भारत-इंडोनेशिया संबंधों की नई उड़ान
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भारत-इंडोनेशिया संबंधों की नई उड़ान

गणतंत्र दिवस 2025 पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुबियांतो की यात्रा ने भारत-इंडोनेशिया संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, ब्रह्मोस मिसाइल और व्यापारिक सहयोग से दोनों देशों के बीच साझेदारी मजबूत हो रही है।

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Jan 28, 2025, 10:02 pm IST
in विश्व, रक्षा, विश्लेषण
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26 जनवरी 1950 को आयोजित पहली गणतंत्र दिवस परेड में, इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति और इसके सबसे बड़े नेता श्री सुकर्णो मुख्य अतिथि थे। यह एक विशेष संयोग है की इंडोनेशिया के वर्तमान राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांतो इस साल 26 जनवरी को आयोजित 76वें गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि थे। इंडोनेशिया ने वर्ष 1949 में स्वतंत्रता प्राप्त की और इस प्रकार भारत की तुलना में एक युवा स्वतंत्र राष्ट्र है। अपने अस्तित्व में इंडोनेशिया ने कुल मिलाकर लोकतांत्रिक भावना को बनाए रखा है। भारत और इंडोनेशिया ने अस्थिर राजनयिक संबंधों को साझा किया है, जिसमें बेहद करीबी होने से लेकर शत्रुतापूर्ण होने और अब मैत्रीपूर्ण होने की ओर वापस होने की यात्रा शामिल है ।  इंडोनेशिया के राष्ट्रपति के साथ उनके राजनयिकों, सशस्त्र बलों के अधिकारियों और उद्योग जगत के नेताओं के एक बड़े दल ने शिरकत की। कई मायनों में इस यात्रा ने दो एशियाई दिग्गजों के बीच भविष्य के संबंधों के विकास को नया आकार दिया है।

दुर्भाग्य से इंडोनेशिया के बारे में हमारे देश में अधिक सार्वजनिक चर्चा नहीं होती है। इंडोनेशिया हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच दक्षिण पूर्व एशिया और ओशिनिया में स्थित एक प्रमुख देश है। यह क्षेत्रफल (1,904,569 वर्ग किमी) के मामले में दुनिया का 14 वां सबसे बड़ा देश है और इसमें 17,000 से अधिक द्वीप शामिल हैं। 28 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ, इंडोनेशिया दुनिया का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। इनमें से 24.4 करोड़, यानी लगभग 87% आबादी मुस्लिम है, जिससे इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम बहुल देश है। पाकिस्तान 24 करोड़ मुस्लिम आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है और भारत  20 करोड़ से अधिक की मुस्लिम आबादी के साथ तीसरे स्थान पर है। इंडोनेशिया पापुआ न्यू गिनी, पूर्वी तिमोर और मलेशिया के साथ भूमि सीमा साझा करता है। इंडोनेशिया सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस और भारत के साथ समुद्री सीमा साझा करता है। इस प्रकार यह हिंद महासागर क्षेत्र और भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है।

भारत और इंडोनेशिया 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से थे। यह राष्ट्रों का एक समूह था जो अमेरिका और सोवियत गठबंधन के बीच तटस्थ रहना चाहता था। हैरानी की बात है कि भारत और इंडोनेशिया के बीच संबंध 1962 के बाद से बिगड़ गए और 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, इंडोनेशिया ने भारत का समर्थन नहीं किया। इसके बाद इंडोनेशिया पाकिस्तान का करीबी हो गया और कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख की पैरवी करने लगा। बाद में, 1970 के दशक में राष्ट्रपति सुहार्तो के साशन के दौरान संबंधों में सुधार हुआ और उनके तहत, भारत और इंडोनेशिया ने वर्ष 1977 में समुद्री सीमा का अधिकारक निपटारा किया। लेकिन यह वर्ष 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ थी जिसने धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों में सुधार किया।

2014 के बाद से, प्रधान मंत्री मोदी ने संयुक्त परियोजनाओं, कनेक्टिविटी और व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने के साथ एक अधिक आक्रामक ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की स्थापना की। परिणामस्वरूप, इंडोनेशिया आज सिंगापुर के बाद आसियान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 30 अरब डॉलर के करीब है लेकिन कई विश्लेषकों का मानना है कि दोनों आबादी वाले देशों के बीच व्यापार में वृद्धि की काफी गुंजाइश है। रक्षा क्षेत्र में दोनों देश करीब आए हैं, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में आक्रामक चीन और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मुखर चीन के कारण। पिछले पांच वर्षों में दोनों देशों के बीच सैन्य आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है और इंडोनेशिया के नौसेना प्रमुख एडमिरल मुहम्मद अली हाल की यात्रा के दौरान उनका राष्ट्रपति सुबियांतो के साथ आना महत्वपूर्ण था ।

पूर्वी लद्दाख में वर्ष 2020 के चीन के साथ टकराव के बाद भारत को चीन पर किसी अन्य क्षेत्र में दबाव बनाना पड़ा । सिंगापुर, फिलीपींस की मदद से दक्षिण चीन सागर में और कुछ हद तक वियतनाम और इंडोनेशिया के माध्यम से भारत को चीन का मुकाबला करना लगभग अपरिहार्य हो गया था। आशा की जाती है कि भारतीय नेतृत्व ने दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ अपना दबदबा बनाने का सुविचारित निर्णय लिया है। यह अच्छी तरह जानते हुए कि चीन के पास 370 जहाजों और पनडुब्बियों से लैस दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है। इसकी तुलना में भारतीय नौसेना के पास 132 युद्धपोत हैं। भारतीय नौसेना एक प्रमुख ब्लू वाटर फोर्स बनने का लक्ष्य लेकर चल रही है और उसने 2 लाख करोड़ रुपये के 68 और युद्धपोतों के ऑर्डर दिए हैं। हाल ही में पीएम मोदी द्वारा तीन स्वदेशी नौसैनिक जहाजों को समर्पित करना एक अच्छा कदम है। लेकिन नौसैनिक शक्ति का अधिग्रहण हमेशा एक समय लेने वाली प्रक्रिया होती है।

मेरी राय में, चीन अपने पड़ोसियों के साथ समुद्री विवाद को अच्छी तरह से सुलझा सकता है और इस प्रकार दक्षिण चीन सागर इसके लिए बहुत बड़ी चुनौती नहीं है। चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त को अगली महाशक्ति के रूप में देख रहा है। इसलिए चीन ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच रणनीतिक सुरक्षा वार्ता क्वाड से बहुत नाराज है। भारत ने धीरे-धीरे और लगातार इंडो-पैसिफिक का लाभ उठाने के लिए प्रगति की है। इंडो-पैसिफिक एक भौगोलिक इकाई है जिसमें हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय जल, पश्चिमी और मध्य प्रशांत महासागर और दोनों को जोड़ने वाले समुद्र शामिल हैं। एकमात्र महाशक्ति के रूप में, अमेरिका लंबे समय तक भारत-प्रशांत क्षेत्र के मामलों पर हावी रहा है। इस क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य ठिकानों, विमान वाहक जहाजों की तैनाती और द्विपक्षीय/क्षेत्रीय सुरक्षा समूहों के साथ अमेरिका की भारी सैन्य उपस्थिति है।

अमेरिकी आधिपत्य को अब चीन द्वारा चुनौती दी गई है, जिसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर में अपनी जुझारूपन और भारत-प्रशांत क्षेत्र में उसकी बढ़ती उपस्थिति से हुई है। दक्षिण चीन सागर में फिलिपाईन्स जैसे देशों के साथ लगातार चीन का टकराव हो रहा है और उनके नौसेना के पोत कई बार औपचारिक हमले के करीब आए हैं। आर्थिक रूप से, चीन आसियान ब्लॉक पर हावी है और उनके माध्यम से इंडो-पैसिफिक पर हावी होना चाहता है। इस क्षेत्र में चीनी वर्चस्व का मुकाबला करने के लिए अमेरिका अब भारत का अधिक सक्रिय समर्थन कर रहा है। भारत और अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) के संचालन में महत्वपूर्ण प्रगति की है। IPMDA एक क्वाड पहल है जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। उम्मीद के मुताबिक चीन ने इस समझौते पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। राष्ट्रपति ट्रम्प के पद की शपथ लेने के मौके पर क्वाड के विदेश मंत्रियों की हालिया बैठक इस समूह के बढ़ते दबदबे का एक और संकेत है।

इंडोनेशिया के पास काफी बड़ी नौसेना है जिसमें 7 फ्रिगेट, 25 कोरवेट, 4 पनडुब्बियां, बड़ी संख्या में गश्ती नौकाएं और लंबी तटरेखा, द्वीपों और समुद्री हितों की रक्षा करने के लिए हवाई उपकरण शामिल हैं। 65,000 से अधिक कर्मियों की जनशक्ति के साथ, यह आसियान ब्लॉक में सबसे बड़ी नौसेना है। भारतीय नौसेना ने हाल के दिनों में इंडोनेशियाई नौसेना के साथ कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसेना अभ्यास किए हैं। इस संबंध में, सीडीएस और भारत के नौसेना अध्यक्ष (सीएनएस) के साथ इंडोनेशियाई नौसेना प्रमुख की बैठक अतिरिक्त महत्व रखती है। भारत और इंडोनेशिया दोनों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी पड़ सकती है। जाहिर है, चीन के साथ टकराव के लिए भी तैयार रहना होगा। मेरा यह भी सुझाव है की क्वाड को अब ट्रम्प 2.0 प्रशासन के दौरान एक स्थायी सचिवालय के साथ औपचारिक गठबंधन का आकार ग्रहण करना चाहिए।

राष्ट्रपति सुबियांतो की यात्रा के दौरान भारत और इंडोनेशिया के बीच समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा सहयोग पर समझौता ज्ञापन के नवीकरण और कई अन्य आर्थिक, स्वास्थ्य संबंधी और सांस्कृतिक समझौतों से भारत-इंडोनेशिया संबंधों को काफी बढ़ावा मिला है। इंडोनेशिया ने भी हमारी ब्रह्मोस मिसाइलों में रुचि दिखाई है, जो पहले से ही फिलीपींस के साथ सेवा में हैं।  दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ, इंडोनेशिया की आवाज और समर्थन कश्मीर और कूटनीति के अन्य पक्षों पर अपने रुख में महत्वपूर्ण है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि इंडोनेशिया आसियान ब्लॉक में उसका सबसे विश्वसनीय भागीदार बने। राष्ट्रपति सुबियांतो के हल्के-फुल्के बयान कि उनके पास ‘भारतीय डीएनए’ है और वह भारतीय संगीत के शौकीन हैं, का गहरा अर्थ है। पिछले वर्ष अक्टूबर  में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद श्री सुबियांतो और प्रधानमंत्री मोदी के पास अपने वर्तमान कार्यकाल में भारत-इंडोनेशिया संबंधों को गौरव की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए चार वर्ष से अधिक का समय है। जय भारत !

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