महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों से पूरी तरह से गायब करने के बाद अब अफगानिस्तान के तालिबानी शासन का और कट्टर रूप सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अनुसार तालिबानी सरकार ने अब अफगानिस्तान में पोलियो के टीकाकरण अभियान को निलंबित कर दिया है।
यूएन ने सोमवार को यह कहा कि अफगानिस्तान ने सभी पोलियो टीकाकरण अभियानों को निलंबित कर दिया है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान दो ही देश ऐसे हैं जहां पर पोलियो जैसे जानलेवा वायरस का फैलाव बंद नहीं हो पाया है। इन्हीं दो देशों में पोलियो के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं। इसके बाद भी यदि तालिबानी सरकार ने पोलियो के टीकाकरण को रोक दिया है, तो यह पोलियो उन्मूलन के लिए एक बहुत बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है।
सितंबर में जब यह अभियान शुरू होने जा रहा था, तो उसे पहले ही निलंबित कर दिया गया। इस निलंबन के पीछे कोई भी कारण नहीं दिया गया। यूएन के अनुसार तालिबान के नियंत्रण वाली सरकार से कोई भी व्यक्ति इस विषय में बोलने के लिए तैयार नहीं है। पोलियो अभियान जहां घर-घर चलाया जाता है, वहीं अफगानिस्तान में यह तय किया गया था कि यह मस्जिदों में किया जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष पोलियो के 18 मामले अफगानिस्तान में दर्ज किये थे।
पाकिस्तान में होते हैं पोलियो टीम पर हमले
ऐसा नहीं है कि केवल अफगानिस्तान में ही पोलियो अभियान निलंबित किया गया है। तालिबानियों से लड़ने का दावा करने वाले पाकिस्तान में भी कट्टरपंथी ताकतें हमेशा ही पोलियो अभियान को रोकने की कोशिश करती हुई आई हैं। कितनी ही बार चरमपंथियों ने इन कर्मियों को निशाना बनाया है और पुलिस ने इन कर्मियों को सुरक्षा प्रदान की है।
क्यों होता है विरोध?
यह प्रश्न उठता है कि आखिर पोलियो टीकाकरण अभियान का विरोध क्यों होता है? टीकाकरण अभियान तो बीमारी से रक्षा के लिए होता है। पोलियो है ही ऐसी बीमारी जिसके कारण बच्चा पूरी ज़िंदगी के लिए अपाहित हो जाता है। मगर इसके टीकाकरण को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में इस सीमा तक विरोध किसलिए होता है? दरअसल टीकाकरण अभियान को लेकर यह झूठ दावा किया जाता है कि यह पश्चिम की साजिश है कि बच्चों का बंधियाकरण कर दिया जाए।
बच्चों की सेहत को खतरे में डालना
इस प्रकार के विरोधों से और टीकाकरण अभियानों के निलंबन से बच्चों के जीवन पर खतरा मंडराता है। अफगानिस्तान के हालात देखकर यह स्पष्ट हो रहा है कि कैसे बढ़ते मामलों के बीच भी इस अभियान को निलंबित करना बच्चों के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
पुराने तालिबान का आगमन
वर्ष 2021 में 15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा किया, तो ऐसा कहा गया कि यह नया तालिबान है। मीडिया का कम्युनिस्ट खेमा तालिबान को एक प्रगतिशील ताकत साबित करने में जुट गया। तालिबानियों द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद तो एकदम ही यह ढिंढोरा पीट दिया कि कितने लोकतान्त्रिक हैं। धीरे-धीरे उन्होंने फरमान जारी करने शुरू किये। पहले मीडिया से महिलाओं को बाहर किया। मीडिया में महिलाओं को बुर्के में रखा, फिर महिलाओं के बाहर जाने के सारे अधिकार छीने। वे पार्क, बाजार आदि कहीं भी नहीं जा सकती हैं और अब तो सार्वजनिक रूप से उनके बोलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह सब उन पर मजहबी उसूलों के आधार पर किया गया है। ब्यूटी पार्लर बंद कर दिए गए। बच्चियों को तालीम से दूर कर दिया गया। पहले स्कूल बंद किये और जब खोले तो केवल लड़कों को प्रवेश दिया। उच्च शिक्षा की बात तो लड़कियों के लिए एक दु:स्वप्न है।
अब पुरुषों के लिए भी डरावना संसार
ऐसा नहीं है कि महिलाओं के लिए ही कैद का निर्माण किया है। पुरुषों के लिए भी उतना ही अंधेरा संसार है। दाढ़ी नहीं रखी तो नौकरी से निकाल दिया जाएगा। अभी अगस्त में ही तालिबान ने सैकड़ों पुरुषों को अफगानिस्तान की सुरक्षाबल की नौकरियों से निकाल दिया था क्योंकि वे दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते थे। इतना ही नहीं कई संगीतकारों के काम को भी छीना जा चुका है। वाद्ययंत्रों को तोड़कर आग लगाई जा चुकी है। बालों का स्टाइल भी शरिया स्टाइल का किया जा रहा है।
प्रतिबंधित हो सकता है हर प्रकार का क्रिकेट
तालिबान के आने से पहले अफगानिस्तान की महिला खिलाड़ी भी अपना नाम कर रही थीं, मगर तालिबानियों के सत्ता संभालने के बाद महिला खेल तो बंद हुआ ही, हाँ, अफगानिस्तान की पुरुष क्रिकेट टीम इन दिनों बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है। वह बड़ी से बड़ी मजबूत टीमों को हरा रही है और अपने देश के लोगों के दिल में लगातार यह आशा का संचार कर रही है कि वे भी खेलों के संसार में बहुत कुछ कर सकते हैं। मगर अब ऐसा लग रहा है, कि पुरुषों का भी क्रिकेट बंद होने वाला है।
wion की एक रिपोर्ट के अनुसार अफ़गानिस्तान के सुप्रीम लीडर – हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा ने क्रिकेट पर धीरे-धीरे प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। हालाँकि, इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, मगर यह सभी को पता है कि तालिबान ही है जो अफगानिस्तान में सरकार चलाता है।
इस रिपोर्ट के अनुसार एक्स सोशल साइट पर सूत्रों ने यह दावा किया है कि Visegrad 24 की एक एक्स पोस्ट के अनुसार अखुंदज़ादा इस खेल से खुश नहीं है, क्योंकि उसका मानना है कि यह बहुत बुरा असर डालता है। सोशल मीडिया पर यह भी कहा जा रहा है कि क्रिकेट खेलना शरिया कानून के खिलाफ है। अफगानिस्तान में अब इसे लेकर आपस में ही झगड़ा है। एक गुट का नेतृत्व अखुंदज़ादा तो दूसरे का नेतृत्व सिराजुद्दीन हक्कानी के पास है। सिराजुद्दानी हक्कानी, अनस हक्कानी का भाई है और उसने अफगानिस्तान क्रिकेट में भारी निवेश किया है। जो भी हो रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि नये तालिबान के भीतर पुराना तालिबान ही है।
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