भारत में मुगल आक्रांता बाबर को नायक बनाने की तमाम कोशिशें होती रही हैं और होती रहेंगी। मगर बाबरनामा पढ़ने पर पता चलता है कि वह न केवल काफिरों के प्रति घृणा से भरा हुआ था, बल्कि वह पठानों, हजारा जनजाति आदि सभी के प्रति भी अजीब भावों से भरा हुआ था। ऐसा लगता है जैसे उसे केवल लड़ाई ही चाहिए थी। काफिरों के प्रति उसकी घृणा दूसरे प्रकार की प्रतीत होती है।
जब बाबर भारत की ओर बढ़ रहा था तो काबुल में पठानों से उसका सामना हुआ था। उसका सामना हजारा जनजाति से भी हुआ था। हजारा मुस्लिम अभी भी अफगानिस्तान में हैं और हजारा समुदाय की महिलाएं तालिबानियों के अत्याचारों का शिकार हो रही हैं। इस समुदाय की रणनीतिक रूप से हत्या अभी तक हो रही है। जब बाबर काबुल पहुंचा था तो उसने भी हजारा समुदाय पर हमला किया था।
बाबरनामा में वह लिखता है, “जब से हम काबुल आए हैं, तब से तुर्कमान हजारा लोगों ने कई गलत हरकतें की हैं और हमें सड़कों पर लूटा है।” इसके बाद बाबर ने हजारा समुदाय के लोगों को सबक सिखाने के बारे में सोचा। (फरवरी 1506) वह हजारा समुदाय पर किये गए हमले के विषय में लिखता है। चूंकि अधिकांश तुर्कमान हजारा दर-ए-कुश में अंदर थे, तो हमने उनके खिलाफ हमला बोला।
बाबर और उसकी सेना घाटी में पहुंची और फिर वह लिखता है कि रात हम कहीं और बिता रहे थे, तो हमें एक हजारा समुदाय का एक मोटा ऊंट मिला। हमने उसे मारा और उसके मांस का कबाब बनाया। ऊंट का वह मांस ऐसा था कि वह किसी ने अभी तक नहीं खाया था और वह मटन से भी अधिक स्वाद वाला था।
फिर वह लिखता है कि अगले दिन वे लोग हजारा समुदाय के लोगों पर हमला करने के लिए गए, मगर बाबर का लश्कर भी हजारा समुदाय के लोगों का कुछ बिगाड़ नहीं पाया और बाबर के लश्कर को हजारा समुदाय के लोगों के शिविरों से भेड़ें और घोड़े ही मिले। बाबर लिखता है कि उसने खुद 400 से 500 भेड़ें इकट्ठी कीं और 20-25 घोड़े ले लिए। वह लिखता है कि हजारा लोगों की बीवियां और बच्चे बर्फीली पहाड़ियों पर चले गए और वहीं टिक गए। उनके हाथ 70-80 हजारा लोग लगे और जिन्हें मार डाला गया।
पठानों के सिरों की मीनार बनाना
काबुल से निकल कर गिलजई पठानों पर कब्जा करने के लिए अब बाबर आगे बढ़ रहा था। वहां पर उसने अफगानों से लड़ाई की और इस लड़ाई में बाबर कहता है कि इतनी बकरियां हाथ आई थीं, जिसनी बकरियां कभी भी हाथ नहीं लगीं। एक के बाद एक करके अफगानों की टुकड़ियां मैदान में आती रहीं और लड़ाई के लिए उकसाती रहीं। इन उकसाने वालों ने लगभग हर किसी को मरवा डाला। नासिर मिर्जा ने भी यही किया और अफगानों के सिरों की एक मीनार वहाँ पर बनाई गई।
निरीह प्राणियों का मनोरंजन के लिए शिकार
इसके अगले दिन बाबर और उसका लश्कर शिकार पर गया। कट्टावाज़ के मैदान में शिकार के लिए घेरा बनाया गया। जहां पर हिरण और जंगली गधे बहुत थे और बहुत तंदरुस्त थे। वह लिखता है कि कई हिरण घेरे में आए और कई मारे गए। फिर एक जंगली गधे के विषय में वह लिखता है, ”शिकार के दौरान मैं एक जंगली गधे के पीछे सरपट दौड़ा, पास आकर एक तीर मारा, दूसरा मारा, लेकिन उसे गिराया नहीं, वह सिर्फ़ दो घावों के कारण धीरे-धीरे भाग रहा था। आगे बढ़कर और उसके काफी करीब पहुँचकर मैंने उसके कानों के पीछे गर्दन के पिछले हिस्से पर वार किया और उसकी सांस की नली को काट दिया; वह रुक गया, पलट गया और मर गया।”
जिस तरह से उसने जंगली गधे के शिकार का वर्णन किया है, वह स्पष्ट करता है कि बाबर की प्रवृत्ति हिंसक ही नहीं बल्कि क्रूरता की हर सीमा को पार करने वाली थी। निरीह पशुओं को अपने मनोरंजन के लिए मारना, जिस समुदाय को मारने जा रहे हैं, उसके पशु को पहले मारकर पकाकर खाना और पशुओं को तड़पा-तड़पाकर मारना, यह सब एक मनोरोगी के लक्षण हैं, जिसे भारत के इतिहासकारों द्वारा एक नायक के रूप में पढ़ाया जाता है।
पठानों के बारे में क्या लिखा
वर्ष 1519 में फरवरी में एक घटना के परिप्रेक्ष्य में वह लिखता है कि हिंदुस्तान के आदमी और खासकर पठान अजीब बेवकूफ लोग हैं, जिनमें अक्ल नहीं होती है और जो न लड़ सकते हैं और न ही बागी होना जानते हैं। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में अपने तमाम कुकर्मों को लिखा है कि उसने कब किसे मारा, उसने किसके लिए क्या कहा और उसने कितने काफिरों को मारा। बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में भी लिखा हुआ है, लेकिन फिर भी यह हैरानी की बात है कि ऐसे निर्दयी लोगों को भारत के इतिहासकारों द्वारा महान योद्धा घोषित किया जाता है।
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