बजट का ऐतिहासिक सफर: ब्रिटिश काल से डिजिटल युग तक, भारत का आम बजट, इतिहास, प्रक्रिया और रोचक तथ्य
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बजट का ऐतिहासिक सफर: ब्रिटिश काल से डिजिटल युग तक, भारत का आम बजट, इतिहास, प्रक्रिया और रोचक तथ्य

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को संसद में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए देश का केंद्रीय बजट पेश करेंगी, यह लगातार आठवां अवसर होगा जब वह बजट पेश करेंगी।

by योगेश कुमार गोयल
Jan 30, 2025, 11:29 am IST
in भारत
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को संसद में वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए देश का केंद्रीय बजट पेश करेंगी। यह लगातार आठवां ऐसा अवसर होगा, जब वह बजट पेश करेंगी। उनसे पहले मोरारजी देसाई के नाम लगातार सर्वाधिक बजट पेश करने का रिकॉर्ड रहा था। संसद की दोनों सभाओं के समक्ष रखा जाने वाला ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ ही केन्द्र सरकार का बजट कहलाता है, जो देश के विकास को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारक होता है। आम बजट या यूनियन बजट कमाई और खर्च का लेखा-जोखा होता है, जिसमें सरकार आय और व्यय का ब्यौरा देती है और इसमें आगामी वित्त वर्ष के लिए कर प्रस्तावों का ब्यौरा पेश किया जाता है। आम बजट में सरकार की आर्थिक नीतियों की दिशा झलकती है। बजट का मुख्य उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से देश का सुधार करना और लोगों को बेहतर जीवन जीने में मदद करना ही होता है। बजट के जरिये सरकार आर्थिक नीतियों को लागू करती है और हर साल पेश किए जाने वाले बजट का मुख्य उद्देश्य दुर्लभ संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है। इस दस्तावेज में आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अनुमानित आय और व्यय पर विस्तृत टिप्पणियां दी जाती हैं। बजट में शामिल प्रस्ताव संसद की स्वीकृति मिल जाने के बाद अगले साल 31 मार्च तक लागू रहते हैं।

बजट बनाने की प्रक्रिया

भारत में बजट की प्रक्रिया वित्त मंत्रालय के नेतृत्व में होती है, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया जाता है। बजट की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। इस दौरान बजट का ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है और फिर मंत्रिमंडल के साथ अनुमोदन के बाद यह संसद में पेश किया जाता है। बजट के रूप में केंद्र सरकार आय और व्यय का विवरण प्रस्तुत करती है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए प्रस्तावित योजनाओं की जानकारी देती है। इस दस्तावेज में सरकार की नीतियों का स्पष्ट रूप से विवरण होता है, जिनके माध्यम से आर्थिक प्रगति और सामाजिक सुधार को बढ़ावा दिया जाता है। आगामी वित्त वर्ष के लिए जो केन्द्रीय बजट कुछ घंटों में पेश कर दिया जाता है, उसकी तैयारी काफी समय पहले ही शुरू हो जाती है। इन तैयारियों के दौरान वित्त मंत्रालय केन्द्र सरकार के अन्य मंत्रालयों और विभागों के अधिकारियों के साथ मीटिंग करता है, जिसके आधार पर ही तय किया जाता है कि किस मंत्रालय अथवा विभाग को वित्त वर्ष के लिए कितनी रकम दी जाए। इन मीटिंग्स में तय होने के बाद एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। बजट का प्रारूप तैयार हो जाने के बाद वित्त मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री एक बैठक में मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ मिलकर बजट का अवलोकन करते हैं और वित्त तथा राजस्व संबंधी नीतियों को निश्चित करते हैं। मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत होने के बाद केन्द्रीय बजट संसद में प्रस्तुत किया जाता है।

तीन प्रकार के होते हैं सरकारी बजट

भविष्य की योजनाओं और उद्देश्यों के आधार पर बजट एक निश्चित अवधि के लिए पूर्व निर्धारित राजस्व और व्यय का अनुमान होता है, जो भविष्य की वित्तीय स्थितियों को दर्शाता है और वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। यह एक ऐसा दस्तावेज है, जो प्रबंधन व्यवसाय के लिए अपने लक्ष्यों के आधार पर आगामी अवधि के लिए राजस्व और खर्चों का अनुमान लगाने के लिए बनाया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार, एक वर्ष का केंद्रीय बजट, जिसे वार्षिक वित्तीय विवरण भी कहा जाता है, उस विशेष वर्ष के लिए सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण होता है। केन्द्रीय बजट को राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में वर्गीकृत किया जा सकता है। बजट आमतौर पर तीन प्रकार का होता है, संतुलित बजट, अधिशेष बजट और घाटे का बजट। संतुलित बजट में आय और खर्च की मात्रा का समान होना जरूरी है जबकि अधिशेष बजट में सरकार की आय खर्चों से अधिक होती है और घाटे के बजट में सरकार के खर्च उसकी आय के स्रोतों से अधिक होते हैं। सरकारी बजट तीन प्रकार के होते हैं, परिचालन या चालू बजट, पूंजी या निवेश बजट और नकदी या नकदी प्रवाह बजट। सरकार की आय के प्रमुख साधनों में विभिन्न प्रकार के कर और राजस्व, सरकारी शुल्क, जुर्माना, लाभांश, दिए गए ऋण पर ब्याज आदि तरीके शामिल होते हैं। अधिकांश आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार का आम बजट महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह आर्थिक सुधारों के तहत नए कर प्रस्तावों और विकास योजनाओं का खाका प्रस्तुत करेगा। जैसे-जैसे देश अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्निर्मित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए एक अहम दस्तावेज साबित होगा।

भारत में बजट का इतिहास

भारत में बजट पेश करने की परंपरा करीब 165 वर्ष पहले शुरू हुई थी, जब 7 अप्रैल 1860 को ब्रिटिश सरकार के वित्तमंत्री जेम्स विल्सन ने पहली बार भारत का बजट प्रस्तुत किया था। स्वतंत्र भारत का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को आर.के. षणमुगम चेट्टि ने पेश किया था, जिसमें किसी भी नए कर की घोषणा नहीं की गई थी बल्कि केवल देश की आर्थिक स्थिति की समीक्षा की गई थी। पहला आम बजट 28 फरवरी 1950 को जान मथाई ने पेश किया था। उसके बाद कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जैसे 2017 में बजट पेश करने का दिन बदलकर 1 फरवरी कर दिया गया। 2017 से पहले अलग से रेल बजट पेश किया जाता था लेकिन इसे अब आम बजट में ही समाहित कर लिया गया है। ‘बजट’ शब्द एक पुराने फ्रांसीसी शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘पर्स’। ‘बजट’ शब्द फ्रांसीसी भाषा के लातिन शब्द ‘बुल्गा’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है चमड़े का थैला। बुल्गा से फ्रांसीसी शब्द ‘बोऊगेट’ की उत्पति हुई और उसके बाद अंग्रेजी शब्द ‘बोगेट’ अस्तित्व में आया। इसी शब्द से ‘बजट’ शब्द की उत्पत्ति हुई। कुछ वर्ष पूर्व तक बजट चमड़े के बैग में ही लेकर आया जाता था।

बजट का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में बजट पेश करने की परंपरा लगभग 165 वर्ष पुरानी है। पहली बार 7 अप्रैल 1860 को ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़े स्कॉटिश अर्थशास्त्री और ब्रिटिश सरकार में वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने भारत का बजट प्रस्तुत किया था। स्वतंत्र भारत का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को तत्कालीन वित्त मंत्री आर. के. षणमुगम चेट्टी ने पेश किया था, जिसमें कोई नया कर नहीं लगाया गया था और केवल अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी। भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद पहला बजट 28 फरवरी 1950 को वित्त मंत्री जान मथाई ने प्रस्तुत किया।

बजट पेश करने के तरीके और समय में बदलाव

1955 तक भारत का बजट केवल अंग्रेजी में प्रस्तुत किया जाता था। 1955 के बाद से इसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पेश किया जाने लगा। 1999 तक आम बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस पर शाम 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था। 1999 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस परंपरा को बदलकर सुबह 11 बजे बजट पेश करने की शुरुआत की। 2016 तक आम बजट फरवरी के अंतिम दिन पेश किया जाता था लेकिन 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट की तारीख बदलकर 1 फरवरी कर दी। 2017 से पहले रेल बजट और आम बजट अलग-अलग प्रस्तुत किए जाते थे लेकिन 2017 में रेल बजट को आम बजट में मिला दिया गया।

बजट का मुद्रण और गोपनीयता

1950 तक बजट का मुद्रण राष्ट्रपति भवन में होता था। गोपनीयता बनाए रखने के लिए बाद में इसे दिल्ली की मिंटो रोड स्थित प्रेस में छापा जाने लगा। 1980 के बाद से बजट का मुद्रण वित्त मंत्रालय के सरकारी प्रेस में ही किया जाता है। 2021 से भारत सरकार ने बजट को पूरी तरह से डिजिटल कर दिया। अब बजट की कॉपी छापने की जरूरत नहीं होती बल्कि इसे ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाता है। 1947 से लेकर अब तक देश में 76 आम बजट, 15 अंतरिम बजट व 4 विशेष या मिनी बजट पेश किए जा चुके हैं।

बजट से जुड़े रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य

बजट पेश करने से पहले वित्त मंत्री की एक परंपरा रही है कि वे ‘हलवा सेरेमनी’ करते हैं। हलवा बनाने की परंपरा बजट प्रक्रिया शुरू होने का प्रतीक मानी जाती है। 2019 में निर्मला सीतारमण पहली बार बजट दस्तावेज को ब्रीफकेस के बजाय लाल कपड़े में लेकर आई थी, जिसे ‘बही-खाता’ कहा गया। सबसे ज्यादा बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नाम है, जिन्होंने 1959 से 1969 के बीच 10 बार बजट पेश किया (8 पूर्ण बजट और 2 अंतरिम बजट)। पी. चिदंबरम ने 9 बार, जबकि प्रणव मुखर्जी ने 8 बार बजट पेश किया। यशवंत राव चव्हाण, सीडी देशमुख और यशवंत सिन्हा ने 7-7 बार बजट पेश किए। केवल 35 दिनों तक वित्त मंत्री रहे के.सी. नियोगी ही एकमात्र ऐसे वित्त मंत्री रहे, जिन्होंने कोई बजट पेश नहीं किया। हालांकि निर्मला सीतारमण लगातार 8 बार बजट पेश करने वाली पहली महिला वित्त मंत्री बनने वाली हैं। इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला वित्त मंत्री बनी थी। 1977 में हीरुभाई पटेल ने मात्र 800 शब्दों में बजट भाषण दिया था, जो अब तक का सबसे छोटा बजट भाषण है। 1991 में मनमोहन सिंह ने 18650 शब्दों का सबसे लंबा बजट भाषण दिया था। 2018 में अरुण जेटली ने 18604 शब्दों का बजट भाषण दिया था। वहीं, निर्मला सीतारमण ने 2020-21 का बजट पेश करते हुए 2 घंटे 42 मिनट तक सबसे लंबी अवधि का बजट भाषण दिया था। 1947 के पहले बजट में कोई टैक्स नहीं था, वह केवल आर्थिक समीक्षा के रूप में प्रस्तुत किया गया था। 1973-74 का बजट ‘ब्लैक बजट’ कहा जाता है क्योंकि उसमें भारी वित्तीय घाटा था। 1991 का बजट भारत की आर्थिक उदारीकरण नीतियों का आधार बना था।

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