इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद द्वारा हाल ही में जारी किया गया फतवा, जिसमें बैंक कर्मचारियों के बच्चों से निकाह करने से मना किया गया है क्योंकि उनकी तनख्वाह ब्याज की कमाई से आती है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस फतवे में यह कहा गया है कि बैंक कर्मचारियों की कमाई हराम है, क्योंकि इस्लाम में ब्याज को हराम माना गया है। यह फतवा अब न केवल मजहबी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन चुका है।
राष्ट्रीय बाल आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने ट्वीट कर उठाए सवाल
इस फतवे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के ट्वीट के बाद, जिसमें उन्होंने इस फतवे पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने यह सवाल उठाया है कि मदरसों को सरकारी फंडिंग मिलती है, और यह फंडिंग ब्याज की कमाई से आती है, तो क्या मौलानाओं की लाखों रुपये की तनख्वाह भी हराम नहीं है? उनका कहना था कि अगर बैंक कर्मचारियों की मेहनत की कमाई हराम है, तो मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग से मौलानाओं की तनख्वाह का क्या होगा?
ये फ़तवा मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने जारी किया है,फ़तवे में लिखा है कि बैंक कर्मचारी के बच्चों से निकाह मत करो उसकी तनख़्वाह ब्याज की कमाई से आई है ।
उसकी मेहनत की तनख़्वाह को हराम बता रहे हैं।पर सरकार से मदरसा को फंडिंग मिलती रहे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में महँगे महँगे… pic.twitter.com/GNu9RNQ3Nf
— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) November 5, 2024
आम मुसलमान के बच्चों की शिक्षा और तरक्की में रुकावट
प्रियंक कानूनगो का यह भी कहना है कि दारुल उलूम देवबंद जैसे संस्थानों का उद्देश्य आम मुसलमान के बच्चों की शिक्षा और तरक्की में रुकावट डालना हो सकता है।
मौलानाओं की तनख्वाह
सरकार से मदरसा को फंडिंग मिलती रहे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में महंगे-महंगे कांग्रेसी वकील खड़े किए हैं। मदरसा दारुल उलूम देवबंद और अन्य मजहबी संस्थान सरकारी फंडिंग प्राप्त करते हैं, और यह फंडिंग ब्याज की कमाई से आती है।
मौलानाओं की तनख्वाह को क्या माना जाएगा?
अगर बैंक कर्मचारियों की तनख्वाह हराम मानी जाती है, तो उन फंडिंग से प्राप्त मौलानाओं की तनख्वाह को क्या माना जाएगा? यह एक बड़ा सवाल है।
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