नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने और इसके आसपास के क्षेत्र का सर्वेक्षण कराने के निर्देश दिए हैं। जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए, जिसमें जामा मस्जिद के संरक्षण और इसके आसपास के अतिक्रमणों को हटाने की मांग की गई थी, कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश दिया कि वह वक्फ बोर्ड के साथ मिलकर मस्जिद और इसके आसपास का सर्वे करें। अदालत ने इस सर्वेक्षण का उद्देश्य और जामा मस्जिद के प्रबंधन में वक्फ बोर्ड की भूमिका पर भी स्पष्टीकरण मांगा है।
एएसआई के अधीन क्यों नहीं जामा मस्जिद ?
हाईकोर्ट ने एएसआई से यह भी स्पष्ट करने को कहा कि जामा मस्जिद अभी तक एएसआई के अधीन क्यों नहीं थी। एएसआई द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने के कई महत्वपूर्ण प्रभाव होंगे। इस निर्णय के बाद 100 मीटर के भीतर निर्माण कार्य निषिद्ध हो जाएगा, और 200 मीटर के अतिरिक्त क्षेत्र में निर्माण पर कड़े नियम लागू होंगे। एएसआई ने यह भी बताया कि संरक्षित स्मारक घोषित किए बिना ही उन्होंने 2007 से 2021 के बीच जामा मस्जिद के संरक्षण और मरम्मत पर लगभग 61 लाख रुपये खर्च किए हैं।
वक्फ बोर्ड से पूछा सवाल
हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को निर्देशित किया है कि वे जामा मस्जिद के संरक्षण और सुरक्षा के संबंध में सुझाव प्रस्तुत करें। अदालत ने वक्फ बोर्ड से यह भी पूछा है कि मस्जिद की प्रबंध समिति के संविधान में क्या कोई परिवर्तन किया गया है। वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने अदालत को बताया कि मस्जिद की प्रबंध समिति में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और छह अन्य सदस्य हैं। उन्होंने पीठ को सूचित किया कि समिति की वर्तमान स्थिति पर वे जल्द ही विस्तृत जानकारी देंगे।
संरक्षित स्मारक के प्रभाव
एएसआई के हलफनामे में यह भी कहा गया है कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने से इसके चारों ओर 300 मीटर तक का क्षेत्र प्रभाव में आ जाएगा। इस क्षेत्र में निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी, जिससे संरक्षित क्षेत्र में अतिक्रमण रोकने में सहूलियत मिलेगी।
शाही इमाम की उपाधि पर विवाद
इस मामले की सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान और अजय गौतम ने अदालत के समक्ष जामा मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी द्वारा शाही इमाम की उपाधि के इस्तेमाल और उनके बेटे की उप-इमाम नियुक्ति पर आपत्ति दर्ज की है। याचिकाओं में कहा गया है कि इमाम की उपाधि का प्रयोग संविधान का उल्लंघन करता है और इसे वक्फ बोर्ड के अधीन लाने की मांग की गई है।
अगली सुनवाई और स्थिति रिपोर्ट
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को निर्धारित की है और एएसआई तथा वक्फ बोर्ड से चार सप्ताह में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह रिपोर्ट मस्जिद के प्रबंधन, इसके आय और दान के उपयोग, और जामा मस्जिद परिसर का उपयोग किन उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, इन सभी बिंदुओं पर जानकारी प्रदान करेगी।
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