बांग्लादेश का संभवतया वह दौर आने लगा है, जहां पर वह कट्टरपंथ के मार्ग पर काफी दूर निकल चुका है। अब उसने पुस्तकों पर भी हमला करना स्वीकार कर लिया है। कट्टरपंथी मजहबी उन्मादियों ने अब बांग्ला अकादमी के अमर एकुशे पुस्तक मेले में सब्यसाची प्रकाशन के स्टॉल पर हमला कर दिया और उस प्रकाशन का कुसूर केवल इतना था कि उस स्टॉल पर बांग्लादेश की उस लेखिका की पुस्तकें थीं, जिन्हें कट्टरपंथियों ने देश छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया था।
सब्यसाची प्रकाशन अपने स्टॉल पर बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन की पुस्तकें बेच रहा था। उस स्टॉल में तोड़फोड़ की गई, उसके मालिक को मारा-पीटा गया और उनके काम को जबरन बंद करा दिया गया। यह सब मोहम्मद यूनुस की नाक के नीचे ही हुआ।
तसलीमा नसरीन ने एक्स पर अपनी वाल पर इस तोड़फोड़ का वीडियो साझा किया। उन्होंने लिखा कि आज जिहादी मजहबी कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश के पुस्तक मेले में सब्यसाची के स्टॉल पर हमला किया। उनका अपराध केवल इतना था कि उन्होंने मेरी पुस्तक प्रकाशित की है। फिर उन्होंने लिखा कि प्रकाशक पर मेले के आयोजकों और स्थानीय पुलिस थाने ने यह दबाव डाला था कि वह मेरी अर्थात तस्लीमा नसरीन की किताबें हटा दें।
प्रकाशकों ने तस्लीमा की पुस्तकें हटा दीं, मगर फिर भी कट्टरपंथियों ने स्टॉल पर हमला किया, उसे तोड़फोड़ा और फिर उसे बंद करा दिया।
Today, jihadist religious extremists attacked the stall of the publisher Sabyasachi at Bangladesh's book fair. Their "crime" was publishing my book. The book fair authorities and the police from the local station ordered the removal of my book. Even after it was removed, the… pic.twitter.com/ypddpQysiu
— taslima nasreen (@taslimanasreen) February 10, 2025
यह संयोग ही है कि जहां बांग्लादेश में पुस्तक मेला चल रहा है तो वहीं नई दिल्ली में भी 9 फरवरी तक अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला चला। इस मेले की ही कुछ तस्वीरें तस्लीमा ने साझा की थीं। एक तस्वीर में राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर कुछ किशोर उम्र की लड़कियां तस्लीमा की पुस्तकों के साथ तस्वीरें खिंचवा रही थीं।
World Book Fair. New Delhi. pic.twitter.com/eVlK8amETj
— taslima nasreen (@taslimanasreen) February 2, 2025
तस्लीमा स्वयं भी नई दिल्ली पुस्तक मेले में एक चर्चा में उपस्थित थीं। मगर वह अपने मुल्क में नहीं जा सकती हैं, वे ही नहीं बल्कि अब तो उनकी पुस्तकें भी उनके अपने देश नहीं जा सकती हैं। उन्हें और उनकी पुस्तकों दोनों को ही देश निकाला दिया जा चुका है।
बांग्लादेश छात्र लीग के अध्यक्ष और ढाका विश्वविद्यालय केंद्रीय छात्र संघ के पूर्व सहायक महासचिव हुसैन सद्दाम ने एक्स पर लिखा कि दो दिनों से कट्टरपंथी सोशल मीडिया पर हिंसा और मृत्यु की धमकी दी जा रही थीं और स्टॉल को नष्ट करने की बातें केवल इसलिए की जा रही थीं कि वह प्रकाशक “नास्तिकता का प्रचार-प्रसार करता है।“
उन्होंने लिखा कि कई धमकियों के बाद भी प्रशासन द्वारा उन्हें कोई भी सहायता नहीं दी गई और साथ ही अधिकारियों ने कोई भी बचावात्मक कदम नहीं उठाया। उन्होंने बहुत आराम से स्टॉल में तोड़फोड़ होने दी। यह हैरानी की बात है कि जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए मोहम्मद यूनुस की सरकार को छूट दी जानी चाहिए थी, तो वहीं मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने हिंसा करने वालों को खुली छूट दी कि वह बिना किसी बाधा के तोड़फोड़ कर सकें।“
बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से इस्लामी कट्टरपंथी हावी हैं और वे लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिससे बांग्लादेश कट्टरता के जाल से निकलने के स्थान पर फँसता जा रहा है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ही नहीं बल्कि महिला पर भी हमला है। मोहम्मद यूनुस की सरकार लगातार महिला विरोधी कदम उठाती दिख रही है।
एक और चौंकाने वाली तस्वीर एक्स पर इसी पुस्तक मेले की दिखाई दी, जिसमें बांग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना की तस्वीर को कूड़ेदान में लगा रखा था।
Throwing trash at a bin on the first day of the Ekushey Book Fair at Bangla Academy on Saturday.@CApress_sec #DhajaDiary pic.twitter.com/IvtNcYIbhw
— বৈষম্যবিরোধী ছাত্র আন্দোলন (@antiquotadu) February 1, 2025
बांग्लादेश की दो महिलाएं जो कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं, दोनों ही मुखर महिलाएं हैं जो बांग्ला संस्कृति को अपने भीतर जीवित रखे हुए हैं। वे उन मूल्यों को अपने कार्यों के माध्यम से बरकरार रखे हुए हैं, जिनकी जड़ें मुस्लिम लीग वाले पूर्वी पाकिस्तान में न होकर बांग्ला बोलने वाले बांग्लादेश में है।
वे हिन्दू जड़ों से जुड़ी हुई महिलाएं हैं। तस्लीमा लगातार ही निशाने पर रहती हैं। और वे बांग्लादेश में निरंतर बढ़ रही इस्लामी कट्टरता के विषय में भी एक्स तथा सोशल मीडिया के अन्य मंचों पर अपनी बात मुखर होकर रखती रहती हैं और यही कारण हैं कि वे मजहबी कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती हैं। क्या इन घटनाओं पर सरकार की दृष्टि नहीं गई होगी? क्या बांग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री के चेहरे के कूड़ेदान वहाँ के आयोजकों को या सरकार के अधिकारियों को दिखाई नहीं दिए होंगे? या फिर यह भी प्रश्न उठ सकता है कि हो सकता है कि यह सब सरकार के ही इशारे पर हो रहा हो।
कट्टरपंथ पर लगाम लगाने में यह सरकार पूरी तरह से विफल रही है और सब्यसाची के स्टॉल पर हमले को देखकर यह प्रतीत होता है कि बांग्लादेश लगातार अपने पतन की राह पर अग्रसर है, जहां अपनी जड़ों से लगाव रखने वाली महिलाओं का अपमान हो रहा है।
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