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Germany में नई सत्ता से सीरियाई आप्रवासियों में खलबली, शोल्ज ने मानी हार, जीते दक्षिणपंथी फ्रेडरिक

चुनाव प्रचार के दौरान ही आम जर्मनवासी के मन की बात साफ होने लगी थी। उस देश में इस्लामी तत्वों में जिस प्रकार की उग्रता आई है वह वहां के नागरिकों के लिए चिंता का विषय बनता गया है

by Alok Goswami
Feb 24, 2025, 03:40 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
आप्रवासन नीति को लेकर आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी की सक्रियता चुनाव प्रचार में प्रमुखता से सामने आई थी

आप्रवासन नीति को लेकर आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी की सक्रियता चुनाव प्रचार में प्रमुखता से सामने आई थी

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यूरोप के कई अन्य देशों की तरह जर्मनी में भी इस्लामी उन्मादी तेजी से बढ़ते हुए शासन पर अपना रौब जमाते आ रहे हैं। वहां कानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती बन चुके इस्लामी तत्वों ने पूरा माहौल बिगाड़ रखा है, जगह जगह मस्जिदें खड़ी हो गई हैं और सड़कें घेरकर नमाज पढ़ी जाती है, उग्र प्रदर्शन किए जाते हैं।


इस दृष्टि से आप्रवासन नीति को लेकर आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी की सक्रियता चुनाव प्रचार में प्रमुखता से सामने आई। सीरिया के बड़ी संख्या में वहां आ बसे अवैध प्रवासियों को निकाल बाहर करने को मुख्य मुद्दा बनाया गया था।

जर्मनी में आम चुनावों के नतीजों को लेकर वहां के सर्वे जो कयास लगा रहे थे, वह सही साबित होता दिखा है। आज आए चुनाव नतीजों में चांसलर ओलाफ शोल्ज की पार्टी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा है। हार के बाद चांसलर शोल्ज ने हार की जिम्मेदारी स्वयं पर लेते हुए विपक्षी नेता फ्रेडरिक मर्ज को शुभकामनाएं दी हैं। चुनाव के नतीजे स्पष्ट रूप से दक्षिणपंथी पार्टी आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी ने बहुमत के साथ सफलता प्राप्त की है। अवैध आप्रवासियों की धुर विरोधी और उन्हें देश से बाहर करने की वकालती मानी जाने वाली इस पार्टी के सत्ता में आने से स्वाभाविक रूप से सीरिया के आप्रवासियों पर गाज गिरने की संभावनाएं बढ़ गई है।

इन चुनाव परिणामों के बाद, जर्मनी में राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। फ्रेडरिक मर्ज की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन और क्रिश्चियन सोशल यूनियन के गठबंधन ने 28.5 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं। यह गठबंधन तीसरा सबसे बड़ा धड़ा बनकर उभरा है। वहीं, आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी ने 20 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं, यह नतीजा उनके पिछले चुनावों के मुकाबले दोगुने लाभ वाला है। एसपीडी को मात्र 16 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं। एक प्रकार से इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का उसका सबसे खराब प्रदर्शन कहा जा सकता है।

चांसलर शोल्ज ने अपनी हार स्वीकार करते हुए अपनी पार्टी के सदस्यों के सामने कहा है कि चुनाव परिणाम आशा के विपरीत हैं। इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। उधर विपक्षी नेता फ्रेडरिक मर्ज ने चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह गठबंधन सरकार बनाने के शीघ्र ही प्रयास शुरू कर देंगे। यहां विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रक्रिया आसान नहीं रहने वाली है।

चुनाव प्रचार के दौरान ही आम जर्मनवासी के मन की बात साफ होने लगी थी। उस देश में इस्लामी तत्वों में जिस प्रकार की उग्रता आई है वह वहां के नागरिकों के लिए चिंता का विषय बनता गया है। यूरोप के कई अन्य देशों की तरह वहां भी इस्लामी उन्मादी तेजी से बढ़ते हुए शासन पर अपना रौब जमाते आ रहे हैं। वहां कानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती बन चुके इस्लामी तत्वों ने पूरा माहौल बिगाड़ रखा है, जगह जगह मस्जिदें खड़ी हो गई हैं और सड़कें घेरकर नमाज पढ़ी जाती है, उग्र प्रदर्शन किए जाते हैं।

इस दृष्टि से आप्रवासन नीति को लेकर आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी की सक्रियता चुनाव प्रचार में प्रमुखता से सामने आई। सीरिया के बड़ी संख्या में वहां आ बसे अवैध प्रवासियों को निकाल बाहर करने को मुख्य मुद्दा बनाया गया था।

इस हालत में अब, सीरिया के आप्रवासियों पर संकट के बादल गहराने की उम्मीद है। आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी की स्थिति मजबूत होने से जनसांख्यिक असंतुलन के कुछ संभलने के आसार हैं। उल्लेखनीय है कि साल 2015 में जर्मनी में ‘शरणार्थियों’ की संख्या एकाएक बढ़ने लगी थी। लेकिन अब संकट गले गले तक आ गया था। आम नागरिकों में आप्रवासियों को लेकर नजरिया बहुत बदल चुका है।

अब फ्रेडरिक मर्ज के सामने नई सरकार का गठन एक बड़ी चुनौती साबित होने जा रहा है। उन्होंने मजबूत नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का वादा किया है, लेकिन बिखरे हुए राजनीतिक परिदृश्य में गठबंधन बनाना आसान नहीं होगा। व्यवस्था के लिहाज से नई सरकार के औपचारिक गठन तक शोल्ज कार्यवाहक चांसलर बने रह सकते हैं। इसमें संदेह नहीं कि इस अवधि में जर्मनी की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियां का सामना कर सकती है।

जर्मनी में आर्थिक मंदी, आप्रवासन (माइग्रेशन) को रोकने के दबाव और यूरोप-अमेरिका संबंधों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता के बीच जर्मनी में यह बदलाव अनेक प्रकार से असर डाल सकता है।
यहां ध्यान रहे कि ये आम चुनाव निर्धारित समय से सात महीने पहले हुए हैं। इसके पीछे मुख्य वजह है शोल्ज के गठबंधन में असंतोष और अंदरूनी कलह के कारण फूट होना।

लगभग साढ़े आठ करोड़ की आबादी वाले देश जर्मनी में क्या नई सत्ता अपने वायदे के अनुसार, उग्र मुस्लिम आप्रवासियों को देश से बाहर कर पाएगी, या फिर अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं के तहत इस मुद्दे पर चुप बैठ जाएगी? जर्मन नागरिक बदलाव चाहते हैं और शांति चाहते हैं, इसके लिए अमेरिका की तरह अवैध आप्रवासियों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने ही होंगे।

Topics: चांसलर शोल्जआल्टरनेटिव फॉर जर्मनीchancellor sholzFriedrichsyriangermanyचुनावimmigrantsGeneral Elections
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