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कवि प्रदीप ने जब रातोंरात बदला ये मशहूर गाना जिसे सुनकर आ जाते हैं आंसू, अंग्रेजों ने दिया था गिरफ्तारी का आदेश

कवि प्रदीप न तो सिनेमा की फिसलन की तरफ गए और न ही पैसों की तरफ भागे। उन्होंने अपने गीतों में देश और उपदेश को मजबूती से पकड़े रखा।

by Sudhir Kumar Pandey
Feb 6, 2025, 09:49 am IST
in मनोरंजन
कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

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भारतीय सिनेमा का शुरुआती दौर था और उस समय गीतों में उर्दू का बोलबाला था। हिंदी अपनी पहचान के लिए जगह खोज रही थी। सिनेमा से जुड़े लोग कहते थे कि हिंदी में अच्छे गीत नहीं लिखे जा सकते। उनके इस नैरेटिव को उस समय ध्वस्त किया था कवि प्रदीप ने। उन्होंने देश की नब्ज को पकड़ा और अपने गीतों में देश के भावों को उकेरा।

कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। आध्यात्मिक माहौल उन्हें बचपन से मिला। एक कवि से लेकर सिनेमा के स्थापित गीतकार तक का सफर उन्होंने तय किया। वह न तो सिनेमा की फिसलन की तरफ गए और न ही पैसों की तरफ भागे। उन्होंने अपने गीतों में देश और उपदेश को मजबूती से पकड़े रखा। ये बातें कवि प्रदीप ने खुद स्वीकार की हैं। फिल्म लाइन में यह मान्यता है कि हिंदी वाले प्रेम के गाने अच्छे नहीं लिखते, उर्दू वाले और गजल वाले ज्यादा अच्छे लिखते हैं।

एक इंटरव्यू में प्रदीप कहते हैं कि कुछ लोग प्रेम के ही गाने लिखते रहे। प्रेम ही जीवन नहीं। मैंने देश और उपदेश को पकड़ा। फिल्म लाइन में फिसलन की तरफ मैं नहीं गया। जिस समय भारतीय सिनेमा आकार ले रहा था, उस समय हिंदी और उर्दू को लेकर सिनेमा में क्या सोच थी, इससे भी उन्होंने पर्दा उठाया।

हिंदी फिल्मों का उदय काल

कवि प्रदीप कहते हैं कि मैंने सिनेमा में देखा कि उर्दू का बोलबाला है। इससे मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि फिल्म लाइन का उदय काल है। जब टॉकी आई तो उस पर जो नाटक का मंच था, उसमें आग़ा हश्र काश्मीरी आदि छाए हुए थे। उर्दू प्रधान स्टाइल थी। मैंने सोचा कि हिंदी के भी शब्दों को लाया जाए जिससे कि ये पापुलर हों। मैंने आसमां की जगह गगन लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग स्वीकार करते गए। यह हिंदी फिल्मों का उदय काल था और जो ऐसे प्रांतों में बनीं जहां हिंदी के प्रेमी नहीं थे। मुंबई में मराठी और गुजराती बोलने वाले लोग थे। बंगाल में बंगाली छाई हुई थी। पंजाब में फिल्में बनीं तो पंजाब का स्टाइल। पंजाब में उर्दू प्रेमी लोग थे। इन सब चीजों के बीच हिंदी के लिए बड़ा मुश्किल था अपनी मुंडी दिखाना। हम लोगों ने कुछ प्रयास किया। मैं इन सबके बीच वहां डटा रहा। मैंने सोचा कि भागने से कोई फायदा नहीं। लिखते रहो, कुछ प्रयोग करते रहो। तो मैं प्रयोग करता रहा। प्रयोग सफल हुए।

इस तरह रातो-रात बदला गाना

1962 में चीन ने भारत पर हमला किया। उन्होंने हमें थप्पड़ मारा, अपने आप निर्णय कर लिया कि चलो वापस। देश में आवाज उठी कि कहीं देश हिम्मत न हार बैठे। सबका ध्यान या तो रेडियो पर जाता था या फिल्म पर। मुझसे गाने के लिए कहा गया। हमने कहा कि लता मंगेशकर नाम की स्वर साम्राज्ञी कहती हैं कि भाइयो अभी चंद महीनों पहले अपने यहां एक लड़ाई हुई थी, जिसमें हमारे भाई कुछ अपने घरों से अपनी माताओं से, बहनों से, पत्नियों से तिलक लगवाकर गए थे, देश के लिए कुछ करने के लिए, लेकिन वे वापस नहीं लौटे। क्यों न हम-तुम मिलकर आज उन्हें याद करें। क्यों न हम उन्हें याद कर अश्रु के दो अंजलि प्रदान करें। यही गाने का बेस था। लेकिन हमने शुरू में दो लाइन लिखी

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी

जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी

ये दो लाइन लिखने के बाद म्यूजिक डायरेक्टर दौड़ा-दौड़ा आया। उसने कहा कि अपनी तो पोल खुल गई। मैंने कहा कि क्या हुआ? दिल्ली से संदेश आया है कि हम स्मारिका निकाल रहे हैं। पहली दो लाइन लिखकर दे दीजिए। मैंने कहा कि शहीदों का टॉपिक ओपन हो गया। अब तो कोई भी राइटर शहीदों के बारे में लिख देगा। मैंने उसे सुबह आने को कहा। रात भर मुझे नींद नहीं आई। कार्यक्रम 1963 में लाल किला में होने वाला था। उसमें प्रधानमंत्री, मंत्री आदि सब थे। हमने उस गीतको बदल दिया। दूसरी तीसरी लाइन में ओपन किया। गीत बना –

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आये

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी

जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी

दूर हटो ये दुनिया वालों

पचास साल के अपने गीतों के सफर में कवि प्रदीप ने 70 से अधिक फिल्मों के लिए डेढ़ हजार से अधिक गीत लिखे। कवि प्रदीप के गीतों में देश प्रेम दिखता है। उन्होंने देश की भावनाों को सुंदर शब्दों में पिरोया। दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदुस्तान हमारा है, यह गीत किस्मत फिल्म का है। यह वर्ष 1943 में रिलीज हुई थी। इस गीत से ब्रिटिश सरकार आग बबूला हो गई थी। ब्रिटिश सरकार ने कवि प्रदीप को गिरफ्तार करने तक का आदेश जारी कर दिया था। कवि प्रदीप ने कई यादगार गीत लिखे। भारत सरकार ने 1997-98 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया था।

 

 

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