पाकिस्तान के मुल्तान शहर का वह हिस्सा जहां स्वतंत्रता से पहले समृद्धि की बयार बहती थी और धनाढ्य और प्रभावशाली हिंदुओं का दबदबा था, अब ‘मिर्जापुर’ बनकर रह गया है। पाकिस्तान के चर्चित ब्लॉगर दानिश हुसैन कहते हैं, ‘‘इसके एक हिस्से में आप कैमरा लेकर नहीं जा सकते। यहां आपके साथ कैसा बर्ताव होगा, यह कहना संभव नहीं है। एक बार मैं जब खुद ब्लॉग बनाने वहां गया तो कैमरा ले जाने पर स्थानीय लोगों ने आगे जाने से रोक दिया और कहा कि कैमरे के साथ अंदर जाएंगे तो वापस आने की गारंटी नहीं है।’’
दरअसल, मुल्तान शहर के अंदरुनी हिस्से को ‘अंदरून मुल्तान’ कहा जाता है। यहीं ‘हन्नू का छज्जा’ स्थित है। नजदीक में ही एक चैक बाजार है, जो साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले इस इलाके की ज्यादातर आबादी हिन्दू थी, तभी से यहां की साड़ियां प्रसिद्ध हैं। इसी बाजार से आगे यह चर्चित मुहल्ला है। इसके प्रवेश द्वार पर एक भव्य दरवाजा है। स्वतंत्रता से पहले इस प्रवेश द्वार पर भारी-भरकम नक्काशीदार काष्ठ निर्मित कपाट लगे हुए थे। बाद में स्थानीय लोगों ने इन्हें उखाड़ दिया।
इस इलाके में बेहद पतली और संकरी गलियों का जाल-सा बिछा हुआ है। कई गलियां तो इतनी पतली हैं कि आप इनमें प्रवेश करने के बाद दोनों बांहें नहीं खोल सकते। इन संकरी गलियां में नक्काशीदार पत्थरों से बनी पुरानी जर्जर इमारतों के जाल को देखकर आप दंग रह जाएंगे। आपके लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा कि यहां रहने वाले लोग कितने समृद्ध रहे होंगे। यहां के कुछ पुराने बाशिंदे बताते हैं, ‘‘मलिक हन्नू राम और मलिक जस्सू राम दो भाई थे, जो स्वतंत्रता से बहुत पहले व्यापार के सिलसिले में यहां आया करते थे। बाद में उन्होंने यहीं बसने का इरादा किया। 1935 में निर्मित उनका भव्य मकान ‘खन्ना मेंशन’आज भी यहां मौजूद है। मगर अब उस पर किसी और का कब्जा है।’’
मंदिर भी जीर्ण—शीर्ण अवस्था में
‘अंदरून मुल्तान’ के इस इलाके में स्वतंत्रता से पहले से हिंदू आबादी थी। इसका प्रमाण है 1821 में निर्मित गोपाल मंदिर। हालांकि अब रखरखाव के अभाव में यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। मंदिर का फर्श, दीवारें और स्तंभ संगमरमर से बने हैं, जिसकी झलक अब भी देखी जा सकती है। इलाके के एक बुजुर्ग बताते हैं कि मलिक हन्नू राम और मलिक जस्सू राम के यहां आकर बसने से भारत के दूसरे हिस्सोें से कई समृद्ध और प्रतिष्ठित लोग बड़ी संख्या में यहां आकर रहने लगे थे। उन सबने यहां अपने लिए हवेलियां बनावाईं जिनकी जर्जर निशानियां आज भी अपनी जगह खड़ी हैं। बंटवारे के बाद मुसलमानों ने इन पर कब्जा तो कर लिया, पर उनकी इतनी हैसियत नहीं थी कि वे इनकी मरम्मत करा सकें।
पाकिस्तान के कुछ सुलझे हुए लोगों का कहना है कि ‘हन्नू का छज्जा’ भारत की संस्कृति का हिस्सा है। गोपाल मंदिर की वजह से इस इलाके का धार्मिक महत्व है। यह पर्यटन स्थल के रूप में इस इलाके को विकसित किया जाए, तो यहां पर्यटक आंएगे। इससे न केवल पाकिस्तान को विदेशी मुद्रा मिलेगी, बल्कि यह इलाका भी माफिया से मुक्त होकर सुंदर रूप ले लेगा।
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