महाकुंभ 2025 : नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया, कहां रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या है परंपरा, क्यों नहीं लगती ठंड
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महाकुंभ 2025 : नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया, कहां रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या है परंपरा, क्यों नहीं लगती ठंड

नागा साधुओं को रहस्य की दृष्टि से भी देखा जाता है। किस पल ये खुश हो जाएं और किस पल नाराज, कुछ नहीं कहा जा सकता। नागा साधुओं की दुनिया रहस्यमयी मानी जाती है

by WEB DESK
Jan 10, 2025, 10:41 am IST
in भारत
नागा साधु

नागा साधु

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महाकुंभ नगर, (हि.स.)। सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ रहस्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि अचरज भरी होती है। इनके साथ एक और धारणा जुड़ी है कि यह किस पल खुश हो जाए या नाराज इसका अंदाजा लगा पाना कठिन होता है। यही कारण है कि मेले में प्रशासन का इन पर खास ध्यान होता है।

नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है। पहाड़ पर रहने वाले लोग पहाड़ी या नागा संन्यासी कहलाते हैं। इसका एक तात्पर्य एक युवा बहादुर सैनिक भी है। नागा का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु भी हैं। वे विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं, जिनकी परंपरा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गई थी।

आम जन को ये नागा साधु दर्शन नहीं देते। इनका पूरा संसार अपने अखाड़े तक ही सीमित रहता है। लेकिन देश में जब-जब कुंभ या महाकुम्भ का आयोजन होता है तब-तब नागा साधुओं का आखड़ा इसमें शिरकत करता है। नागा साधुओं की दुनिया रहस्मयी मानी जाती है।

कितने साल में बनते हैं नागा साधु

वैसे तो नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं, लेकिन 6 साल को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इसी अवधि में साधु सारी जानकारियां हासिल करते हैं और सिर्फ लंगोट धारण करते हैं।

क्या है अखाड़े की परंपरा

नागा साधुओं का विभिन्न अखाड़ों में ठिकाना होता है। नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है। इसमें सफल होने के बाद उन्हें महापुरुष दीक्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है।

पिंडदान की प्रक्रिया कैसे करते हैं

नागा साधु अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है। यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं।

कहां रहते हैं नागा साधु

नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या मकान भी नहीं होता। ये कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सोने के लिए भी ये किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं।

नागा क्या खाते हैं

नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं। यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। ये पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं।

नागा क्यों रहते हैं निर्वस्त्र

नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं। इसलिए वो वस्त्र धारण नहीं करते हैं। इसके अलावा नागा साधुओं का मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है और इसी वजह से नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। नागा साधु अपने शरीर पर भस्म और जटा जूट भी धारण करते हैं।

क्या नागा साधुओं को नहीं लगती ठंड़

नागा साधुओं के ठंड न लगने के पीछे एक बहुत बड़ी वजह है और वह है योग। दरअसल, नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं, जो ठंड से निपटने में उनके लिए मददगार साबित होते हैं। इसी तरह अपने खान-पान पर भी काफी संयम रखते है। इनका मानना है कि इंसान का शरीर जिस माहौल में ढालेंगे उसी अनुसार ढल जाएगा।

नागा साधुओं का मंत्र

नागा साधुओं का मंत्र ॐ नमो नारायण होता है। नागा साधु भगवान शिव की आराधना करते हैं।

नागा की उपाधियां

प्रयागराज कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में उपाधि पाने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है।

नागाओं के पद

नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत, कोतवाल, पुजारी और सचिव उनके पद होते हैं। नागा का काम गुरु की सेवा करना, आश्रम का कार्य करना, प्रार्थना, तपस्या और योग करना होता है।

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