वेदों का महत्व सर्वविदित है। इनके महत्व से पाश्चात्य और आधुनिक विद्वान भी परिचित हैं। कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) से प्रभावित संसार, विशेष कर भारत को वेद अध्ययन से कुछ लाभ है या नहीं, इस पर नई दिल्ली में गत 15-16 दिसंबर को दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वैदिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अशोक सिंघल वैदिक शोध संस्थान एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस संगोष्ठी का विषय था-कृत्रिम मेधा (एआई) से प्रभावित जीवन के हेतु वेद की शिक्षा। इसमें देश-विदेश के शिक्षाविद, विश्वविद्यालयों के कुलपति, विज्ञान व प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशक, वेद-विज्ञान के आधुनिक ऋषि, संस्कृत के आचार्य तथा वेद की शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहे विद्वान एवं विज्ञान, गणित, कला, प्रबंध, मानवीकि व वाणिज्य के विशेषज्ञ शामिल हुए। संगोष्ठी का उद्देश्य वेदों के ज्ञान को आधुनिक तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र से जोड़ना था, ताकि मानवता के कल्याण के लिए एक सशक्त मार्गदर्शन मिल सके। 12 सत्रों में वेदों के सामाजिक-आध्यात्मिक महत्व, प्रशासनिक-सामाजिक संरचना, प्रशासनिक व्यवस्थाओं, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब व्यवस्थाओं के लिए वेदों की शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई।
वेद और विज्ञान
‘वर्तमान संदर्भ में वेदों का परिचय’ विषय वाले पहले सत्र की अध्यक्षता डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष सतीश रेड्डी ने की। इसमें विहिप के संरक्षक दिनेश चंद्र, वैदिक मिशन ट्रस्ट के प्रमुख स्वामी धर्म बंधु, प्रो. बृज किशोर कुठियाला तथा मुख्य अतिथि के तौर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी उपस्थित थे। अशोक सिंघल वैदिक शोध संस्थान के निदेशक प्रो. सुदर्शन ने कहा कि इस संस्थान की स्थापना का उद्देश्य है भारत को विश्व गुरु बनाना। संस्थान वेदों में वैज्ञानिक तत्वों की खोज कर नियमित रूप से प्रकाशित कर रहा है। उन्होंने वैदिक ज्ञान परंपरा को वर्तमान वैज्ञानिक और सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो. कुठियाला ने कहा कि संगोष्ठी का मुख्य लक्ष्य वेदों की शिक्षा के माध्यम से समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। भारतीय ज्ञान परंपरा और वैदिक विज्ञान वर्तमान समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वेद मानव सभ्यता की प्राचीनतम संरचना है, जबकि एआई आधुनिक घटना। सीखने और सिखाने की इच्छा ने मनुष्य को एआई के विकास तक पहुंचाया है। संगोष्ठी में तीन प्रकार के विद्वानों का समागम हुआ है। पहले समूह में वेद विज्ञान के आधुनिक ऋषि हैं, जो वेदों का आधुनिक संदर्भ में प्रयोग कर रहे हैं। दूसरा समूह संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन तथा वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहे विद्वानों का है। तीसरा समूह विज्ञान, कला, मानवीकि व वाणिज्य के विशेषज्ञों का है, जिनमें वेदों को समझने की उत्कंठा है।
स्वामी धर्म बंधु ने वेद के विभाजन के वैज्ञानिक आधारों का विश्लेषण करते कहा कि वेद के बिना एआई का संपूर्ण विकास संभव नहीं है। वेद न केवल आध्यात्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रासंगिक हैं। वहीं, प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने वेदों के विज्ञान से युवा पीढ़ी को जोड़ने और वेदों को जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया। दिनेश चंद्र ने कहा कि वेद सर्वकालिक, सार्वभौमिक और सर्वव्याप्त हैं। इनके अनुशीलन से व्यक्ति में पुरुषार्थ की भावना जाग्रत होती है।
डॉ. सतीश रेड्डी ने ‘प्रीचिंग्स आफ वेदाज फॉर एआई असिस्टेड लिविंग’ अर्थात् कृत्रिम मेधा से प्रभावित जीवन को वेदों का मार्गदर्शन विषय पर विचार प्रस्तुत करते हुए कृत्रिम मेधा के लिए वेदों के व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत किए। वेदांत तत्व मीमांसा पर आधारित कृत्रिम मेधा के निर्माण की विस्तृत योजना पर भी उन्होंने विचार रखे। पहले सत्र के समापन पर वक्ताओं ने संगोष्ठी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मिलकर कार्य करने का आह्वान किया और प्राचीन व आधुनिक विज्ञान के बीच एक सेतु बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
ज्ञान परंपरा और जीवन पद्धति
दूसरे सत्र ‘वर्तमान संदर्भ में ऋग्वेद का परिचय’ में बेंगलुरु के पूर्व आचार्य डॉ. रंगनाथन ने ऋग्वेद के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए इसे विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ बताया। संप्रदाय-परंपरा के माध्यम से वेदों के संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि ऋग्वेद न केवल दर्शनशास्त्र और ब्रह्मांड उत्पति के सिद्धांतों का आधार है, बल्कि इसमें उत्कृष्ट कविताओं का भी समावेश है।
नीलकंठ घनपाठी ने वैदिक उपाय की श्रेष्ठता पर बल दिया और कहा कि धर्म वह है जो जीवन को श्रेष्ठ बनाए। उन्होंने ऋग्वेद की संरचना व संरक्षण के लिए प्रयुक्त प्रक्रियाओं जैसे जटा, माला, शिखा, रेखा, ध्वज, दंड, रथ और घन पाठ की विस्तृत व्याख्या की। वेदों के अध्ययन के तीन चरण भी उन्होंने बताए, जबकि पुणे के थायसर गुरुकल के संचालक पंडित विनायक मोरेश्वर ने वेदों की दसग्रंथ परंपरा और उनके संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में यह परंपरा सुरक्षित है। वेदों की शाखा, संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् के संरक्षण के प्रयासों पर जोर देते हुए आरण्यक की निवृत्ति मार्ग शिक्षा पर प्रकाश डाला। वेद मंत्रों को गौ माता के समान बताते हुए कहा कि आचरण को विचार से पहले रखा जाना चाहिए।
‘वर्तमान संदर्भ में यजुर्वेद का परिचय’ सत्र की शुरुआत वेद और यज्ञ की परंपराओं से जुड़े वैदिक ज्ञान के महत्व पर चर्चा से हुई। दिल्ली स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के प्रो. सुंदर नारायण झा ने कहा कि यजुर्वेद वैदिक ज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति है। यजुर्वेद ‘यजु’ और ‘वेद’ शब्दों से बना है, जिसका अर्थ है यज्ञ करने का ज्ञान। वहीं, आईजीएनसीए के आचार्य डॉ. सुधीर लाल ने केंद्र द्वारा वैदिक क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। केंद्र ने वैदिक पांडुलिपियों के संरक्षण और प्रशासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आईजीएनसीए ने ऋग्वेद संहिता, शतपथ ब्राह्मण, पुष्प सूत्र, बौधायन श्रौतसूत्र और वैदिक मैप आफ इंडिया जैसे ग्रंथों का प्रकाशन किया है। साथ ही, भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए कई सेमिनार, सम्मेलन व कार्यशालाएं भी आयोजित की हैं।
नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय काठमांडू के वेद विभाग के प्रो. आमोद वर्धन ने भारत और नेपाल के बीच वैदिक ज्ञान-विज्ञान संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि वेदों और वेदांगों का ज्ञान भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि जीवन के हर पहलू के लिए मार्गदर्शक हैं। ये जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं और जीवन को संपूर्णता प्रदान करते हैं।
चौथे सत्र में डॉ. ऋषि पाल पाठक ने सामवेद के तीन प्रमुख आयामों संगीत, उपासना और कर्म पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सामवेद व्यक्ति को आध्यात्मिकता और व्यावहारिकता का संतुलन प्रदान करता है। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (वाराणसी) के डॉ. विजय कुमार शर्मा ने सामवेद को वैदिक सभ्यता को सामाजिक जीवन का आदर्श बताते हुए स्पष्ट किया कि सामवेद न केवल उपासना कांड का महत्वपूर्ण अंग है, बल्कि यह वैदिक समाज के मूल्यों और आदर्शों का भी परिचायक है। उनके अनुसार सामवेद में समाज के लिए प्रेरणा देने की अनंत शक्ति है। यह जीवन को संपूर्णता प्रदान करता है। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने वेदों को अलौकिक ज्ञान का भंडार बताते हुए कहा कि एआई क्षेत्र में वेदों की शिक्षाओं को सम्मिलित करना मानव सभ्यता के लिए लाभकारी हो सकता है।
पांचवें सत्र में कर्नाटक के अथर्ववेद विद्वान पं. रमेश वर्धन ने कहा कि ‘कृत्रिम मेधा’ की तुलना में ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ शब्द अधिक उपयुक्त और अर्थपूर्ण है। अथर्ववेद के सामनस्य सूक्त का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि यह सूक्त सामाजिक एकता और सौभाग्य का संदेश देता है। इसमें विशेष रूप से भाई-भाई के बीच द्वेष को समाप्त करने और समरसता स्थापित करने का आह्वान किया गया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किशोर मिश्रा ने अथर्ववेद के गूढ़ तत्वों, वेद त्रयी और चार वेदों की अवधारणाओं पर विस्तार चर्चा की। उन्होंने कहा कि अथर्ववेद ब्रह्म विषयक सूक्त का सबसे समृद्ध स्रोत है। इसे ब्रह्म वेद भी कहा जाता है। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश कुमार पांडे ने कहा कि सृष्टि के आरंभ में स्वयंभू द्वारा वेद वाणी का उद्भव हुआ। वेद को संसार का मूल और सुरक्षा का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है, जिसे केवल शास्त्रों के मार्गदर्शन से ही प्राप्त किया जा सकता है।
सामाजिक संरचना एवं पर्यावरण
दूसरे दिन सत्र की शुरुआत ‘वेदों में सामाजिक संरचना और प्रशासनिक व्यवस्थाएं’ पर चर्चा से हुई। इसमें केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रो. हरे कृष्णा शतपथी ने कहा कि वैदिक समाज समृद्ध और शांतिप्रिय था। वेद ज्ञान को आप्त वचन बताते हुए उन्होंने इसे सर्वकालिक और सार्वभौमिक सत्य करार दिया और कहा कि वेदों का चिंतन सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसके ज्ञान के बिना समाज में स्थाई समृद्धि प्राप्त करना संभव नही है। ये सभी तत्व सामाजिक और नैतिक उन्नति के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। उनके अनुसार यदि समाज इन सिद्धांतों को अपनाए तो वैश्विक समस्याओं का समाधान संभव है।
विश्वेश्वरानंद वैदिक शोध संस्थान (होशियारपुर) के पूर्व निदेशक प्रो. जगदीश प्रसाद सेमवाल ने कहा कि वैदिक ज्ञान समझ में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम हो सकता है। समाज में व्याप्त विद्वेशों को दूर करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए। यूजीसी के संयुक्त सचिव डॉ. गंभीर सिंह चौहान ने वर्तमान शिक्षा और समाज में नैतिक मूल्यों की गिरावट पर चिंता जताते हुए समाज और शिक्षा में वैदिक दृष्टिकोण को पुन: स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
‘पर्यावरण संरक्षण हेतु वेदों की शिक्षा’ सत्र में शिमला स्थित भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान की अध्यक्ष प्रो. शशि प्रभा कुमार ने कहा कि आधुनिक जीवनशैली में मानव का स्वाभाविक और पर्यावरण के साथ जुड़ाव टूटता जा रहा है। एआई के बढ़ते प्रभाव ने एक ओर जीवन को सरल बनाया है, तो दूसरी ओर मनुष्य के व्यवहार में कृत्रिमता को बढ़ावा दिया है। यह प्रवृत्ति सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दे रही है। वेदों की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि ये मनुष्य, प्रकृति और ब्रह्मांड के बीच संतुलन स्थापित करने का आधार प्रदान करते हैं। आधुनिक समस्याओं का समाधान वैदिक दृष्टिकोण में निहित है। समय की आवश्यकता है कि हम वेदों की शिक्षाओं को अपनाएं।
प्रयागराज केंद्रीय संस्कृत विद्यालय के गंगानाथ झा परिसर के प्रोेफेसर मनोज कुमार मिश्रा ने वैदिक दृष्किोण और पर्यावरण संरक्षण के बीच गहन संबंध पर जोर देते हुए कहा कि वेदों में पर्यावरण के समग्र चिंतन का वर्णन मिलता है। पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) की शांति व संतुलन की कामना वेदों की मूल अवधारणा है। प्रो. अशोक खन्ना ने अपने लिखित संदेश में कहा कि आधुनिक जीवनशैली में संवादहीनता लोक समाज को विखंडित कर रहा है। यह संवादहीनता केवल मानव-मानव के बीच नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच भी देखने को मिल रही है। वक्ताओं का सुझाव था कि वैदिक मूल्यों को आधुनिक तकनीक विशेष कर, एआई के माध्यम से एकीकृत करना आवश्यक है ताकि मानव सभ्यता और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित हो सके।
वेदों में जीवन का सार
आठवें सत्र का विषय था-वेदों में कुटुंब एवं परिवार व्यवस्थाएं। इसमें केरल के वालड़ी स्थित शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. गीता कुमारी, पुणे विश्वविद्यालय की प्रो. मुग्धा गाडगिल, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर उपस्थित थे। प्रो. गाडगिल ने वैदिक संस्कृति में पारिवारिक स्थिरता और उसकी संरचना पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वेदों में परिवार की संरचना को अत्यधिक महत्व दिया गया है। ऋग्वेद में उल्लिखित विवाह सूक्त में पति-पत्नी के संबंधों की उत्कृष्ट व्याख्या की गई है। यह परिवार की स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।वहीं, प्रो. गीता कुमारी ने वेदों की व्यापकता और उनकी गहराई को रेखांकित करते हुए कहा कि वेदांगों को पुरुष के अंगों के रूप में परिकल्पित किया गया है, जो वैदिक दर्शन की उत्कृष्टता को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि गायत्री मंत्र को वेद माता के रूप में मान्यता दी गई है। यह समस्त वैदिक परंपराओं का आधार है। इस सत्र के दौरान यह भी स्पष्ट हुआ कि वैदिक परंपराओं और शिक्षा को आधुनिक युग में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए तकनीकी साधनों, विशेष रूप से एआई का उपयोग उपयोग किया जाना चाहिए। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करेगा, बल्कि नई पीढ़ी को इस ज्ञान से जोड़ने में भी सहायक होगा। ‘कृत्रिम मेधा से प्रभावित जीवन के लिए वेदों की शिक्षा’ सत्र में प्रो. सुदर्शन ने एआई और वैदिक ज्ञान के विशेष संदर्भ पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री सुरेश सोनी ने कहा कि आज के आधुनिक जीवन में परंपराओं की जगह वैज्ञानिक संस्कृति ले रही है। अध्यापक के हाथ में भी गैजेट्स दे दिए गए हैं। इसलिए हमें इन उपकरणों के उपयोग की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। उन्होंने कृत्रिम मेधा से प्रभावित जीवन के लिए वेदों के मंत्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि आने वाले समय में कुछ भी गुप्त नहीं रहेगा, इसलिए हमें अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। हमारा मन, बुद्धि, चित्त मजबूत हो, ऐसा प्रयास करना ही पड़ेगा। पिता-पुत्र, माता-पुत्री, भाई-बहन, कुटुंबों और आसपास के लोगों के साथ हमारा संबंध कैसा हो, यह वेदों से सीखना चाहिए।
समाज और शिक्षा के प्रति वैदिक दृष्टिकोण को पुन: स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने नैतिक मूल्यों के गिरने को महामारी जैसे संकटों का मूल कारण बताया। यह भी कहा कि यदि समाज वैदिक ज्ञान और मूल्यों की ओर लौटे, तो इन समस्याओं का समाधान हो सकता है। विश्व कल्याण का भाव लेकर चलने वाला ज्ञान और विकास का मूल बीज वेद है। हमारे यहां एकता में अनेकता है, इसलिए हमें मानव, ग्राम, समाज और राष्ट्र का विकास करते समय वेद की दृष्टि से जीवन को देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वेद में प्रत्येक कार्य का महत्व है। वेद श्रेष्ठ है, वेदों में समत्व का भाव है। उन्होंने पर्यावरण, जल व परिवार बचाने के लिए वेदों की शिक्षा के महत्व को अनेक उदाहरणों से प्रस्तुत किया। उन्होंने आह्वान किया कि सभी विद्वान मिलकर सकारात्मकता की डोर बड़ी करें। शास्त्रों के संरक्षक विद्वान सहमति बनाकर सामूहिक यात्रा को आगे बढ़ाएं ताकि वेदों की शिक्षा जन-जन तक पहुंचे और भारत विश्व गुरु पुन: बने। इस दो दिवसीय संगोष्ठी के अंतिम सत्र में समूह रचना व नेटवर्किंग की चर्चा हुई। सहयोगात्मक अध्ययन के लिए मुक्त संवाद सत्र का भी आयोजन किया गया। इसमें देश भर से आए प्रतिभागियों ने जिज्ञासाएं रखीं, जिनका उपस्थित विद्वानों ने समाधान किया।
कुल मिलाकर, दो दिवसीय आयोजन में वैदिक ज्ञान, एआई का विज्ञान और मानव जीवन पर प्रभावों पर विस्तार से चर्चा हुई। यह आयोजन वेदों के गहन और समग्र ज्ञान को आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक दुनिया से जोड़ने का एक सफल प्रयास था, जिससे मानवता के कल्याण के लिए सशक्त मार्गदर्शन मिल सके।
(लेखक हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय अध्यन केन्द्र में सह आचार्य हैं)
टिप्पणियाँ