कांग्रेस के हरियाणा विधानसभा चुनाव हारने पर कथित 'सेक्युलर पत्रकारों के कुनबे' में मचा हड़कंप
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कांग्रेस के हरियाणा विधानसभा चुनाव हारने पर कथित ‘सेक्युलर पत्रकारों के कुनबे’ में मचा हड़कंप

भारत में चुनावी लोकतंत्र है, यहाँ पर हर मतदाता अपने पसंद के नेता को मत देने के लिए स्वतंत्र है। मगर जब यही स्वतंत्रता हरियाणा के मतदाताओं ने प्रयोग की तो पत्रकारों का वह समूह क्यों खफा हो गया, जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर केवल भाजपा, संघ और हिन्दू विरोध करता है।

by सोनाली मिश्रा
Oct 10, 2024, 11:01 am IST
in विश्लेषण
Haryana Assembaly Election Secular Journalist crying

प्रतीकात्मक तस्वीर

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हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर जो भी कयास लगाए जा रहे थे, वे सभी बेकार साबित हुए। इन चुनावों को लेकर कथित सेफॉलोजिस्ट और चुनाव विशेषज्ञ योगेंद्र यादव तो सुबह तक यही कह रहे थे कि कांग्रेस की सुनामी है। कांग्रेस की जीत को लेकर कथित सेक्युलर पत्रकार कुनबा इस सीमा तक आश्वस्त था कि जब नतीजे आने आरंभ हुए तो वह यह मानने को ही तैयार नहीं था कि कांग्रेस हरियाणा में हार भी सकती है। वह यह स्वीकार ही नहीं कर रहा था कि जनता ने वोट दरअसल भाजपा को दिया है।

भारत में चुनावी लोकतंत्र है, यहाँ पर हर मतदाता अपने पसंद के नेता को मत देने के लिए स्वतंत्र है। मगर जब यही स्वतंत्रता हरियाणा के मतदाताओं ने प्रयोग की तो पत्रकारों का वह समूह क्यों खफा हो गया, जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर केवल भाजपा, संघ और हिन्दू विरोध करता है। जैसे ही नतीजे आने आरंभ हुई, यह पत्रकार कुनबा इस तरह तड़पने लगा जैसे जल के बिना मछली तड़पती है। योगेंद्र यादव जो कि कांग्रेस की सुनामी बता रहे थे, उन पर प्रश्न उठने लगे और यह कहा जाने लगा कि क्या आज तक एक भी चुनावी अनुमान सत्य साबित हुआ है?

आरफा खानम शेरवानी से लेकर साक्षी जोशी तक कथित स्वतंत्र पत्रकारों के एक्स पर पोस्ट देखने लायक थे। इन दिनों विदेश में पत्रकारिता में फेलोशिप ले रही आरफा खानम शेरवानी ने लिखा, “सुना है हरियाणा में मोदी जी ने जलेबी बँटवाना शुरू कर दिया है!”

यह कांग्रेस की जीत की खुशी को लेकर था। यहाँ तक कि टीवी पर भी कुछ पत्रकार ऐसे थे, जिनके चेहरे की खुशी उस समय देखने लायक थी जब कांग्रेस हरियाणा से जीत रही थी। यह सही है कि पत्रकार भी इंसान होते हैं और उनकी भी राजनीतिक प्राथमिकताएं होती हैं। देश का नागरिक होने के नाते वे किसी न किसी दल को वोट भी करते होंगे। परंतु पत्रकारिता जैसे पेशे की सबसे बड़ी पात्रता पत्रकार का निष्पक्ष होना होता है, जो कथित सेक्युलर पत्रकार कुनबे के पत्रकारों से दुर्भाग्य से दूर ही पाया जाता है।

हालांकि, इसी कुनबे के कुछ पत्रकार ऐसे भी रहे जिन्होंने हरियाणा चुनावों में अपने गलत आंकलन पर माफी मांगी और कहा कि वे जनता की भावनाओं को समझ नहीं पाए। अजित अंजुम ने 5 अक्टूबर को एक्स पर पोस्ट किया था कि हरियाणा में मोदी की हार हुई है, चैनल वाले नड्डा के माथे पर ठीकरा फोड़ने के चक्कर में हैं। नड्डा जी को प्रतिवाद करना चाहिए, हर बार हारने पर उनके हिस्से घोर बेइज्जती आती है। जीतने पर माला मोदी के गले में।

हालांकि, यह पोस्ट तब का था, जब चुनाव परिणाम नहीं आए थे। जब चुनाव परिणाम इस पोस्ट के विपरीत आए तो अजीत अंजुम ने लिखा कि “हरियाणा को समझने में मुझसे चूक हुई।

आमतौर पर मैं हार-जीत की भविष्यवाणी नहीं करता। सार्वजनिक तौर पर ऐसे आकलन करने से हमेशा बचता हूं।”

https://twitter.com/ajitanjum/status/1843574738096140339?

वैसे यह काम इंडिया टुडे ने किया था। जब तक कांग्रेस जीतती दिखाई दे रही थी, तो राहुल गांधी की तस्वीर थी, और जैसे ही कॉंग्रेस की सीटें घटने लगीं तो खड़गे की तस्वीर आ गई।

यह तस्वीर भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई और चर्चा का विषय रही। इसी क्रम में एग्जिट पोल पर भी गुस्सा निकालते हुए कई सेक्युलर पत्रकार दिखाई दिए। जैसे रोहिणी सिंह ने लिखा कि समाचार चैनल्स वाले एक छोटे से राज्य की सीटों का भी अनुमान नहीं लगा पाते हैं।

हरियाणा एग्जिट पोल्स के नतीजों के अनुसार नतीजे न आने पर एग्जिट पोल्स पर गुस्सा कई सेक्युलर पत्रकारों का निकला, जिनमें साक्षी जोशी और उनके पति विनोद कापड़ी भी थे।

वहीं पत्रकार से राजनेता और फिर राजनेता से पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कहलाने वाले आशुतोष ने तो भाजपा के पक्ष में रुझान आने पर “बक्से कहाँ से आने” की बात करने लगे थे। जिसकी रिकॉर्डिंग दिखाकर भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने यह कहा भी कि पिछले छ महीनों से स्टूडियो में बैठकर एक पार्टी का प्रचार करते रहे हैं।

ऐसे न जाने कितने कथित ऐसे लोग जो खुद को निष्पक्ष दिखाने का दावा करते हैं, हरियाणा चुनावों के बाद बौखलाकर बातें करते हुए दिखाई दिए। एक नजर खुद को निष्पक्ष और सेक्युलर कहने वाले पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेई के यूट्यूब चैनल पर आने वाले कार्यक्रमों के शीर्षकों पर डालनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि क्या यही निष्पक्षता है?

यहाँ तक कि कुछ चैनल्स पर तो प्रधानमंत्री मोदी का इस्तीफा भी दिलवा दिया गया था। मगर जैसे ही भाजपा की सीटें बढ़ने लगीं, वैसे-वैसे पत्रकारों के सुर बदलने लगे। जो चैनल्स में थे वे संयत हो गए और जिनके यूट्यूब चैनल्स हैं वे यह स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार वापस आ रही है।

कुछ यूट्यूबर्स द्वारा निरंतर भारतीय जनता पार्टी विरोधी और कॉंग्रेस के पक्ष में माहौल बनाए जाने के बावजूद यह एक रहस्य है कि राहुल गांधी किसी भी ऐसे यूट्यूबर को अपना कोई भी साक्षात्कार नहीं देते हैं, जो उनके पक्ष मे जाकर जमीन पर माहौल बनाता है और यह शिकायत कल कई यूट्यूबर्स की भी रही कि कांग्रेस के नेता न ही फोन उठा रहे हैं और न ही मैसेज का जबाव दे रहे हैं।

जब यह लगने लगा कि अब वास्तव में ही हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार वापसी कर रही है तो कुछ कथित सेक्युलर पत्रकारों ने यह कहकर जनता को कोसना आरंभ कर दिया कि गुरुग्राम आदि में इतना जल भराव होता है, समस्या होती है, मगर फिर भी भाजपा को वोट लोग दे रहे हैं!

ये वे पत्रकार हैं जो गैर भाजपा शासित राज्यों में कुशासन या अव्यवस्था के खिलाफ मौन रहना ही पसंद करते हैं। मगर यदि भाजपा को किसी राज्य के लोग चुनते हैं तो उस पूरे राज्य को बदनाम करने में देर नहीं लगाते हैं। जैसा कि आज तक गुजरात और मध्यप्रदेश को करते आए और अब उत्तर प्रदेश को कर रहे हैं।

जो भी कल देश ने देखा, जनता ने देखा उससे यही जाना कि यह कुनबा कुछ भी हो सकता है, परंतु निष्पक्ष पत्रकार नहीं, क्योंकि निष्पक्षता का नाम हिंदुओं का, या भारतीय जनता पार्टी का या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का या फिर प्रधानमंत्री मोदी का एकतरफा विरोध नहीं होता है।

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