“जैसे सांस बिना शरीर अधूरा है, वैसे ही नारी बिना जीवन अधूरा है। वह मां की ममता है। वह है तो घर संसार है। उसके बिना हर रिश्ता अधूरा है।” – सुधामूर्ति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर एक खास पहल की घोषणा की है। वह विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को इस दिन अपने सोशल मीडिया अकाउंट (एक्स, यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि) सौंपेंगे, ताकि वे अपने जीवन, अनुभवों, चुनौतियों और उपलब्धियों को देश-दुनिया के साथ साझा कर सकें। इच्छुक महिलाएं ‘नमो ऐप’ के जरिए इस पहल में शामिल हो सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि 8 मार्च 2020 को भी प्रधानमंत्री ने इसी तरह अपने सोशल मीडिया अकाउंट विभिन्न क्षेत्रों की अग्रणी महिलाओं को सौंपे थे। प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने संबोधनों में नारी शक्ति के नेतृत्व और भारत के उत्थान में उनके योगदान की सराहना करते हैं। सरकार की अनेक नीतियां और योजनाएं भी महिला सशक्तीकरण को केंद्र में रखकर चलाई जा रही हैं।
घरेलू महिलाओं के लिए सप्ताह के सातों दिन एक जैसे
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बुनियाद क्लारा जेटकिन नाम की महिला ने रखी, जिसने दुनियाभर में महिलाओं के हक की लड़ाई को तेज किया। नतीजन, आज महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति मुखर होने लगीं हैं। रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए खुद को हर क्षेत्र में साबित कर रही हैं। वहीं, इस बात पर भी गौर करना बेहद जरूरी है कि इस खास दिन पर क्या देश की घरेलू महिलाएं के लिए कुछ विशेष किया जाता है? हमारे समाज में घरेलू महिला की दिनचर्या सूरज निकलने से पहले शुरू होती है और देर रात तक चलती रहती है। घर में रोज 16 से 17 घंटे काम करने के बाद भी महिलाओं के चेहरे पर शिकन नहीं आती। उनके लिए सप्ताह के सातों दिन एक जैसे होते हैं। इसके लिए उन्हें न तो कोई वेतन मिलता है और न ही कोई छुट्टी। सुबह नाश्ता बनाने, पति को साफ-सुथरे कपड़े देने, बच्चों को स्कूल भेजना, उन्हें वापस घर लेकर आना, उनकी पढ़ाई देखना, शाम को खाना बनाना और रात तक बिना थके काम में लगे रहना। यह केवल एक महिला ही कर सकती है, क्योंकि हम शुरू से ही सुनते आ रहे हैं कि महिला कभी थकती नहीं, अगर थक भी जाए तो परिवार का प्यार उसे एक नई ऊर्जा देता है, लेकिन जो महिलाएं पति पर निर्भर हैं, नौकरीपेशा नहीं हैं, उनके लिए क्या महिला दिवस क्या आम दिन। माना कि आर्थिक विकास में महिलाओं के इन कामों का लेखा-जोखा शामिल नहीं किया जाता है, परंतु भारतीय संस्कृति में घरेलू और कामकाजी महिला दोनों ही पति, बच्चों और घर की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर देती हैं।
भारतीय महिलाएं प्रेम और जिम्मेदारियों से लबरेज
“जैसे सांस बिना शरीर अधूरा है, वैसे ही नारी बिना जीवन अधूरा है। वह मां की ममता है। वह है तो घर संसार है। उसके बिना हर रिश्ता अधूरा है।” मशहूर लेखिका और समाज सेविका सुधा मूर्ति की नजरों में पुरुष और महिला साइकिल के दो पहियों की तरह एक-दूसरे के पूरक होते हैं। उनके अनुसार, महिलाएं बेहतरीन प्रबंधक, दयालु और उदार होती हैं, जो परिवार को जोड़कर रखती हैं।
भारतीय महिलाएं प्रेम और जिम्मेदारियों से लबरेज होती हैं। प्रत्येक पुरुष का दायित्व बनता है कि वह न केवल महिला दिवस पर बल्कि अन्य दिनों में भी अपने घर की महिलाओं का सम्मान करें। घर, परिवार, बुजुर्ग और बच्चों को संभालने के लिए उन्हें सम्मानित करें। इससे वह न केवल दोगुनी ऊर्जा के साथ काम करेंगी, बल्कि आपके इस सम्मान से काफी खुश भी होंगी।
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