नीरजा गुप्ता ने सफलता के संदर्भ में कहा, ‘‘एक समय था जब हम सफलता को इस तरह से नापते थे कि 1,2,3,4,5, यानी 1 डिग्री, दो बच्चे, तीन कमरों का घर, चार पहिया वाहन और पांच जीरो का वेतन। जो इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता था उसे ही सफल माना जाता था। लेकिन अगर सफलता इतनी ही थी तो इतने अवसाद के मामले, इतनी निराशा, इतनी लड़ाई, इतना भ्रम, समाज में नैतिकता की कमी, ये सब क्यों हो रहा है? ऋग्वेद में एक छोटा-सा सूक्त है जो हमें बताता है कि एक शिष्य को क्या चाहिए? यत्ते अग्ने तेजस्तेनाहं तेजस्वी भूयासम्।
सबसे पहले वह इस बात पर सहमत होता है कि मुझे आपकी अग्नि और आपकी ऊर्जा से तेजस्वी बनने का आशीर्वाद दीजिए। फिर कहता है-यत्ते अग्ने वर्चस्तेनाहं वर्चस्वी भूयासम्। फिर उस तेज से मुझे प्रभुत्व करने की शक्ति दीजिए ताकि मैं दूसरों पर या अपने क्षेत्र पर प्रभुत्व कर सकूं, प्रभुत्वशाली बन सकूं और तीसरे सूक्त में वे कहते हैं, यत्ते अग्ने हरस्तेनाहं हरस्वी भूयासम्। यह बहुत ही दिलचस्प है।
वह कहता है, ‘मैं अग्नि की तरह कचरा जलाने वाला बनना चाहता हूं। इसका अर्थ है कि हमें कचरा जलाना होगा, हमें फिर से सीखना होगा। शिक्षा एकतरफा नहीं हो सकती। सफल होने के लिए समग्र शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। बहुत से छात्र अंग्रेजी अच्छी न होने के चलते हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। अंग्रेजी सफलता की कुंजी नहीं है। इससे बाहर आने की जरूरत है। आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का दौर है। जितना ज्यादा डाटा जहां से आएगा एआई बार—बार उसके अनुसार काम करेगा। आज हमें जरूरत है कि अपने डाटा को बार बार सर्वर तक ले जाने की जिससे हमारा डाटा एआई दूसरों को दे और वहां से हमारी बात और आगे जाए।’’
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‘अनुपयोगी कुछ नहीं होता’
प्रोफेसर शेलेंद्र सराफ ने कहा, ‘‘जीवक ने नालंदा से आयुर्वेद की शिक्षा ली थी। वे एक साथ दो राजघरानों में वैद्य थे। एक बार उनके गुरु ने उन्हें और उनके पास शिक्षा ले रहे सभी छात्रों को पास के जंगल में भेजा और कहा कि एक ऐसी वनस्पति लेकर आना जिसमें औषद्यीय गुण न हो। सभी छात्र कुछ न कुछ लेकर लौट आए। पर जीवक जी एक साल बाद लौटे और कहा कि ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जिसमें कोई औषधीय गुण न हो। इसका अर्थ यह है कि ऐसा कुछ नहीं है जिसका उपयोग आप न कर सकें। यह गुण एक शोधकर्ता में होना बहुत जरूरी है।
हमारे ऋषि सिर के बगल में एक कागज और कलम रखते थे कि जाने कब कौन-सा विचार आए, हमें उसको रेखांकित करना है। आपको अपनी रफ्तार आवृत्ति स्थिर करनी होगी। इसमें असफलता जैसा शब्द नहीं होना चाहिए। आपने जो भी किया है वह भी आपके पास जमा है। कुछ व्यर्थ नहीं होगा। यह सोचकर कार्य करना चाहिए।’’
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