दिल्ली चुनाव 2025 : AAP से टूटा अनुसूचित जाति का भरोसा, वादाखिलाफी से बढ़ा असंतोष
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दिल्ली चुनाव 2025 : AAP से टूटा अनुसूचित जाति का भरोसा, वादाखिलाफी से बढ़ा असंतोष

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में अनुसूचित जाति समुदाय AAP से असंतुष्ट नजर आ रहा है। AAP की विफलताओं और BJP की योजनाबद्ध पहलों के बीच यह चुनाव दिल्ली के राजनीतिक और सामाजिक भविष्य का निर्धारण करेगा।

by डॉ. रौनक कुमार पाठक
Jan 28, 2025, 06:34 pm IST
in भारत, दिल्ली
अरविन्द केजरीवाल

अरविन्द केजरीवाल

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में अनुसूचित जाति (SC) समुदाय निर्णायक भूमिका निभा सकता है। कभी आम आदमी पार्टी (AAP) का मुख्य समर्थन आधार माने जाने वाला यह समुदाय अब पार्टी से असंतुष्ट नजर आ रहा है। हाल ही में जननवाज प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेवानिवृत्त जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने इस असंतोष को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि AAP ने अनुसूचित जाति समुदायों के हितों की उपेक्षा की है, जिससे उनकी नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं।

अनुसूचित जाति समुदायों में बढ़ता असंतोष

AAP सरकार पर समुदाय के वादों को पूरा न करने और समस्याओं की अनदेखी का आरोप है। रविदासिया और जाटव जैसी प्रमुख जातियां, जिन्होंने पहले पार्टी का समर्थन किया था, अब नाराजगी व्यक्त कर रही हैं। समुदाय के कई नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा देकर अपना असंतोष जाहिर किया।

स्वच्छता कर्मचारी, जो अनुसूचित जाति समुदाय का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, स्थायी रोजगार और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की मांग कर रहे हैं। हालांकि, AAP सरकार उनके वादों को पूरा करने में असफल रही। ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले स्वच्छता कर्मचारियों के परिवारों के लिए 1 करोड़ रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा भी केवल कागजों तक सीमित रही। इसके अतिरिक्त, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नौकरियां आउटसोर्सिंग के कारण छीनी जा रही हैं, जिससे सुरक्षित आजीविका की संभावनाएं सीमित हो रही हैं​।

“आम आदमी पार्टी ने बार-बार संविधान और अंबेडकर का अपमान किया है। केजरीवाल सरकार में जो दो अनुसूचित मंत्री बने थे, उन्होंने पार्टी छोड़ दी क्योंकि वहां अनुसूचितों का सम्मान नहीं होता। उप मुख्यमंत्री पद के लिए अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर मनीष सिसोदिया का नाम आगे किया, न कि किसी अनुसूचित समाज के चेहरे का।

इसके अलावा, केजरीवाल जेएनयू में ऐसे लोगों के साथ खड़े दिखते हैं जो अनुसूचित समाज का आरक्षण खत्म करने की बात करते रहे हैं। अगर अरविंद केजरीवाल फिर सत्ता में आते हैं, तो अनुसूचित समाज आरक्षण खत्म करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।”
– अनुराग ठाकुर, सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री

अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों की उपेक्षा

दिल्ली के कई अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव स्पष्ट है। दक्षिण दिल्ली के देवली स्थित नई बस्ती में स्थानीय AAP विधायक की आलोचना हुई है क्योंकि क्षेत्र में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ।

बिजवासन के शाहाबाद-मोहम्मदपुर क्षेत्र में पानी की भारी कमी और रेलवे ओवरब्रिज की अनुपस्थिति से लोग जूझ रहे हैं। ये समस्याएं अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में AAP सरकार की उदासीनता को उजागर करती हैं।

शिक्षा और कल्याण योजनाओं में वादाखिलाफी

पंजाब में अनुसूचित जाति छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना को लागू करने में AAP सरकार की विफलता का उदाहरण मिलता है। इस योजना के लिए समय पर धनराशि जारी न करने के कारण छात्रों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दिल्ली में भी, अनुसूचित जाति छात्रों के लिए शिक्षा और रोजगार योजनाओं का प्रभाव सीमित रहा है।

BJP का सक्रिय दृष्टिकोण

दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अनुसूचित जाति समुदायों के साथ जुड़ने और उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कई पहल की हैं। पार्टी ने अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में विशेष आउटरीच प्रोग्राम शुरू किए हैं।

BJP ने बी.आर. अंबेडकर स्टाइपेंड योजना के तहत औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs), कौशल केंद्रों और पॉलिटेक्निक कॉलेजों में दाखिल अनुसूचित जाति छात्रों को 1,000 रुपये प्रति माह वजीफा देने की घोषणा की है। इसके अलावा, सरकारी संस्थानों में किंडरगार्टन से पोस्ट-ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा का वादा किया है।

गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 4,400 स्वच्छता कर्मचारियों को नियमित करना BJP की इस समुदाय के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। पार्टी ने सामान्य सीटों पर अनुसूचित जाति उम्मीदवार खड़े करने का साहसिक निर्णय लिया है, जो प्रतिनिधित्व के व्यापक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

फ्रीबीज बनाम योजनाबद्ध राजनीति

AAP की राजनीति मुख्य रूप से मुफ्त सुविधाओं जैसे महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, सब्सिडी बिजली और मुफ्त पानी पर केंद्रित रही है। हालांकि, इनसे संरचनात्मक समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। दूसरी ओर, BJP योजनाबद्ध राजनीति के जरिए लंबे समय तक चलने वाले समाधान प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

दिल्ली सरकार की अनुसूचित जाति समुदाय और कल्याण योजनाओं की समीक्षा 

दिल्ली सरकार की यह योजनाएं अक्सर अपने लक्ष्य समूह तक प्रभावी तरीके से नहीं पहुंच पातीं, जिससे कार्यान्वयन की कमी स्पष्ट होती है। भ्रष्टाचार की वजह से धनराशि जारी करने में देरी और प्रशासनिक लापरवाही योजनाओं की सफलता को प्रभावित करती है। प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली सहायता अक्सर पर्याप्त नहीं होती। साथ ही कुछ योजनाओं का लाभ केवल एक विशेष समूह तक सीमित होने के कारण समग्र सामाजिक समानता में कमी आती है।

दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार : योजनाओं की तुलना

केंद्र सरकार की योजनाएं राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक कवरेज और स्थायित्व प्रदान करती हैं, जबकि दिल्ली सरकार की योजनाएं स्थानीय और अल्पकालिक होती हैं। केंद्र सरकार का बजट अधिक व्यापक और दीर्घकालिक होता है। केंद्र सरकार की योजनाएं अधिक लोगों तक पहुंचती हैं। केंद्र की योजनाएं दीर्घकालिक और संरचित कार्यान्वयन पर आधारित हैं, जबकि दिल्ली सरकार की योजनाएं घोषणाओं तक सीमित रहती हैं।

आगे का रास्ता

आगामी चुनाव अनुसूचित जाति समुदायों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर हैं। AAP की विफलताओं के विपरीत BJP की पहलें समुदाय के लिए बदलाव का मौका प्रस्तुत कर रही हैं। चुनाव न केवल दिल्ली का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे, बल्कि यह भी साबित करेंगे कि कौन सी पार्टी हाशिए पर मौजूद समुदायों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभा सकती है।

देश और दिल्ली में अनुसूचित जाति समुदाय का कल्याण और प्रतिनिधित्व केवल वादों तक सीमित नहीं रह सकता। वास्तविक बदलाव के लिए दीर्घकालिक और व्यावहारिक योजनाओं की आवश्यकता है। यह चुनाव एक महत्वपूर्ण संदेश देगा कि अनुसूचित जाति समुदाय तुष्टीकरण के बजाय प्रगति को प्राथमिकता देगा।

लेखक श्री अरबिंदो कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर है।

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