चाइल्ड पोर्न देखना है अपराध : सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया 'इसे चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी' न कहा जाए'
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चाइल्ड पोर्न देखना है अपराध : सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया ‘इसे चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ न कहा जाए’

सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि चाहे व्यक्ति अपने लिए देखे या किसी और को दिखाने के लिए डाउनलोड करे, ऐसी किसी भी सामग्री का होना पॉक्सो के अंतर्गत दंडनीय अपराध है, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए भी दूसरे शब्द का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया

by सोनाली मिश्रा
Sep 23, 2024, 03:42 pm IST
in भारत
भारत का सुप्रीम कोर्ट

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सर्वोच्च न्यायालय ने आज मद्रास उच्च न्यायालय के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें चाइल्ड पोर्न को अकेले में देखने को अपराध नहीं बताया गया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को इस आधार पर दोषमुक्त कर दिया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी को अकेले में देखना अपराध नहीं है, जब तक कि वह किसी और को नहीं दिखा रहा है। 13 सितंबर 2023 को अपने एक निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्न देख रहा है तो वह अपराध नहीं है, मगर वह यदि डाउनलोड करके किसी और को दिखा रहा है तो वह अपराध है।

इसके विरोध में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलाइन्स एवं नई दिल्ली के बचपन बचाओ आंदोलन संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय के विरुद्ध याचिका दायर की थी और इस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने निर्णय को सुरक्षित रख लिया था। मद्रास उच्च न्यायालय ने इसे पॉक्सो के अंतर्गत दंडनीय नहीं माना था और कहा था कि जब तक व्यक्ति की नीयत इसे किसी और जगह देने की नहीं है, तब तक उसे पॉक्सो के अंतर्गत दंड नहीं दिया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस निर्णय के विरोध में दायर याचिका पर सुनवाई की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय को गंभीर त्रुटि कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऐसी सामग्री को न ही हटाता है और न ही रिपोर्ट करता है तो यह उसकी इस मंशा को दिखाता है कि वह इस सामग्री को आगे भेजेगा। न्यायालय ने कहा कि यदि आरोपी सामग्री को मिटाने में, हटाने में या फिर रिपोर्टिंग करने में विफल रहता है तो मूलभूत तथ्य उसकी मानसिक स्थिति को बताने के लिए पर्याप्त है और वह प्राथमिक रूप से प्रमाणित होती है।

लाइव लॉ के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंशा परिस्थितियों से निकाली जानी चाहिए। जस्टिस पारदीवाला ने निर्णय के निष्कर्ष को सुनाते हुए कहा कि POCSO की धारा 15 में तीन अलग-अलग अपराधों का प्रावधान है, जो धारा की उप-धाराओं में निर्दिष्ट किसी भी तरह के प्रसारण, प्रदर्शन आदि के इरादे से किसी भी बाल पोर्नोग्राफ़िक सामग्री के भंडारण या स्वामित्व पर दंड देते हैं। यह एक अपूर्ण अपराध की प्रकृति और रूप में है, जो किसी बच्चे से जुड़ी किसी भी पोर्नोग्राफ़िक सामग्री के भंडारण या स्वामित्व पर दंड प्रदान करता है, जब ऐसी सामग्री का भंडारण वास्तविक प्रसारण, प्रसार आदि की आवश्यकता के बिना उसके तहत निर्धारित विशिष्ट इरादे से किया जाता है।

अर्थात सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि चाहे व्यक्ति अपने लिए देखे या किसी और को दिखाने के लिए डाउनलोड करे, ऐसी किसी भी सामग्री का होना पॉक्सो के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि एफआईआर दर्ज होने से पहले सामग्री को मिटाना यह नहीं बताता कि अपराध नहीं हुआ था। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति इस मामले में गिरफ्तार किया जाता है तो उसका अपराध इस कारण माफ नहीं हो सकता कि उसने चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी देखने और स्टोर करने के बाद एफआईआर दर्ज होने से पहले ही उसे डिलीट कर दिया था।

चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी शब्द का प्रयोग न किया जाए

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि संसद कोई अध्यादेश लाकर चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी जैसे शब्द में परिवर्तन करे। चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के स्थान पर “चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लोईटेटिव एंड अब्यूसिव मटीरियल” (बाल यौन शोषण एवं उत्पीड़न सामग्री) करने के लिए संशोधन लेकर आएं। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी न्यायालयों को यह निर्देश दिया कि वे “चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी” शब्द का प्रयोग न करें।
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश बाल शोषण को परिभाषित करने की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी नाम का कोई शब्द हो ही नहीं सकता है। बच्चों को यह पता ही नहीं होता है कि उनके साथ दरअसल हो क्या रहा है और यदि धोखे से उनके साथ कुछ किया जाता है और उसका वीडियो बनाया जाता है तो वे शोषण के अंधे कुएं में धकेल दिए जाते हैं। ऐसे में चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी कहीं न कहीं उनके साथ किये जा रहे शोषण और उत्पीड़न को, उनकी पीड़ा की गंभीरता और व्यापकता को उचित तरीके से नहीं बता सकता है। क्योंकि पोर्नोग्राफ़ी शब्द ग्रीक शब्द पोर्नोग्राफिक से आया है, जिसका अर्थ होता है वैश्याओं के विषय में लिखना। परंतु बच्चे इस श्रेणी में नहीं आते हैं, उनके साथ तो जो होता है वह शोषण के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ऐसा भी देखा गया है कि जब सरकार की ओर से पोर्नोग्राफ़ी आदि पर प्रतिबंध लगाने की बात की जाती है तो वह वर्ग जो महिलाओं और बच्चियों के जीवन का ठेकेदार बनता है, वह यह कहते हुए आगे आता है कि अब सरकार यह तय करेगी कि हम अपने बंद कमरे में क्या देखें और क्या न देखें? परंतु जो आदतें बंद कमरे में विकृतियाँ उत्पन्न करें और फिर उसके कारण बाहर हानि हो तो यह निर्धारित करना शासन और न्यायपालिका का कर्तव्य हो जाता है कि बंद कमरे में क्या देखा जाए और क्या नहीं!

Topics: सर्वोच्च न्यायालयसुप्रीम कोर्टचाइल्ड पोर्नोग्राफीपॉक्सो एक्टचाइल्ड पोर्न
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