अरविंद केजरीवाल जब तक दिल्ली में सत्ता में रहे, उन्होंने ‘कैग’ की एक भी रिपोर्ट जारी नहीं की। कैग की लंबित रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग को लेकर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता (अब विधानसभा अध्यक्ष) ने सदन से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ी। दिल्ली में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो पहले ही सत्र में ‘कैग’ की लंबित 14 में से एक रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दी गई।

वरिष्ठ पत्रकार
भाजपा सरकार ने केजरीवाल सरकार के शराब घोटाले पर ‘कैग’ रिपोर्ट सदन में पेश कर एक तीर से चार निशाने लगाए हैं।
पहला, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आम आदमी पार्टी (आआपा) सरकार को 10 वर्ष में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की 14 में से एक भी रिपोर्ट पेश नहीं करने पर घेरा था। सरकार बनते ही सदन में एक रिपोर्ट पेश कर भाजपा की सरकार ने जनता से किया अपना पहला वादा पूरा किया है।
दूसरा, केजरीवाल और उनके प्रमुख साथियों को अब सीबीआई और ईडी के मुकदमों तथा अदालती कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। यानी केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह आदि की आगे की राह बेहद दुर्गम होने वाली है।
तीसरा, केजरीवाल और उनके साथियों का झूठ, बड़बोलापन और अहंकार मटियामेट हो गया है। यह स्पष्ट हो गया है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी पार्टी, जो बात-बात पर ईमानदारी की दुहाई देती थी, वह खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रही। आआपा ने ‘कैग’ रिपोर्ट को आधार बना कर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र और दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, लेकिन खुद सत्ता में आई तो कैग की एक भी रिपोर्ट उपराज्यपाल को न भेजकर संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया का गला घोंट दिया। चौथा, भाजपा सरकार एक-एक कर सभी रिपोर्ट पेश करेगी, ताकि आआपा सरकार की कारगुजारियों को उजागर किया जा सके।
24 फरवरी को नवगठित विधानसभा का दो दिवसीय सत्र शुरू होते ही पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना और उनके 20 विधायक शोर-शराबा करने लगे। शायद वे इस बात से डरे हुए थे कि जब एक-एक कर ‘कैग’ की 14 रिपोर्ट पटल पर रखी जाएंगी, तब टीम केजरीवाल की कलई पूरी तरह से खुल जाएगी। संभवत: इस डर के कारण आआपा विधायकों ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना के संबोधन से पहले ही हंगामा शुरू कर दिया था। इसके कारण पहले दिन सत्र को स्थगित करना पड़ा। दूसरे दिन शराब घोटाले में ‘कैग’ की रिपोर्ट सदन में पेश की गई, लेकिन आआपा विधायकों ने हंगामा जारी रखा। लिहाजा, सभी को सदन से बाहर निकालना पड़ा। अमानतुल्ला खान इकलौते विधायक थे, जो तबियत खराब होने के कारण सदन में मौजूद नहीं थे।
क्या है रिपोर्ट में
‘कैग’ रिपोर्ट में कहा गया है कि आआपा सरकार की नई आबकारी नीति में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं थी, जिससे शराब माफिया को फायदा और सरकार को 2000 करोड़ से अधिक का राजस्व नुकसान हुआ। इनमें लाइसेंस के लिए दोबारा बोली नहीं लगने से 890 करोड़, गैर-अनुकूल क्षेत्रों में खुदरा दुकानें नहीं खोलने पर 941.53 करोड़, कोरोना के नाम पर लाइसेंस शुल्क माफी से 144 करोड़ रुपये और आबकारी विभाग की सलाह के बावजूद उचित सिक्योरिटी डिपॉजिट नहीं लेने पर 27 करोड़ रुपये का नुकसान शामिल है।
आआपा सरकार ने बिना जांच के खुदरा शराब विक्रय के लिए लाइसेंस जारी किए। साथ ही, थोक विक्रेताओं का कमीशन 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया और फैसले को सही ठहराने के लिए गुणवत्ता जांच के लिए गोदामों में मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला स्थापित करना जरूरी कर दिया। लेकिन ऐसी कोई प्रयोगशाला स्थापित ही नहीं की गई।
2010 के आबकारी नियमों का उल्लंघन करते हुए थोक बिक्री के लाइसेंस उन लोगों को दिए गए, जो शराब बनाते थे और खुदरा बिक्री करते थे। लाइसेंस देने से पहले न तो उनकी माली हालत की ठीक से जांच की गई और न ही उनके आपराधिक रिकॉर्ड देखे गए। पुरानी आबकारी नीति में एक खुदरा विक्रेता को सिर्फ दो लाइसेंस मिल सकते थे, लेकिन नई नीति में एक ही व्यक्ति को 54 लाइसेंस देने का प्रावधान किया गया। तरह-तरह की छूट देने के लिए न तो कैबिनेट से जरूरी अनुमति ली गई और न ही उपराज्यपाल की सलाह।
इस तरह, नई नीति में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं होने के कारण शराब के कारोबार में एकाधिकार और गठजोड़ को बढ़ावा मिला। इसे इस तरह से समझें। ‘कैग’ रिपोर्ट के अनुसार, उत्पादकों को केवल एक थोक विक्रेता के साथ जोड़ बनाने की बाध्यता थी। पहले 377 खुदरा लाइसेंस निजी क्षेत्र के 262 लोगों को दिए जाते थे, लेकिन नई नीति में खुदरा जोन 32 कर दिए गए, जिसमें 849 वेंडर थे। लेकिन लाइसेंस 22 निजी कंपनियों को ही दिए गए।
इससे हुआ यह कि पंजीकृत 367 आईएमएफएल ब्रांड्स में से केवल तीन होलसेलर (इंडोस्पिरिट, महादेव लिकर्स और ब्रिंडको) का 71 प्रतिशत आपूर्ति पर नियंत्रण हो गया। उन्हें शराब के 192 ब्रांडों की आपूर्ति का एकाधिकार दे दिया गया। लाइसेंस भी दे दिए, जबकि गुणवत्ता जांच रिपोर्ट नहीं थी या थी भी तो बीआईएस के नियमों के मुताबिक नहीं थी। इसके अलावा, शराब की कीमतें मनमाने तरीके से तय की गर्इं, जिससे उपभोक्ताओं के पास कम विकल्प बचे। केजरीवाल सरकार ने शराब नीति 17 नवंबर, 2021 को लागू की थी और भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सितंबर 2022 में उसे वापस ले लिया।
आआपा विधायकों ने विधानसभा में हंगामे के लिए इस बात को मुद्दा बनाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय से बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीरें हटा दी गई हैं। लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री कार्यालय में दोनों तस्वीरें मौजूद हैं। बस प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें उचित स्थान पर लगाया गया है। सदन में भाजपा विधायक अरविंदर सिंह लवली ने विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता पर भरोसा जताते हुए कहा कि वे ‘‘बाबासाहेब की फोटो के पीछे अपने भ्रष्टाचार के आरोपों को छुपाने वाले लोगों को बेनकाब करेंगे।’’
दरअसल, विजेंद्र गुप्ता पिछली विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। तब उन्होंने शराब घोटाले का आरोप लगाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी और आआपा सरकार को विधानसभा में ‘कैग’ रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देने की मांग की थी। ‘कैग’ रिपोर्ट पेश नहीं करने पर अदालत ने नाराजगी भी जताई थी।
मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा, ‘‘कोरोना के काल में जब दिल्ली में लोगों को दवाओं की जरूरत थी, इलाज की जरूरत थी, आक्सीजन की जरूरत थी, तब अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने शराब के ठेके खुलवाए, शराब की नीति बदली और अपने लोगों का एक तरह से कार्टेल बना कर 2,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया।’’
खुद को ‘कट्टर ईमानदार’ बताने वाले केजरीवाल सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरते चले गए। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जमानत पर बाहर हैं। आने वाले दिनों में केजरीवाल सहित आआपा नेताओं के लिए मुश्किलें और बढ़ सकती हैं, क्योंकि एक-एक कर ‘कैग’ की शेष 13 और रिपोर्ट आनी हैं। साथ ही, स्कूल घोटाला, बस घोटाला और शीश महल घोटाला भी पीछा नहीं छोड़ेगा।
हाईप्रोफाइल कैदियों पर मेहरबान!
केजरीवाल पर जेल में हाई प्रोफाइल कैदियों को सुविधाएं देने के भी आरोप लगे हैं। तिहाड़ जेल के पूर्व अधीक्षक सुनील गुप्ता ने खुलासा किया है कि जब सहारा के मालिक सुब्रत रॉय जेल में बंद थे, तब उन्हें कोठरी की बजाय कोर्ट कॉम्प्लेक्स में रखा गया था। सहारा एयरलाइंस की विमान परिचारिकाएं दिन में दो-तीन बार उनसे मिलने आती थीं और घंटों उनके साथ रहती थीं। सुब्रत रॉय को खाने की पूरी सुविधा के साथ शराब भी परोसी जाती थी। बकौल गुप्ता, उन्होंने खुद सुब्रत रॉय के कमरे से शराब की बोतलें बरामद की थीं। जब उन्होंने यह बात तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को बताई तो उन्होंने इस पर ठोस कदम उठाने बजाए मामले की लीपापोती की या ‘समझौता’ कर लिया। उसका नतीजा यह हुआ कि गुप्ता के बाद के पांच-छह साल कष्ट भरे रहे।
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