खालिस्तानी चरमपंथ और भारत विरोधी नीतियां अपनाने वाले जस्टिन ट्रूडो के बाद अब कनाडा को उसका नया प्रधानमंत्री मिलने जा रहा है। ये नए प्रधानमंत्री हैं जस्टिन ट्रूडो की ही लिबरल पार्टी के मार्क कार्नी। 59 वर्षीय कार्नी ने लिबरल पार्टी के चुनाव में जीत हासिल की है। इस चुनाव में लिबरल पार्टी के एक लाख 52 हजार सदस्यों ने वोट डाले, जिसमें से 86 फीसदी वोट कार्नी को मिले। वहीं क्रिस्टिया फील्ड इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहीं।
कौन हैं मार्क कार्नी
अगर राजनीति की दृष्टि से देखें तो मार्क कार्नी नौसिखिया हैं। वह पेशे से एक प्रसिद्ध कनाडाई अर्थशास्त्री और बैंकर हैं। उनका पूरा नाम मार्क जोसेफ कार्नी है। 16 मार्च 1965 को कनाडा के नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज़ के फोर्ट स्मिथ में जन्मे कार्नी की प्रारंभिक शिक्षा अल्बर्टा के एडमॉन्टन में हुई। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की और इसके बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर्स और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
बैंकिंग और वित्तीय करियर
मार्क कार्नी ने अपने करियर की शुरुआत गोल्डमैन सैक्स में की, जहां उन्होंने 13 साल तक लंदन, टोक्यो, न्यूयॉर्क और टोरंटो जैसे शहरों में काम किया। 2003 में वे बैंक ऑफ कनाडा में डिप्टी गवर्नर बने और 2008 में गवर्नर के रूप में पदोन्नत हुए। 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट उनके करियर का एक निर्णायक क्षण था। उस समय बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर के रूप में, कार्नी ने कनाडा को आर्थिक मंदी के सबसे बुरे प्रभावों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नीतियों, जैसे ब्याज दरों में कटौती और वित्तीय स्थिरता पर जोर, ने कनाडा को अन्य देशों की तुलना में तेजी से उबारने में मदद की। उनकी इस सफलता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई।
2013 में कार्नी को बैंक ऑफ इंग्लैंड का गवर्नर नियुक्त किया गया, जो 1694 में इस संस्थान की स्थापना के बाद पहली बार किसी गैर-ब्रिटिश व्यक्ति को यह जिम्मेदारी दी गई थी। वहां उन्होंने ब्रेक्सिट जैसे जटिल दौर में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को स्थिर करने का प्रयास किया। 2020 तक इस पद पर रहने के बाद, उन्होंने जलवायु परिवर्तन और वित्त के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के रूप में काम शुरू किया, जिससे उनकी पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता भी उजागर हुई।
वहीं अगर हम कार्नी के सियासी कैरियर को देखें तो उनकी राजनीति में रुचि तो रही, लेकिन वो कभी चुनाव नहीं जीत पाए। 2012 में तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने उन्हें वित्त मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। 2013 में लिबरल पार्टी के नेतृत्व के लिए उनका नाम चर्चा में आया, लेकिन तब भी उन्होंने राजनीति में कदम नहीं रखा। हालांकि, 2024 में जस्टिन ट्रूडो सरकार के आर्थिक नीतियों पर संकट के दौरान उन्हें लिबरल पार्टी की आर्थिक विकास टास्क फोर्स का प्रमुख बनाया गया। इसके बाद जब ट्रूडो के नेतृत्व में पार्टी संकट में आई और उन्होंने जनवरी 2025 में इस्तीफे की घोषणा की, तो कार्नी का नाम अगले नेता के रूप में तेजी से उभरा।
आसान नहीं है कार्नी की राह
कार्नी भले ही कनाडा के अगले पीएम बन रहे हों, लेकिन उनके लिए ये राह आसान नहीं होने वाली है। क्योंकि वो ऐसे समय में कनाडा की कमान संभालने जा रहे हैं, जब देश कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से कनाडा पर 25% टैरिफ की धमकी और कनाडा को “51वां राज्य” बनाने जैसे बयानों ने आर्थिक और संप्रभुता से जुड़े संकट पैदा कर दिए हैं। इसके अलावा, बढ़ती महंगाई, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और अपराध दर जैसे घरेलू मुद्दे भी उनकी प्राथमिकताओं में होंगे।
भारत के साथ भी खालिस्तान के मुद्दे पर तनातनी चल रही है। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा के पीएम रहे जस्टिन ट्रूडो ने इसका सीधा आरोप भारत पर मढ़ा था। इसका असर ये हुआ कि दोनों ही देशों के बीच रिश्ते मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। खालिस्तान समस्या कार्नी की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।
टिप्पणियाँ