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मिस्र ने बनाए नए शरणार्थी कानून तो मचा हंगामा, सरकार ने कहा “सुरक्षा के लिए जरूरी”

यह कानून इसलिए लाया गया है क्योंकि मिस्र में आर्थिक समस्याएं भी बढ़ रही हैं और साथ ही सूडान और गाजा से आने वाले शरणार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है

by सोनाली मिश्रा
Dec 21, 2024, 09:18 am IST
in विश्व
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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भारत कई वर्षों से घुसपैठ की समस्या से जूझ रहा है। असंख्य अवैध घुसपैठियों को तो भारत के दस्तावेज भी बन गए और वे यहां के नागरिक हो गए। सुरक्षा और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से इन्हें बाहर निकालने के लिए सरकार कदम उठाती है तो वह निशाने पर आ जाती है। इन अवैध घुसपैठियों से केवल भारत ही नहीं बल्कि कई देश त्रस्त हैं। शरणार्थी बनकर भी ये दूसरे देशों में जाते हैं।

अफ्रीका और मध्य-पूर्व के कई देशों में इन दिनों अस्थिरता का माहौल है। वहां गृहयुद्ध जैसे हालात हैं और इससे वहां के लोग पलायन कर रहे हैं। वे पश्चिमी देशों में या फिर अन्य विकसित देशों में शरणार्थी बनकर जा रहे हैं। सूडान और गाजा से भी शरणार्थी बनकर बड़ी संख्या में मिस्र पहुंच रहे हैं। मिस्र में वर्तमान में कागजों पर दर्ज लगभग 9 लाख शरणार्थी हैं। ये संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था के माध्यम से मिस्र में आ रहे हैं।

इंटेरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के अनुसार, मिस्र में अब 90 लाख से अधिक प्रवासी हैं, जिनमें शरणार्थी भी शामिल हैं, चाहे उनकी कानूनी स्थिति कुछ भी हो। यूएनएचसीआर की रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर तक मिस्र में 845,000 से अधिक शरणार्थी आधिकारिक रूप से पंजीकृत थे। प्रतिदिन सैकड़ों सूडानी आते हैं। यूएनएचसीआर ही इनका पंजीकरण कर रही थी। मगर शरणार्थियों के मामले में मिस्र ने एक कानून बनाया है, जिसमें अब यूएनएचसीआर नहीं बल्कि मिस्र की सरकार ही इन जिम्मेदारियों के लिए जिम्मेदार होगी।

इस कानून में शरण आवेदनों और सेवाओं की देखरेख के लिए प्रधानमंत्री के अधीन एक स्थायी शरणार्थी समिति का गठन किया गया है। इस कानून पर मिस्र के राष्ट्रपति अबदेल फतह ईआई-सीसी ने 17 दिसंबर को हस्ताक्षर किए और इसका उद्देश्य शरणार्थियों को प्रतिबंधित करना है।

यह कानून इसलिए लाया गया है क्योंकि मिस्र में आर्थिक समस्याएं भी बढ़ रही हैं और साथ ही सूडान और गाजा से आने वाले शरणार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है। जहां इन कानूनों को लेकर मानवाधिकार संगठन मिस्र की सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं तो वहीं सरकार ने अपने इस कदम का बचाव किया है। इस कानून में कुछ प्रावधानों को लेकर मानवाधिकार संगठनों को आपत्ति है।

infomigrants.net के अनुसार इन संगठनों को उस धारा से आपत्ति है जो यह कहती है कि अवैध रूप से मिस्र में प्रवेश करने वाले शरणार्थी को 45 दिनों के भीतर शरण के लिए आवेदन करना होगा और इस कानून के अनुसार वहां पर रहने वाले शरणार्थियों पर आपराधिक दंड भी अधिकारियों को सूचित किए बिना लगाया जा सकता है। इसके साथ ही एक और धारा है, जिसे लेकर मानवाधिकार संगठनों को आपत्ति है। और वह यह कि इसमें सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा आपदाओं, आतंक-विरोधी परिचालनों या युद्ध के समय शरणार्थियों के खिलाफ आवश्यक कदम उठा सकती है।

इस कानून के विरोधियों का यह कहना है कि ये कानून सुरक्षा के मापदंडों के अनुसार बनाए गए हैं। इनमें सुरक्षा को सबसे पहले रखा गया है। हयूमन राइट्स वाच ने कानून की सचेत भाषा और सुरक्षा आधारित दृष्टिकोण के खिलाफ चेतावनी दी और कहा कि इससे शरणार्थियों के दावों को नकारा जाएगा और अनियमित प्रवास का अपराधीकरण होगा। शरणार्थियों या कहें अवैध घुसपैठियों को लेकर हर तरफ समस्याएं हैं और किसी भी देश का यह अधिकार होता है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा के लिए कानून बना सके। हर देश के पास उसके नागरिकों के अनुसार ही सीमित संसाधन होते हैं, यदि ऐसे में वहां पर उन लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जाएगी, जो उन संसाधनों की महत्ता या फिर कहा जाए कि संसाधनों के अनुसार उपजे लोकाचारों की महत्ता को नहीं समझते होंगे तो देश में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सभी समस्याएं उत्पन्न होंगी। उस देश के नागरिक आने वाले शरणार्थियों के निशाने पर होंगे और ऐसे में हर हर देश की चुनी हुई सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने उन नागरिकों के कल्याण के लिए कदम उठाए जो इस शरणार्थी नीति के कारण प्रभावित हो रहे हैं। भारत भी इस समस्या से दशकों से पीड़ित है, मगर यहां पर भी तमाम बहसों में इतनी महत्वपूर्ण समस्या दबकर रह जाती है।

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