देश की आजादी के बाद जब संविधान सभा का गठन हुआ था तभी से समान नागरिक संहिता को लागू किया जाना चाहिए था, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते ऐसा नहीं किया गया। हिंदू पर्सनल लॉ बिल के लाए लाने से पहले 1951 में सिर्फ हिन्दू लॉ को कानून में पिरोने का विरोध करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पंडित नेहरू से कहा था कि अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती?
14 सितंबर, 1951 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने हिन्दू कोड बिल लाने का विरोध करते हुए कहा था, ‘जो प्रावधान इस कानून के जरिए किए जा रहे हैं यदि वे लोगों के हित में हैं और इतने फायदेमंद हैं तो सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों लाए जा रहे हैं, बाकी समुदायों को इसके लाभ से क्यों वंचित रखा जा रहा है?’
उन्होंने इस बिल पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे मेरिट पर परखने की बात कही थी। इस पत्र के जवाब में नेहरू ने उन्हें लिखा, ‘आपने बिल को मंजूरी देने से पहले उसे मेरिट पर परखने की जो बात कही है वह गंभीर मुद्दा है। इससे राष्ट्रपति और सरकार व संसद के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। राष्ट्रपति को संसद द्वारा पास बिल के खिलाफ जाने का अधिकार नहीं है।’
नेहरू का पत्र मिलने के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 18 सितंबर को एक और पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने संविधान के तहत राष्ट्रपति को मिली शक्तियां गिनवाईं और लिखा, ‘वे इस मामले में टकराव की स्थिति नहीं लाना चाहते हैं। वह सबके हित की बात कर रहे हैं।’ डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंडित नेहरू के बीच हुए इस पत्राचार के बाद इस संबंध में तत्कालीन अटार्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय ली गई।
उन्होंने 21 सितंबर, 1951 को दी गई अपनी राय में कहा, ‘राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से चलेंगे। मंत्रिपरिषद की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।’ कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए कभी भी समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की। 1956 में हिन्दू पर्सनल लॉ बिल पास हो गया। इसके बाद लगातार देश में कांग्रेस की सरकार रही लेकिन देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ।
यूसीसी लागू करने को चुनौती
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीबी) ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू किए जाने पर आर—पार की लड़ाई की चेतावनी दी है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, ‘उत्तराखंड में यूसीसी अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर हमला है। इसलिए यह बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने बताया कि बेंगलुरु में आयोजित बोर्ड की बैठक में तय किया गया था कि यूसीसी कानून को अदालत में चुनौती दी जाएगी।’
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