नेपाल के पूर्व कर्णधारों ने अपने नई प्रधानमंत्री से यह उगलवाया कि चीन से कोई नया कर्ज नहीं लिया जाएगा, ऐसी किसी संधि पर दस्तखत नहीं होंगे। असल में ओली की अपने तीसरे कार्यकाल की इस पहली चीन यात्रा पर विपक्षियों ने ही नहीं, खुद सरकार में शामिल उनके सहयोगी दलों ने ही प्रश्न खड़े किए थे। ओली जानते हैं कि नेपाल पहले चीन से बीआरआई में जुड़ने के नाम पर काफी पैसा ले चुका है और इसका खामियाजा अभी तक भुगत रहा है।
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कार्यभार संभालने के बाद, परंपरा से हटते हुए, अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत की बजाय चीन का चुना है। इस कदम के लिए न सिर्फ ओली कटाक्ष और सवालों के निशाने पर हैं, बल्कि आजकल वे जहां जा रहे हैं, भारत से निकटता की कसमें खाते हुए, ‘पहले भी ऐसा हुआ है’ की दुहाई देते घूम रहे हैं।
प्रधानमंत्री निवास में एक महत्वपूर्ण बैठक करके नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने घोषणा करके यहां तक कहा है कि वे पहले चीन तो जा रहे हैं लेकिन उससे कोई कर्ज नहीं लेंगे। पूर्व प्रधानमंत्रियों और पूर्व विदेश मंत्रियों की उस बैठक में ओली ने साफ कहा कि बीजिंग दौरे में वे ऐसा कोई समझौता नहीं करके आएंगे जो किसी तरह के नए कर्ज से जुड़ा होगा।
यानी नेपाल के नेता भी जानते हैं कि किसी बड़े नेता के चीन जाने पर बीजिंग उन्हें किस तरह अपने कर्ज के जाल में फंसाता है और फिर शर्तों के बंधन में ऐसा बांधता है कि जिन्हें पूरा करने में उस देश की अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। अफ्रीकी देश और कुछ दक्षिण अमेरिकी देश चीन की इस शातिर चाल में फंसे हुए हैं।
इसलिए नेपाल के पूर्व कर्णधारों ने अपने नई प्रधानमंत्री से यह उगलवाया कि चीन से कोई नया कर्ज नहीं लिया जाएगा, ऐसी किसी संधि पर दस्तखत नहीं होंगे। असल में ओली की अपने तीसरे कार्यकाल की इस पहली चीन यात्रा पर विपक्षियों ने ही नहीं, खुद सरकार में शामिल उनके सहयोगी दलों ने ही प्रश्न खड़े किए थे। ओली जानते हैं कि नेपाल पहले चीन से बीआरआई में जुड़ने के नाम पर काफी पैसा ले चुका है और इसका खामियाजा अभी तक भुगत रहा है। इसलिए चीन का संदर्भ आते ही अब वहां की सत्ता फूंक—फूंककर कदम रखती है।
इससे पूर्व राजधानी काठमांडू में एक कार्यक्रम में भी नेपाल के प्रधानमंत्री ने यह साफ कहा था कि वे पहले चीन जा तो रहे हैं, लेकिन इसका यह अर्थ न लगाया जाए कि वे ऐसा करके भारत और नेपाल के पारंपरिक संबंधों को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने वाले हैं, भारत से हिमालयी देश की निकटता पहले जैसी ही बनी रहेगी।
ओली कल चीन की अपनी 2 दिसम्बर से शुरू हो रही पहली विदेशी आधिकारिक यात्रा के बारे में नेपाल के प्रधानमंत्री कार्यालय ‘सिंह दरबार’ में यह बैठक ले रहे थे। ओली ने विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि बीजिंग के साथ काठमांडू ने जो ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना पर दस्तखत किए हैं, वह किसी प्रकार के कर्जे के लिए नहीं था। इस प्रकार का उल्लेख अब आगे न किया जाए तो बेहतर रहेगा।
ओली कम्युनिस्ट पार्टी ‘एमाले’ से आते हैं इसलिए यह मानना सहज है कि उनका झुकाव भारत से ज्यादा चीन की तरफ रहने वाला है। विपक्षी नेता भी जानते हैं कि पहले चीन जाने के पीछे क्या रहस्य है। नेपाल में पहले भी जितने कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री रहे हैं वे भी रणनीतिक और अन्य प्रकार की मदद के लिए चीन की ओर देखते रहे हैं। वहां अनेक परियोजनाओं में बीजिंग की सीधी दखल है। चीन नहीं चाहता कि नेपाल में भारत का प्रभाव बना रहे इसलिए उसने कथित तौर पर नेपाल में अकूत पैसा झोंककर वहां के नीति निर्माताओं में अपने प्रति राग और भारत के प्रति विराग पैदा करने को उकसाया है। इसलिए शायद उस पूर्व हिन्दू राष्ट्र में ऐसे तत्व खड़े हो गए जो भारत से दूरी बनाने की वकालत करते रहे हैं।
कल की बैठक में ‘बेल्ट एंड रोड’ पर बोलते हुए ओली ने कहा कि सरकार अपने राष्ट्रीय हित देखकर ही विदेशी सरकार या एजेंसी से कर्ज लेती है और ऐसा बहुत आवश्यक होने पर ही किया जाता है। उन्होंने इन बातों को अफवाह बताया कि ओली बीजिंग नए कर्ज पर बात करने जा रहे हैं।
ओली अगर चीन के साथ नेपाल के ‘पुराने और दोस्ताना संबंध’ की दुहाई दे रहे हैं तो साथ में यह भी कह रहे हैं कि वे इसी मित्रता को और विस्तार देने के लिए बीजिंग जा रहे हैं। भारत के संदर्भ में उनका कहना था कि पहली सरकारी यात्रा भले किसी देश की हो, लेकिन राष्ट्र के नाते उनके लिए संप्रभुता और स्वतंत्रता के साथ ही राष्ट्र और विश्व की भलाई सबसे पहले है। ओली कहते हैं कि उसी तरह भारत के साथ भी संबंध दोस्ताना हैं। नेपाल के विकास की दृष्टि से भारत और नेपाल के मधुर संबंधों का फायदा उठाना है।
ओली के साथ इस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड भी शामिल थे। नेपाल की विदेश मंत्री डॉ. आरजू राणा देउबा प्रधानमंत्री की प्रस्तावित चीन यात्रा पर बोलीं कि सत्ता संभाल रहे दोनों दलों ने एजेंडे को आखिरी रूप देने में जुटे हैं। नेपाली मीडिया के वर्ग में यह चर्चा भी है कि दोनों दल सरकार भले चला रहे हैं लेकिन ओली के चीन दौरे को लेकर दोनों के बीच कुछ खटपट भी चल रही है।
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