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कबीर के गुरुभाई और कृष्णभक्त मीराबाई के गुरु संत रविदास

संत शिरोमणि रविदास की जयंती पर विशेष

by सुरेश कुमार गोयल
Feb 11, 2025, 06:18 am IST
in भारत
समरसता के संवाहक संत रविदास

समरसता के संवाहक संत रविदास

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जातिवाद के खिलाफ अलख जगाने वाले संत शिरोमणि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को सन 1376 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के पास सीर गोबर्धनपुर गांव में रविवार को हुआ। रविवार के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम रविदास रखा गया। संत रविदास की माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम कालूराम जबकि  दादी का नाम लखपती था। पत्नी लोनाजी से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम विजय दास रखा गया।

पंजाब में रविदास और उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इन्हें संत रैदास के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग ‘रोहिदास’ और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है।

बचपन में रविदास जी अपने गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में जाया करते थे। उन दिनों जातपात बहुत ज्यादा था। विरोध होने पर पंडित शारदा नन्द ने रविदास को व्यक्तिगत् पाठशाला में शिक्षा दी। संत रविदास जाति प्रथा के उन्मूलन में प्रयास करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भक्ति आंदोलन में भी योगदान दिया। रैदास पंथ का पालन करने वाले लोगों में रविदास जयंती का विशेष महत्व है। संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। उन्होंने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी।

रविदासजी जी के पिता मृत जानवरों की खाल निकालकर उससे चमड़ा बनाते और फिर उसकी चप्पल बनाते थे। वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। रविदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे। भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती गई। वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा,  हरी, गोविन्द आदि शब्द उपयोग करते थे, जिससे उनकी धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था।

रविदास जी के साथ के लोग भी तिलक लगाने, कपड़े एवं जनेऊ पहनने से रोकते थे। गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे, और कहते थे सभी इन्सान को धरती पर समान अधिकार हैं, वो अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकता है।

रविदास जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था और अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। ऐसा कहा जाता है कि यह सब देखकर एक ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव भी बनाया गया था।

वैष्णव भक्तिधारा के महान संत स्वामी रामानंदाचार्य जी के शिष्य थे रविदास। वह संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इन्हें मान्यता दी है। कृष्णभक्त मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनी थीं। चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है।

सन 1528 में अपनी देह त्याग कर सदा के लिए प्रभु धाम चले गए। इनके सम्मान में भारत की मोदी सरकार ने वाराणसी में करोड़ों रुपये खर्च कर रविदास जी की याद में रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट सहित बहुत से स्मारक बनाये है। जन्म स्थान पर हर वर्ष जयंती पर बड़ा मेला लगता हैं।

रविदास जी ने अपनी बानी में लिखा कि ‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच’ यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में भी सम्मिलित किए गए हैं।

 

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