गत 10 नवंबर को जबलपुर में योगमणि वंदनीया स्वर्गीय डॉ. उर्मिला ताई जामदार की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसे संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि जो भी विकास हुआ, अधूरा ही रहा। वस्तुत: समाज में धर्म और राजनीति को लेकर भी दोनों की अवधारणा को व्यवसाय बना लिया गया। वैज्ञानिक युग आने के बाद वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह गया और फिर दो विश्व युद्ध हुए।
इस दृष्टि से सुख-समृद्धि नहीं, वरन् विनाश ज्यादा हुआ। संपूर्ण विश्व दो विचारधाराओं में बंट गया, नास्तिक और आस्तिक। आगे चलकर यह संघर्ष का विषय बन गया। जो बलवान हैं, वे जिएंगे और दुर्बल मरेंगे। साधन तो असीमित हो गए, पर मार्ग नहीं मिला। इसीलिए विश्व आत्मिक शांति हेतु भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है। उन्होंने कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है, पर उसके पास मानवता के कल्याण का मार्ग नहीं है।
भारत इस दृष्टि से संपन्न है, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया। यह स्मरण करना शेष है कि हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है। भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बना रहे, इसीलिए दोनों का सह-संबंध आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में इसे स्वीकार किया गया है। इसलिए यह धर्म अविद्या और विद्या दोनों के मार्ग से होकर चलता है।
उन्होंने इंगित किया कि सृष्टि-रचना के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है। मानव धर्म ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही हिंदू धर्म है, जो सभी विषयों को एकाकार स्वरूप में देखता है। इस अवसर पर प्रांत संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे, योगमणि ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र जामदार, अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विस्पुते सहित नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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