शुक्रवार को ज्ञानवापी प्रकरण में 1991 के मुकदमे में हिंदू पक्ष द्वारा अतिरिक्त एएसआई सर्वे कराने की मांग पर न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। सिविल जज ने हिंदू पक्ष की मांग खारिज कर दी। पिछली तारीख पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी, मुस्लिम पक्ष और वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने अपनी-अपनी दलील न्यायालय के सामने रखा था। इसके साथ ही हिंदू पक्ष के द्वारा उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के निर्णय के कई आख्यानों का भी विवरण देते हुए उसकी प्रति न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।
1991 के मुख्य मुकदमे लार्ड आदि विशेश्वर में परिसर में शिवलिंग होने का दावा किया गया है। श्रृंगार गौरी मामले को लेकर परिसर का एएसआई सर्वे हो चुका है लेकिन वाद मित्र अभी इस सर्वे को अधूरा बता रहे हैं। उनका कहना है सर्वे में विधिवत मशीनों का प्रयोग नहीं किया गया है। खोदाई भी नहीं हुई है जबकि यहां पर खोदाई के बाद अवशेषों की तलाश किया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही परिसर का बड़ा क्षेत्र इस वैज्ञानिक सर्वे से अभी भी अछूता है। इसलिए वैज्ञानिक तकनीक से मशीनों और खुदाई के जरिए पूरी तरह से सर्वे होना जरूरी है, ताकि साक्ष्य जुटाए जा सकें।
दरअसल, वर्ष 1991 में हिन्दुओं की तरफ से पंडित सोमनाथ व्यास, डा. रागरंग शर्मा एवं हरिहर पाण्डेय के द्वारा ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व की याचिका योजित की गई थी। वाद में कहा गया कि वर्ष 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने फरमान जारी करके मंदिर को तोड़ा था। यह पूरी सम्पत्ति आदि विशेश्वर भगवान की है। उस परिसर को पूर्ण रूप से हिन्दुओं को सौंप दिया जाना चाहिए। वहां पर अन्य किसी का कोई दावा नहीं बनता है। बीतते समय के साथ तीनों वादकारियों की मृत्यु हो गई। यह मुकदमा वर्ष 1991 में दाखिल हुआ था। करीब सात वर्ष बाद वर्ष 1998 में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 में इस मुकदमे में स्थगन आदेश पारित किया था।
नवंबर 2018 में इस मुकदमे में एक नया मोड़ आया। उच्चतम न्यायालय ने एशियन सर्फेसिंग कंपनी के एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए निर्णय दिया कि अगर किसी स्थगन आदेश का विधि सम्मत कारण नहीं है तो वह स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा। उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय का हवाला देते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन, वाराणसी जनपद के न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया गया और मुकदमे का विचारण आरंभ हुआ। सिविल जज सीनियर डिवीजन ने सुनवाई के बाद 8 अप्रैल 2021 को एएसआई सर्वे का आदेश दिया। इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उस आदेश को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने सर्वे के आदेश को स्टे कर दिया। उसके बाद गत 19 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की सभी पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके बाद मुकदमे की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया। फिलहाल इस फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने कहा है कि उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। जाएगी।
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