अफगानिस्तान में तालिबान शासन में महिलाओं की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से गायब ही कर दिया गया है। अब जो हो रहा है, वह और भी चिंताजनक है। तालिबान सरकार अब उन बच्चियों और किशोरियों के तलाक रद कर रही है, जिन्हें पहले की सरकारों ने शौहर के जुल्म के कारण तलाक दिलवाया था। जिन लड़कियों को अफगानिस्तान की अदालतों ने लंबी लड़ाई के बाद तलाक दिया था, अब उन तमाम फैसलों को तालिबान की सरकार पलट रही है।
बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में बीबी नाजदाना की कहानी के माध्यम से इस फैसले को बताया है। बीबी नाजदान का निकाह सात वर्ष की आयु में हो गया था। जब नाजदान पंद्रह साल की हुईं, तो उसके शौहर ने उसकी मांग की। मगर नाजदान ने कोर्ट का सहारा लिया और दो साल के बाद उसके हक में फैसला आया। बीबीसी से बात करते हुए नाजदान ने कहा कि अदालत ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि अब तुम अलग हो गई हो और जिससे मन हो उससे शादी कर सकती हो।
लेकिन नाजदान के शौहर ने इस फैसले को वर्ष 2021 में चुनौती दी और तालिबान शासन ने नाजदान से कहा कि वह खुद अपने मामले की सुनवाई में नहीं आ सकती है क्योंकि यह शरिया के खिलाफ है। वह खुद अपने मामले की पैरवी नहीं कर सकती है। उसकी जगह पर उसका भाई उसके मामले की पैरवी करेगा। उससे कहा गया कि अगर यह बात नहीं मानी गई तो नाजदान का हाथ उसके शौहर के हाथ में देना होगा।
नाजदान का शौहर और अब तालिबान का सदस्य इस मुकदमे में जीत गया और नाजदान की यह गुहार बेकार हो गई कि अगर उसे वापस भेजा गया तो उसकी जिंदगी पर खतरा है। अब उन दोनों भाई-बहन को अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा। जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है, तब से उसका दावा है कि वह पिछली सरकार में किए गए भ्रष्टाचार की जांच करेगा और उन कामों को दुरुस्त करेगा जो शरिया कानून के अनुपालन में नहीं है। तीन साल में तालिबान लगभग 3 लाख 55 हजार मामलों का निस्तारण कर चुका है और उनमें से 40% जमीन से जुड़े मामले थे तो वहीं 30% तलाक के मामले।
हालांकि इंसाफ का तालिबान का दावा बेबुनियादी ही लगता है क्योंकि तालिबान ने पूर्ववर्ती शासन के सभी जजों को हटा दिया है। पहले अफगानिस्तान में महिला भी जज थीं, तो तालिबान ने उन्हें भी जज के पद से हटा दिया। पुरुषों को भी हटाकर उन लोगों को जज बनाया है, जो कट्टरपंथी विचारों का समर्थन करते हैं।
बीबीसी के अनुसार तालिबान के सर्वोच्च न्यायालय में फॉरेन रिलेशन एंड कम्युनिकेशन के निदेशक अब्दुलरहीम रशीद ने कहा कि औरतें इंसाफ करने के लिए योग्य या सक्षम नहीं हैं, क्योंकि हमारे शरिया सिद्धांतों के अनुसार केवल वही लोग फैसले दे सकते हैं या इंसाफ दे सकते हैं, जिनमें बहुत ज्यादा अक्ल हो।
यह सभी को ज्ञात है कि कैसे तालिबान शासन आते ही जज आदि के पद पर काम कर रही अनेकों महिलाएं देश छोड़कर चली गई थीं। तालिबान शासन में मुस्लिम महिलाओं का जीवन वैसे ही घरों में कैद है और ऐसे फैसले उन्हें एक ऐसी कैद में धकेल रहे हैं, जहां से शायद वे कभी वापस न आ सकें। अमेरिका के समर्थन से चलने वाली सरकार में महिलाएं काफी पदों पर थीं और वे देश की महत्वपूर्ण सेवाओं में कार्य कर रही थीं। यह भी सच है कि जिन महिला जजों ने तालिबानियों के खिलाफ फैसले सुनाए थे, उन्हें तालिबान के सत्ता में आने के बाद छिप-छिपकर रहना पड़ा था। उनके घरों पर अज्ञात नंबरों से कॉल किए जाते रहे थे। कई महिला जज तालिबान को चकमा देकर देश छोड़कर जाने में सफल रही थीं तो कई वहीं अटक गई थीं। अब उनके साथ क्या हो रहा होगा, यह शायद ही किसी को पता हो।
यह बहुत हैरानी की बात है कि भारत जैसे देश में कथित प्रगतिशील, लिबरल एवं सेक्युलर पत्रकारों के अतिरिक्त कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट औरतों ने भी तालिबान के सत्ता ग्रहण को अमेरिकियों के प्रति जीत बताया था, मगर वे इस बात पर तब भी चुप थीं कि तालिबान में मुस्लिम महिलाओं की क्या स्थिति होगी और वे अब भी चुप हैं जब बीबी नाजदान जैसी बच्चियों की कहानियां बीबीसी में प्रकाशित हो रही हैं। जब तालिबान यह कह रहा है कि औरतें इंसाफ देने का काम नहीं कर सकती हैं, तो भी तालिबान को क्रांतिकारी बताने वाली कथित प्रगतिशील लॉबी एकदम चुप है।
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