वर्तमान में दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनावों और अनेक राज्यों में उपचुनावों का दौर चल रहा है। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में करारी हार की छाया स्पष्ट रूप से दिख रही है। राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की हरियाणा में मिली पराजय के आगे जम्मू-कश्मीर की हार को या तो पूरी तरह से खारिज कर रहे हैं या उस पर चर्चा से परहेज करते नजर आ रहे हैं। मगर कांग्रेस पार्टी की वास्तविक और बुरी हार जम्मू-कश्मीर में हुई है।
कांग्रेस पार्टी को जम्मू-कश्मीर के चुनावी इतिहास में सबसे करारी हार का सामना इस बार करना पड़ा, जब केंद्र शासित प्रदेश में सीटों की संख्या 87 से बढ़कर 90 हो गई। कांग्रेस पार्टी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन के तहत 32 सीटों पर चुनाव लड़ने का करार तोड़ते हुए सात सीटों पर अपने सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ चुनाव लड़ा और मात्र 6 सीटें ही जीत सकी। इन सात सीटों में कांग्रेस पार्टी किसी भी सीट पर मुख्य मुकाबले में नहीं आ सकी। इन सात सीटों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने चार, भाजपा ने दो और आम आदमी पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की।
कांग्रेस पार्टी के इस विश्वासघात को नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गंभीरता से लेते हुए मंत्रिमंडल गठन में कांग्रेस पार्टी को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया। राजनीतिक तौर पर कांग्रेस पार्टी इसे दूसरा रूप देना चाहती है, लेकिन इस कदम से उसने नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे मजबूत सहयोगी को लगभग खो ही दिया है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि वर्तमान नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले वाजपेयी सरकार के एनडीए का महत्वपूर्ण घटक दल था। भविष्य में इन दोनों दलों के बीच नजदीकी की संभावनाओं को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है। ज्ञात हो कि इससे पहले जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस पार्टी का सबसे बुरा प्रदर्शन 1996 में हुआ था, जब पार्टी केवल सात सीटें ही जीत सकी थी।
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में मिली पराजय का असर कांग्रेस की साख पर पड़ा है, जिसका असर अब महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में भी देखने को मिल रहा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस अपने चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर इस बार चुनाव लड़ रही है। इससे पहले सबसे कम सीटों पर कांग्रेस ने 2004 में 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था। यह कांग्रेस की देशव्यापी गिरती साख का संकेत है। इसी तरह झारखंड में भी कांग्रेस राज्य के गठन के बाद सबसे कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
इन दो राज्यों में कांग्रेस को अपने चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव तब लड़ना पड़ रहा है, जब पार्टी ने विगत तीन लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक 99 सीटें जीती हैं और पार्टी का प्रदर्शन पिछले दस सालों में अपने शिखर पर बताया जा रहा था। 2014 और 2019 के लगातार दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नेता विपक्ष का दर्जा प्राप्त करने योग्य सीटें भी नहीं जीत सकी थी।
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