बांग्लादेश में वही सब हो रहा है, जो पाञ्चजन्य ने अगस्त 2024 से लिखना आरंभ किया था। हमने यही लिखा कि शेख हसीना के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं है, बल्कि यह शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति गुस्सा है कि उन्होंने पाकिस्तान से अलग होकर एक इस्लामिक मुल्क की पहचान बदलने का प्रयास किया। शेख हसीना को भगाया जाना, अपनी उसी पहचान से छुटकारा पाने का एक कदम था, जो पहचान उन्हें यह बताती थी कि एक इस्लामी मुल्क से दूसरा इस्लामी मुल्क उस देश की सहायता से अलग हुआ, जिस देश से अलग होने के लिए ढाका में ही नींव रखी गई थी।
भीड़ ने अब शेख मुजीबुर्रहमान का घर जला दिया। यह वही घर है, जहां पर शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र बांग्लादेश का सपना देखा था। बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने डिफेन्स पाकिस्तान का एक्स पर लिखा गया पोस्ट साझा किया। इस पोस्ट में डिफेन्स पाकिस्तान की ओर से लिखा गया है कि “एक धोखेबाज की विरासत का अंत। ढाका में मुजीबुर्रहमान का घर बांग्लादेशी इंकलाब लाने वालों ने नष्ट कर दिया।
उन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान का 32 धनमंडी में बना हुआ घर बर्बाद कर दिया और यह वही जगह है जहां पर उसने भारत के साथ मिलकर पाकिस्तान को तोड़ने की साजिश रची थी। इसके नष्ट होने के बाद अब मुजीबुर्रहमान की कोई भी पहचान बांग्लादेश में नहीं बची है।“
https://Twitter.com/taslimanasreen/status/1887337674790363588?
तस्लीमा ने अपनी एक पोस्ट में उस जलते हुए घर की तस्वीरें लगाईं और लिखा कि “स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण करने वाले की अंतिम निशानी भी आज राख में तब्दील कर दी गई। रोओ बांग्लादेश रोओ!”
यदि अगस्त 2024 का गुस्सा केवल शेख हसीना के प्रति था, तो फिर शेख मुजीबुर्रहमान की निशानियाँ क्यों यूनुस सरकार की भीड़ द्वारा मिटाई जा रही हैं? यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है, जिसे हमने लगातार पाञ्चजन्य में उठाया था और यह आरंभ से ही कहा था कि निशाना शेख हसीना नहीं, बल्कि शेख मुजीबुर्रहमान हैं, क्योंकि उन्होनें ही बांग्लादेश को वह पहचान दिलाई थी, जो उसकी 1906 की उस पहचान से एकदम अलग थी, जिसके आधार पर वह भारत से अलग हुआ था।
तस्लीमा ने भी इसी को और स्पष्ट करते हुए एक्स पर पोस्ट किया कि जिन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान के म्यूजियम पर हमला किया, वे कभी भी स्वतंत्र बांग्लादेश नहीं चाहते थे। उन्होंने हमेशा ही धर्म निरपेक्षता को अस्वीकार किया। जो वर्ष 1971 में इस्लामी मुल्क चाहते थे और जो पाकिस्तान जैसे आतंकी देश के साथ काम करना चाहते थे।
उन्होंने और उनके वंशजों ने आज सब कुछ राख में मिला दिया, वे लोग जो कट्टर मुस्लिम हैं, और जो गैर मुस्लिमो से घृणा करते हैं और जो महिला विरोधी हैं और वे अब सत्ता में हैं। वे यूनुस सरकार हैं।
इसलिए, कानून लागू करने वाली संस्थाएँ चुप रहती हैं, जबकि वे विनाश करते हैं, इतिहास से शेख मुजीब का नाम मिटा देते हैं, और मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटा देते हैं। यह उनके लिए कोई नया सपना नहीं है।
5 अगस्त से वे उस सपने को हकीकत बना रहे हैं।“
https://Twitter.com/taslimanasreen/status/1887253152610558014?
5 अगस्त 2024 को शेख हसीना से छुटकारा पाने के लिए विद्रोह नहीं था। वह दरअसल धर्मनिरपेक्ष बांग्ला राज्य की पहचान के विरोध में था। जिसके बारे में लगातार कहा गया। यह कैसे कोई इस्लामी मुल्क स्वीकार कर सकता है कि उसे आजादी एक ऐसे देश की मदद से मिली, जिसमें गैर मुस्लिम अधिक हैं? बांग्लादेश में धनमंडी स्थित शेख मुजीबुर्रहमान के घर के साथ जो हुआ है, वह उसकी पूर्वी पाकिस्तान की पहचान वापस पाने के लिए एक और कदम है। वह उस इतिहास को समाप्त करने का कदम है, जो बांग्लादेश की पहचान को उसकी मूल पहचान अर्थात भारत से जोड़ता है। यह उस पूरी विरासत को नष्ट करने के लिए उठाया गया कदम है जो बांग्ला भाषा को संस्कृत से जोड़ती है।
चूंकि शेख मुजीबुर्रहमान ने भाषाई, सांस्कृतिक पहचान को इस्लामिक पहचान से ऊपर रखा था, और इसी आधार पर इस्लामी पहचान वाले मुल्क पाकिस्तान से अलग हुए थे, इसलिए जो भी गुस्सा शेख हसीना के प्रति दिखा, वह शेख हसीना के प्रति न होकर शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति ही था, क्योंकि उन्होंने उस सपने को तोड़ा था, जिस सपने की नींव ढाका में ही रखी गई थी।
यह चिंगारी वर्ष 1971 से सुलगती रही थी, और जब उचित समय आया, तब उसके वह सब जला दिया, जो स्वतंत्र बांग्लादेश की बात करता था, जो यह बताता था कि वह भाषा और संस्कृति के आधार पर बने एक धर्मनिरपेक्ष देश है।
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