश अपने देश की आधी आबादी को इस प्रकार से एक जगह एकत्रित कर सकते हैं क्या। महाकुंभ का असर अयोध्या पर पड़ा। इस कारण से मुझे चार बार अयोध्या से प्रयागराज जाना पड़ा। अयोध्या से प्रयागराज 180 किलोमीटर है। साढ़े तीन से चार घंटे का रास्ता है। लेकिन मुझे इस बार 10 घंटे रोड के जरिए लगे।
26 जनवरी को अयोध्या का नजारा देखकर मेरे मन में ये डर बैठ गया था कि ये कुचले न जाएं। 24 घंटे के अंदर प्रशासन के साथ बैठक की और पूरी अयोध्या को वन वे कर दिया। इसका असर ये हुआ कि थोड़ा चलना तो पड़ा, लेकिन भगदड़ से बच गए। दर्शन की अवधि को सुबह पांच बजे से रात के 12 बजे तक कर दिया। भगवान राम के दोपहर के विश्राम को भी स्थगित कर दिया। ये तय हुआ कि रात में किसी को भी यहां नहीं रहने देना है। हमारा प्रयोग सफल रहा। 15 जनवरी से 28 फरवरी तक हर दिन 4 से साढ़े चार लाख लोग हर दिन दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे। इस अवधि में करीब डेढ़ करोड़ लोग अयोध्या आए। 10 ट्रेन प्रतिदिन कुंभ से अयोध्या आ रही थीं। रेलवे ने मुझे बताया कि हर दिन 4 से साढ़े चार हजार लोग एक ट्रेन से अयोध्या पहुंच रहे हैं।
समाज को इसका पूरा लाभ मिला। अगर आर्थिक दृष्टि की बात करें तो हमारा अकाउंट्स देखने के लिए कई बार सीएजी के अधिकारी आते हैं। करीब 6 माह पहले जब सीएजी के अधिकारी आए थे तो उनसे मैंने अयोध्या का आर्थिक विश्लेषण करने को कहा था। आजकल अयोध्या में एक नया बिजनेस शुरू हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे तिलक लगाते हैं। लेकिन इनकी कमाई दिन की हजार से डेढ़ हजार है।
इससे ये समझिए कि इन मेलों से पैसे का सर्कुलर बहुत अधिक हो रहा है। ये संभव हुआ एक मंदिर के होने से हुआ है। ये मंदिर क्या बन गया, जैसे हिन्दुस्तान का सम्मान वापस आ गया। ये तीर्थों के विकास का परिणाम है। राम जन्मभूमि का एक अध्ययन करने पर हमें पता चला कि 5 फरवरी 2020 से मंदिर के कार्य का प्रारंभ हुआ। 5 फरवरी 2020 से 28 फरवरी 2025 तक 396.26 करोड़ रुपए का टैक्स सरकार को दिया है। केवल जीएसटी ही 270 करोड़ करोड़ सरकार को पे किया।
मैं सरकारी विभागों से निवेदन करता हूं कि सरकारी विभागों के पर्यटन विभाग में एक डेस्क तीर्थाटन की भी होनी चाहिए।
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