आईआईटी मुंबई में एक आयोजन को लेकर विवाद हो गया है और इस कारण विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा प्रणाली पर भी आलोचकों ने सवाल खड़े किये हैं। आईआईटी मुंबई में परिसर में संस्थान के संस्कृत प्रकोष्ठ द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन कराया गया था और इसमें संस्कृति आर्य गुरुकुलम से आयुर्वेद विशेषज्ञ इस चर्चा में आए थे। इस पर आलोचकों ने आयोजन पर प्रश्न खड़े किये।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य था कि शिशुओं के भीतरी और बाहरी गुणों को प्रभावित करने को लेकर बातें हों, और इस आयोजन के विषयों में शिशु पर पूर्वजों का प्रभाव, गर्भावस्था के दौरान मातृ एवं भ्रूण का स्वास्थ्य, गर्भधारण के लिए मानसिक एवं शारीरिक तैयारी, तथा स्वस्थ गर्भावस्था के लिए अभ्यास जिन्हें ‘गर्भसंस्कार’ के रूप में जाना जाता है, सम्मिलित थे।
गर्भावस्था के दौरान माता की मानसिक अवस्था का प्रभाव ही शिशु के जीवन का निर्धारक तत्व होता है और तमाम कथित आधुनिक शोधों ने भी इसे सिद्ध किया है। भारत में गर्भावस्था को अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था माना जाता है और प्राचीन धर्मशास्त्र इस अवस्था में बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर भरे पड़े हैं। आयुर्वेद के महान ग्रंथ चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता में तो गर्भिनी व्याकरण में गर्भ विज्ञान को विस्तार से बताया गया है।
Journal of Ayurveda and Integrated Medical Sciences के फरवरी 2024 के अंक में Clinical understanding of Garbhini Paricharya : Routine care for pregnant women through Ayurveda नामक शोधपत्र में दो विद्वानों ने चरक संहिता में गर्भावस्था को लेकर दी गई सावधानियाँ एवं ज्ञान को बताया है।
गर्भिणी परिचय में मासानुमासिकापथ्य अर्थात मासिक आधार पर गर्भिणी को क्या भोजन करना है वह बताया गया है। जब शिशु गर्भ में हैं तो गर्भिणी के मन में क्या भाव होने चाहिए उन्हें Garbhopaghathakara (गर्भोपघटकर) में बताया गया है तो वहीं गर्भ के बने रहने के लिए कौन से पदार्थ लाभकारी हैं, उन्हें Garbhasthapakadravya (गर्भस्थपकद्रव्य) में बताया गया है। इनमें बताया गया है कि कैसे प्रथम त्रैमासिक में गर्भिणी को क्या भोजन करना चाहिए, जिससे कि वह आरंभिक अवस्था की उलटी, मतली जैसी स्थितियों से भी पार पाए और उसकी देह में पल रहे शिशु को भी पोषण प्राप्त हो।
आईआईटी मुंबई में आयोजित किये गए आयोजन को लेकर कुछ आलोचकों ने आयुर्वेद को स्यूडो साइंस अर्थात छद्म विज्ञान कहा। यह मानसिक गुलामी से बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता है। जिस आयुर्वेद के माध्यम से विश्व के कोने-कोने में चिकित्सा हो रही है, और जिस चिकित्सा पद्धति को विश्व के हर कोने के लोग अपना ही नहीं रहे हैं, बल्कि लगातार शोध कर रहे हैं, उस पद्धति को उसीके अपने देश अर्थात भारत में औपनिवेशिक गुलामी से ग्रस्त लोग छद्म विज्ञान बताते हैं।
फ्लोरिडा की आयुर्वेद डॉक्टर Dr. Scott Gerson ने 2019 में एक शोधपरक लेख Pregnancy and Motherhood in Ayurveda by Dr. Scott Gerson लिखा था। इसमें उन्होनें लिखा था कि गर्भावस्था की सामान्य बातों को लेकर चरक और सुश्रुत दोनों ही संहिताओं में “गर्भिणी व्याकरण” विषय के अंतर्गत प्राप्त होता है। उन्होनें लिखा था कि “आहार, क्रियाकलाप, व्यवहार और मानसिक गतिविधि (क्रमशः आहार, विहार, आचार और विचार) के बारे में भी विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं। गर्भावस्था के प्रबंधन के दौरान चिकित्सक को बहुत सतर्क रहने की चेतावनी दी गई है। ‘अगर तेल से भरे प्याले को ऊपर तक ले जाना है और उसमें से एक भी बूंद नहीं गिरनी है, तो हर कदम सावधानी से उठाना होगा।’ (चरक संहिता 8/22) आयुर्वेद गर्भवती महिला के प्रबंधन में भी उतनी ही सावधानी और ध्यान देने की सलाह देता है। इसका लक्ष्य बढ़ते हुए भ्रूण और माँ दोनों की सुरक्षा और पोषण है।“
इसके अतिरिक्त वे यह भी लिखती हैं कि सूतिकाघर की विशेषताएं क्या होनी चाहिए। वे अपने इस शोधपत्र में लिखती हैं कि सूतिकाघर अर्थात प्रसव क्षेत्र के विषय में आयुर्वेद में क्या बताया गया है। उन्होनें सूतिकाघर के विषय में लिखा है कि “बिस्तर, टैम्पोन, सुई और उपकरण, आवश्यक औषधियाँ और फर्नीचर जैसी सामग्री भी निर्दिष्ट की जाती है। घर को कीड़ों से मुक्त करने के लिए धूम्रशोधन किया जाना चाहिए। रक्षोघ्न औषधियों (कीटों और अदृश्य बुराइयों को मारने या दूर भगाने के लिए) से युक्त छिद्रयुक्त थैलियों को चारों ओर – प्रवेश द्वार पर और कमरे के कोनों में लटकाया जाना चाहिए। इन औषधियों में कैलमस, हींग, लहसुन, गुग्गुल, कथक और सरशपा सम्मिलित हैं।“
इसी के साथ Journal of Ayurveda and Integrated Medical Sciences के फरवरी 2024 के अंक में Clinical understanding of Garbhini Paricharya : Routine care for pregnant women through Ayurveda में भी तमाम उन उपायों के विषय में बताया गया है, जो एक महिला की स्वस्थ गर्भावस्था के लिए अनिवार्य होते हैं, जैसे कि योग।
भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में तमाम आयुर्वेदाचार्यों के शोध मात्र इंटरनेट पर ही नहीं बल्कि पुस्तक रूप में उपलब्ध हैं, परंतु फिर भी भारत की ऐसी प्राचीन उपचार पद्धति को स्यूडो साइंस कहने वालों की मानसिकता पर तरस ही खाया जा सकता है। परंतु यह तरस तब दुर्भाग्य के रूप में परिवर्तित हो जाता है जब कथित सबसे बड़े संस्थानों से भारत की प्राचीन उपचार पद्धति के विषय में यह बात सामने आए कि आयुर्वेद एक छद्म विज्ञान है। आयुर्वेद एक छद्म विज्ञान नहीं है, ऐसा कहने वाले अवश्य छद्म शिक्षित हो सकते हैं।
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