भाषा संस्कृति का आधार होती है। बोडो भाषा को संजोकर आप भारत की सामूहिक सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध कर रहे हैं। यह कहना था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। वे नई दिल्ली में 15 से 16 नवंबर तक हुए प्रथम बोडोलैंड महोत्सव कर रहे थे।
इस महोत्सव के अंतर्गत बोडो साहित्य सभा की 73वीं वर्षगांठ का भी आयोजन किया गया।
यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक था, अपितु आर्थिक प्रगति का परिचायक भी था। बोडोलैंड के भौगोलिक संकेत (जीआई) प्राप्त वस्त्र एवं रेशम उत्पादों ने इस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता को प्रकट किया। साथ ही, महोत्सव में बोडोलैंड की पारिस्थितिक समृद्धि का भी प्रदर्शन किया गया। महोत्सव का एक प्रमुख आकर्षण बोडोफा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा को समर्पित श्रद्धांजलि थी। बोडोफा के ‘जिओ और जीने दो’ दर्शन ने बोडोलैंड के शांतिपूर्ण परिवर्तन की नींव रखी। प्रधानमंत्री ने उनके आदर्शों को संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी बताया।
यह आयोजन बोडो समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मात्र नहीं था, अपितु भारत की अंतर्निहित एकात्मता एवं समावेशिता का सशक्त प्रतीक भी था। इस महोत्सव ने बोडोलैंड की परंपराओं एवं अभिलाषाओं को अभिव्यक्त करते हुए उत्तर-पूर्व क्षेत्र को दूरस्थ और पृथक मानने की पुरानी धारणाओं को खंडित किया तथा इसे राष्ट्रीय अखंडता का अभिन्न भाग प्रमाणित किया।
इस महोत्सव का सर्वाधिक प्रभावकारी पक्ष यह था कि इसने उत्तरी-पूर्वी भारत और दिल्ली के मध्य भौगोलिक एवं सांस्कृतिक निरंतरता को सजीव रूप में प्रदर्शित किया। इस महोत्सव में पांच हजार से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। राजघाट से इंडिया गेट तक की सांस्कृतिक यात्रा ने सांस्कृतिक गौरव के साथ राष्ट्रीय एकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। यह केवल एक यात्रा मात्र नहीं थी, अपितु भारत की विविधता को आत्मसात करने की राष्ट्र की प्रगति का उद्घोष थी।
राजघाट, जो महात्मा गांधी की समाधि है, शांति का प्रतीक है, तथा इंडिया गेट, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की स्मृति को समर्पित है, इन दोनों को संगीत, नृत्य एवं कला के माध्यम से जोड़ते हुए बोडो समुदाय ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया। यह केवल स्थानीय गौरव का प्रतीक न होकर एकता का घोषणापत्र था, जो यह सुनिश्चित करता है कि बोडोलैंड अपने विशिष्ट इतिहास एवं संस्कृति के साथ भारत के ताने-बाने का अभिन्न अंग है।
यह महोत्सव बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के नेतृत्व तथा ‘संघर्ष से शांति’ की ओर यात्रा का परिचायक भी था। प्रमोद बोडो के दूरदर्शी नेतृत्व में 2020 के बोडो शांति समझौते ने दशकों से चले आ रहे उग्रवाद और अस्थिरता को समाप्त कर आर्थिक प्रगति, सांस्कृतिक पुनरुत्थान एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का मार्ग प्रशस्त किया।
यह महोत्सव इस शांति का ही प्रतिफल था तथा बोडोलैंड के जनमानस की अपराजेयता एवं उनकी राष्ट्रीय प्रगति में योगदान देने की आकांक्षा का प्रतीक भी। यह भारत की ‘विविधता में एकता’ की भावना का महोत्सव था, जो यह प्रदर्शित करता है कि उत्तर-पूर्व अब ‘दूरस्थ’ क्षेत्र नहीं, अपितु भारत के राष्ट्रीय गौरव का अभिन्न अंग है। (लेखिका जाकिर हुसैन कॉलेज, दिल्ली विवि में सहायक आचार्य हैं)
टिप्पणियाँ