भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के बाद नए तेवर और कलेवर के साथ आगे बढ़ रही है। भाजपा ने 1993 में जीत के बाद पहली बार 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने में सफलता प्राप्त की है। इसका पहला प्रतिबिंब पश्चिम बंगाल में देखने को मिला है, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा की दिल्ली विजय से भयाक्रांत हो गई हैं और अभी से भाजपा का डर उन्हें सताने लगा है।
भाजपा ने 1993 में पहली बार दिल्ली विधानसभा में 49 सीटें जीतकर मदनलाल खुराना के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। भाजपा की यह दिल्ली विजय काफी शुभ और दूरगामी परिणाम देने वाली रही। इस जीत के बाद 1996 में भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी और पहली बार भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिनों के लिए देश के प्रधानमंत्री बने। फिर जब दिल्ली में भाजपा की सरकार थी, उसी क्रम में लोकसभा के अगले चुनाव में भाजपा को 182 सीटें मिलीं और भाजपा की 13 महीने की सरकार बनी।
इस बार भाजपा की दिल्ली में बड़ी जीत ने उसके लिए कई दरवाजे खोल दिए हैं। भाजपा अब आगामी चुनावों में नई ऊर्जा के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। अगला चुनाव इस साल के अंत में बिहार विधानसभा का है। अगले वर्ष महत्वपूर्ण राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी के चुनाव हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दिल्ली के चुनाव परिणाम के साथ ही पश्चिम बंगाल में भी दिल्ली जैसी बड़ी जीत के लिए कमर कस ली है। दिल्ली की जीत ने पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई को बड़ी ताकत और ऊर्जा दी है और पार्टी नए उत्साह से लबरेज हो गई है।
बिहार में भाजपा का दशकों से नीतीश कुमार की जदयू के साथ गठबंधन है। भाजपा अब एनडीए के साथ पहले से ज्यादा बड़ी जीत बिहार में दर्ज करने की ओर बढ़ती दिख रही है। बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन (जिसमें लालू यादव की राजद, कांग्रेस और अन्य दल शामिल थे) ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी थी। उस चुनाव में वोटों के लिहाज से एनडीए और महागठबंधन के बीच बहुत कम अंतर था। बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कई मौकों पर इस अंतर को लेकर चर्चा की है। मगर अब एनडीए बिहार में बड़ी जीत की ओर बढ़ती दिख रही है।
ममता बनर्जी दिल्ली चुनाव में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन से इतनी डर गई हैं कि अभी से ही वह अपने अगले चुनाव के लिए भयभीत हो गई हैं। दिल्ली चुनाव से पहले ममता बनर्जी इस तरह के बयान देने से बचती थीं। उन्होंने पूरी ताकत से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को समर्थन देकर भाजपा को हराने और कमजोर करने का प्रयास किया था, जिसमें वह बुरी तरह विफल रहीं। ममता बनर्जी ने केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए इस सीट के पूर्व विधायक और अपनी पार्टी के सांसद कीर्ति आजाद और इस सीट के अंतर्गत आने वाली लोकसभा सीट से 1992 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके शत्रुघ्न सिन्हा को भी केजरीवाल के समर्थन में उतारा था। मगर ये नेता दिल्ली तो दूर, खुद केजरीवाल को भी अपनी सीट से जीत दिलाने में असफल रहे। कीर्ति आजाद नई दिल्ली विधानसभा सीट (जिसे पहले गोल मार्केट सीट कहा जाता था) से 1993 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे।
अब ममता बनर्जी भाजपा और एनडीए को रोकने के लिए इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राजद के लिए अपनी पूरी ताकत लगाते हुए दिख सकती हैं। अगर कांग्रेस और राजद में 2010 की तरह गठबंधन नहीं होता है, तो ममता बनर्जी लालू यादव की पार्टी राजद को चुनावी समर्थन देते हुए नजर आ सकती हैं।
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