तेलंगाना के सिंकदराबाद में गणेश उत्सव के दौरान एक पूजा पंडाल में गणपति बप्पा की प्रतिमा को मुस्लिम वेशभूषा में प्रदर्शित करने से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यंग लियो यूथ एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस पंडाल की थीम फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ से प्रेरित थी, जिसके आधार पर भगवान गणेश को एक मुसलमान व्यक्ति की पोशाक में दिखाया गया। इस प्रतिमा को देखकर लाखों भक्तों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और सोशल मीडिया पर इसकी कड़ी आलोचना शुरू हो गई।
घटना के बाद से कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने इसे हिंदू धर्म पर हमला बताया और इसे संगठित रूप से धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने का प्रयास कहा। उनका मानना है कि ऐसी घटनाएं धर्मनिरपेक्षता, क्रिएटिविटी या कला के नाम पर हिंदुत्व को लक्ष्य बनाकर की जा रही हैं। सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर कड़ी प्रतिक्रिया आई, जहां लोग गणपति बप्पा के इस स्वरूप को देखकर गुस्से में थे और आयोजकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे थे।
यंग लियो यूथ एसोसिएशन के आयोजकों ने अपनी सफाई में कहा कि उनकी मंशा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं थी, बल्कि फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ की थीम के अनुसार गणेश प्रतिमा का स्वरूप तैयार किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस विवाद से काफी दुःख है और अगर किसी को ठेस पहुंची है, तो वे माफी मांगते हैं।
हालांकि, भक्तों और इंटरनेट यूजर्स की नाराज़गी कम होती नहीं दिख रही। कई लोगों ने इस घटना की तुलना आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ और ‘ओह माई गॉड’ जैसी फिल्मों से की, जहां धार्मिक आस्थाओं के साथ छेड़छाड़ की गई थी। लोगों का मानना है कि यह जानबूझकर किया गया एक प्रयास है, जो धर्म और आस्था से खिलवाड़ करने के उद्देश्य से किया गया है।
यह विवाद इस ओर इशारा करता है कि कला और क्रिएटिविटी के नाम पर धार्मिक भावनाओं का अपमान समाज में बड़ी अशांति और विभाजन पैदा कर सकता है। आयोजकों की मंशा चाहे जो भी हो, धार्मिक प्रतीकों का इस प्रकार का उपयोग एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसे अत्यधिक सतर्कता और सम्मान के साथ संभालने की आवश्यकता होती है।
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