इस ‘चैटबॉट’ को अमेरिका ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में सवालों का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका की संसद ने तो अपने द्वारा जारी नोटिस में इस ‘खतरनाक साफ्टवेयर’ करने वाला चैटबॉट कहा गया है। आगे नोटिस कहता है कि फिलहाल ‘डीपसीक’ की पड़ताल की जा रही है। इस जांच को देखते हुए अभी अमेरिकी संसद में इसे प्रयोग न किया जाए।
चीन के एआई डीपसीक पूरी दुनिया में बदनामी के नए कीर्तिमान गढ़ रहा है। इसके विरुद्ध सबसे पहले कड़ा कदम उठाया है अमेरिका, इटली और आयरलैंड की सरकारों ने। अमेरिका की सरकार ने तो अपनी संसद में इसे इस्तेमाल करने पर सख्त पाबंदी लगा दी है। संसद में फोन, आइपैड, कम्प्यूटर आदि गजैंट्स पर इसे इंस्टाल करना मना हो गया है।
अमेरिकी संसद की ओर बयान जारी करके कहा गया है कि एआई तकनीक का विकास बहुत तेजी से हो रहा है। इसके कारण सुरक्षा और प्रशासन से जुड़े कामों में अनेक मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। इसे देखते हुए संसद स्थित कार्यालय चीन के एकआई चैटबॉट ‘डीपसीक’ को प्रयोग न करें, इस पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इस संबंध में एक रिपोर्ट बताती है कि संसद में विभिन्न कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों को कह दिया गया है कि कार्यालय से प्राप्त फोन, कंप्यूटर आदि पर ‘डीपसीक’ को डाउनलोड न करें।
इस ‘चैटबॉट’ को अमेरिका ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में सवालों का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका की संसद ने तो अपने द्वारा जारी नोटिस में इस ‘खतरनाक साफ्टवेयर’ करने वाला चैटबॉट कहा गया है। आगे नोटिस कहता है कि फिलहाल ‘डीपसीक’ की पड़ताल की जा रही है। इस जांच को देखते हुए अभी अमेरिकी संसद में इसे प्रयोग न किया जाए।
अमेरिकी संसद की यह विज्ञप्ति डीपसीक पर बैन की बात नहीं करता बल्कि इससे संभावित खतरों की तरफ भी संकेत करता है। इसके अनुसार, इस चैटबॉट की सहायता से कम्प्यूटर में अनचाहे ही ‘मैलवेयर’ डालने की सुविधा है। मैलवेयर की अनेक खतरे होते हैं, यह फाइलों को करप्ट कर सकता है, डाटा कॉपी कर सकता है, कम्प्यूटर को खराब कर सकता है, हैंग कर सकता है आदि।
संसद पर इस एआई पर रोक लगने से पहले वहां की नौसेना इसे प्रतिबंधित कर चुकी थी। अमेरिकी नौसना की ओर से 29 जनवरी को ही चीनी एआई डीपसीक पर पाबंदी लगा दी गई थी। नौसेना की लगाई पाबंदी के पीछे वजहें बताई गई हैं सुरक्षा और ‘नैतिक कारण’। नौसना से जुड़े सभी कर्मियों से इस डीपसीक से दूर रहने को कहा गया है।
अमेरिका की तरह ही आयरलैंड और इटली भी डीपसीक को प्रतिबंधित कर चुके हैं। प्रतिबंध इतना सख्त है कि इन देशों में एपल के एप स्टोर से अथवा गूगल के प्ले स्टोर से ‘डीपसीक’ को अब डाउनलोड तक नहीं कर सकते। वहां भी इस चैटबॉट की डाटा नीतियों की गहन पड़ताल चल रही है।
दरअसल चीनी एआई चैटबॉट ‘डीपसीक’ के नाम से चल रहा है। इसे फोन में डाउनलोड करके जो आदेश दिया जाए उस पर तेजी से काम करके ये समाधान दे सकता है। जैसे चैटजीपीटी, मेटा और एआई एप काम करते हैं वैसे ही डीपसीक भी काम करता है। इस के जरिए अनेक मुश्किल काम किए जा सकते हैं, जैसे कोडिंग करना या गणित के प्रश्न हल करना। इसका एक मुफ्त वर्जन भी है। यह ओपन सोर्स एआई मॉडल पर आधारित है। अन्य देशों की तरह अमेरिका, इटली और आयरलैंड में यह प्ले स्टोर से आसानी से डाउनलोड किया जा सकता था, लेकिन अब इन तीन देशों में ऐसा न हो पाएगा। चीनी ‘शरारत’ को लेकर सरकारें सख्त हो चली हैं।
एआई का यह चीनी स्वरूप बहुत कम लागत में बनाया गया है। इसके मुकाबले अमेरिका के ‘एनवीडिया’ एआई मॉडल को मेटा तथा माइक्रोसॉफ्ट ने काफी पैसा लगाकर डेवेलप किया है। बताया जाता है कि चीनी ‘डीपसीक’ एआई की लागत सिर्फ 48.45 करोड़ रुपए आई है।
हालत यह हो गई थी कि एप स्टोर पर चैटजीपीटी से अधिक डाउनलोड डीपसीक के हो रहे थे। चीनी एआई की आक्रामक ब्रांडिंग की वजह से उपभोक्ता इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन जैसे दूसरे चीनी एप या गेम्स अथवा प्रोग्राम जासूसी, डाटा चोरी आदि के संदर्भ में शक की नजर से देखे जाते हैं वैसे ही चीन का यह डीपसीक चैटबॉट भी संदिग्ध हो चला है।
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