दिल्ली में सफाई कर्मचारियों के लिए स्थितियां अभी भी बेहद चुनौतीपूर्ण और असंवेदनशील हैं। मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी (बिना मशीनों के सीवर में उतरकर सफाई करना) संविधान और कानून के तहत मानवाधिकार उल्लंघन है। बावजूद इसके दिल्ली में ऐसा लगातार हो रहा है। यह न केवल एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या है बल्कि दिल्ली सरकार की असंवेदनशीलता का भी उदाहरण है।
दिल्ली के सफाई कर्मचारी अभी भी बदतर हालात में काम करने को मजबूर हैं। स्थायी सफाई कर्मचारियों को भले कुछ सुविधाएं मिलती हों, लेकिन अस्थायी सफाई कर्मचारियों की स्थिति अधिक दयनीय है। वे न केवल कम वेतन पर काम करते हैं, बल्कि शोषण और खतरनाक परिस्थितियों का शिकार भी होते हैं।
सरकार के प्रयासों का सच
एक राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक के अनुसार दिल्ली में लगभग 67,000 सफाई कर्मचारी हैं। इनमें से लगभग आधे स्थायी नहीं हैं। स्थायी और अस्थायी सफाई कर्मचारियों के बीच बहुत बड़ा भेदभाव है। जहां स्थायी कर्मचारियों को अधिक वेतन, बोनस, चिकित्सा सुविधाएं और अवकाश मिलता है, वहीं अस्थायी कर्मचारियों को केवल 16,000 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। इसके अलावा, अस्थायी सफाई कर्मचारी शोषण का शिकार होते हैं और अक्सर उन्हें सीवर में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसके कारण कई कर्मचारी अपनी जान तक गंवा देते हैं।
प्रोफेसर अदिति नारायणी पासवान ने 4 दिसंबर, 2024 को एक अखबार में अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि सीवर कर्मचारियों की मौत हमारे जाति-ग्रस्त समाज का असल प्रतिबिंब है। लोग उन्हें इंसान नहीं मानते और इस कारण उनके बारे में सोचा नहीं जाता। स्पष्ट है कि कोई भी स्वेच्छा से तो सीवर में नहीं उतरेगा। मजबूर होकर ही लोग अक्सर अपनी जान जोखिम में डालकर सफाई और रखरखाव के लिए सेप्टिक टैंकों और जहरीले सीवरों में उतरने को मजबूर होते हैं। इसके पीछे दो बड़े कारण हैं:
- अनुसूचित जाति के गरीब, अशिक्षित और बेरोजगार लोग, जो कुछ पैसे पाने के लिए सीवर सफाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
- ठेकेदारों, इंजीनियरों, प्रबंधकों और निवासियों द्वारा इन लोगों का शोषण किया जाता है।
इन दोनों कारकों का संबंध अंतत: सरकार से है, क्योंकि यह सरकार ही है जो सीवरों के रखरखाव में सक्षम नहीं है और मशीनी सफाई की व्यवस्था को लागू करने में विफल रही है।
विस्तार से देखें तो सरकारी रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि सफाई कर्मचारियों की मृत्यु दर उच्च बनी हुई है, और इन मौतों के बाद उन्हें सरकार से कोई ठोस न्याय या मुआवजा प्राप्त नहीं होता। इसके अलावा, सीवरों की सफाई में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की कमी और तकनीकी अव्यवस्था भी साफ दिखती है। जो 200 मशीनें खरीदी गईं, उनमें से अधिकांश खराब हैं।
सरकार की जिम्मेदारी
दिल्ली सरकार को सीवर सफाई कर्मचारियों के लिए बेहतर वेतन, चिकित्सा सुविधाओं, और पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन सरकार ऐसा करने में विफल रही है। बड़े—बड़े वादे कर सत्ता में आए केजरीवाल ने सफाई कर्मचारियों के लिए पिछले दस साल में क्या किया है, इसका जवाब मांगे जाने की जरूरत है। मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सफाई कर्मचारियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए उनके पुनर्वास की योजना को लागू किया जाना चाहिए था। सभी कर्मचारियों को बेहतर वेतन, चिकित्सा सुविधाएं और जीवनयापन की बेहतर स्थितियां प्रदान की जानी चाहिए थीं पर पिछले दस साल में सरकार का इस दिशा में कोई गंभीर कदम न उठना सफाई कर्मचारियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
दिल्ली जल बोर्ड सेप्टिक टैंकों के रखरखाव की देखरेख नहीं करता है पर वह केवल नियमित अंतराल पर सीवेज की सफाई की निगरानी करता है। यह मैनुअल स्कैवेंजिंग के प्रति सरकारी प्रयासों की लापरवाही को दर्शाता है। आआपा सरकार ने सुरक्षित और अधिक कुशल सीवेज सफाई के लिए अधिक शक्तिशाली मशीनीकरण और आधुनिक जेटिंग उपकरण लाने का प्रयास नहीं किया। पिछले दस वर्ष के शासनकाल में सफाई कर्मचारियों की स्थिति जस की तस बनी हुई है।
राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल कहती हैं, ‘‘केजरीवाल के लंदन-पेरिस के वादों का सच अब जनता खुद देख रही है। सड़कों की हालत खस्ता है, नालियां जाम हैं, सीवर बह रहे हैं, पानी की आपूर्ति तक ठीक नहीं है। बुजुर्गों और दिव्यांगजनों की पेंशन तक नहीं बन पाती। गंदगी का आलम ऐसा है कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ खुद को आम आदमी बताने वाले अरविंद केजरीवाल के शीशमहल में ऐशो-आराम की हर सुविधा मौजूद है।
दिल्ली की जनता टूटी सड़कों, कूड़े के पहाड़ों, सीवर के पानी और पीने के गंदे पानी के साथ जूझ रही है, और वे कहते हैं कि उन्हें काम नहीं करने दिया गया। पर अपने शीशमहल में कोविड महामारी के दौरान भी उन्होंने सारा काम करा लिया।’’वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं, ‘‘दिल्ली को कूड़े का ढेर और सड़कों को दलदल बना दिया गया है। चारों तरफ कूड़े के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ लोगों की सांसों में जहर घोल रहे हैं। सनातन आस्था से जुड़ी यमुना नदी भी गंदा नाला बन चुकी है। दिल्ली बेहाल है, बदहाल है। आआपा सत्ता शराब से पैसा बनाती रही है और दिल्ली कसमसाती रही है।
विरोध का अनोखा तरीका
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आआपा से राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने दिल्ली में सफाई के उचित इंतजाम नहीं किए जाने पर अपनी ही सरकार को घेरा। वह अपने समर्थकों के विकासपुरी इलाके में कूड़े के ढेर के सामने जा पहुंचीं। वहां से गाड़ियों में कूड़ा भरा और अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचकर उस घर के आगे कूड़ा फेंक दिया। इस दौरान स्वाति और उनके समर्थकों ने केजरीवाल के खिलाफ नारेबाजी भी की। पुलिस ने स्वाति मालीवाल को हिरासत में ले लिया, हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।
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